मनमोहन सिंह, सोनिया गांधी और कोयला घोटाला

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चौथी दुनिया ने अपने 25 अप्रैल, 2011 के अंक में कोयला घोटाले का पर्दाफाश किया था. उस वक्त न सीएजी की रिपोर्ट आई थी और न किसी ने सोचा था कि इतना बड़ा घोटाला भी हो सकता है. उस वक्त हमारी रिपोर्ट पर किसी ने विश्‍वास नहीं किया. चौथी दुनिया ने अपनी पहली रिपोर्ट में ही कहा था कि यह घोटाला नहीं, बल्कि भारतीय लोकतंत्र के इतिहास का पहला महाघोटाला है, जिसमें इस देश को 26 लाख करोड़ रुपये का

स्व: प्रभाष जोशी को ज़लील मत कीजिए शेखर गुप्ता जी

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स्वर्गीय प्रभाष जोशी के जीते जी उनकी नैतिकता, सादगी और दक्षता पर किसी ने उंगली नहीं उठाई. उनकी मौत के बाद उन पर कीचड़ उछालना एक तो शर्मनाक है और यह काम घिनौना हो जाता है, जब कोई शख्स इसके लिए झूठ बोलता हो. अगर कीचड़ उछालने वाला सहयोगी और सहकर्मी रहा हो तो यह नीचता की श्रेणी में आ जाता है. वरिष्ठ पत्रकार शेखर गुप्ता ने स्वर्गीय प्रभाष जोशी की नैतिकता और सादगी का माखौल उड़ाया है. चौथी दुनिया

दिल्ली विधानसभा चुनाव : मुद्दे की नहीं, व्यक्तित्व की लड़ाई है

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दिल्ली विधानसभा चुनाव में तेजी से बदलाव दिखाई दे रहा है. सभी पार्टियां आक्रामक नज़र आ रही हैं. प्रचार-प्रसार में कोई किसी से पीछे नहीं है. सभी पार्टियां पानी की तरह पैसा बहा रही हैं. लेकिन, अफ़सोस इस बात का है कि दिल्ली विधानसभा चुनाव मुद्दा विहीन हो गया है. भारतीय जनता पार्टी, आम आदमी पार्टी और कांग्रेस पार्टी दिल्ली की जनता से जुड़े मुद्दों पर चुनाव नहीं लड़ रही हैं. ये तीनों पार्टियां मुद्दों को छोड़कर चेहरे के भरोसे

दिल्ली विधानसभा चुनाव: भाजपा की अग्निपरीक्षा

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महाराष्ट्र, हरियाणा, जम्मू-कश्मीर और झारखंड में अभूतपूर्व सफलता हासिल करने वाली भाजपा का विजय रथ दिल्ली आकर ठिठक-सा गया है. ऐसा नहीं है कि नरेंद्र मोदी के करिश्माई व्यक्तित्व की चमक धुंधली पड़ने लगी, बल्कि वजह यह है कि दिल्ली की आबादी का एक बड़ा हिस्सा आज भी अरविंद केजरीवाल का मुरीद है. इसलिए दिल्ली का चुनाव भाजपा के लिए अग्नि परीक्षा से कम नहीं है. वहीं 49 दिनों में अपनी सरकार छोड़कर लोकसभा चुनाव लड़ने और उसमें जबरदस्त पराजय

नक्सलवाद से निपटने के लिए सरकार के दमनकारी प्लान

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मोदी सरकार बहुत जल्द शहरों में चल रहे माओवादी संगठनों की शाखाओं और समर्थकों पर धावा बोलने वाली है. सरकार को लगता है कि माओवादी गतिविधियां स़िर्फ दूरदराज के जंगलों में ही सीमित नहीं हैं, बल्कि अब वे देश के शहरों के लिए भी ख़तरा बन गई हैं. माओवादी संगठन जो अब तक जंगलों से अपनी गतिविधियां चला रहे थे, वे खुफिया एजेंसियों को चमका देकर अब देश के शहरों में घुसपैठ कर चुके हैं. सरकार अब उन पर कड़ी

आतंकवाद से पाकिस्तान नहीं लड़ सकता

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पेशावर में बच्चों की निर्मम हत्या के एक दिन बाद 26/11 हमले के मास्टर माइंड ज़की-उर-रहमान-लखवी को जमानत मिलने से पाकिस्तान की किरकिरी हुई है. पूर्व राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ के बयान ने पाकिस्तान की हकीकत को उजागर कर दिया. साथ ही जब घोषित आतंकवादी हाफिज सईद ने सरेआम टीवी पर पेशावर हमले में भारत का हाथ होने वाला बयान दिया तो यह बात तय हो गई कि इतने बच्चों की हत्या के बाद पाकिस्तान की आतंक के खिलाफ लड़ाई

पेशावर में मर गई इंसानियत

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पाकिस्तान के पेशावर में तहरीक-ए-तालिबान  पाकिस्तान के आतंकियों ने एक स्कूल पर हमला कर करीब 150 लोगों की हत्या कर दी. साथ ही इस हमले में सैकडों लोग घायल हुए. पाकिस्तान आतंकियों का गढ़ बन चुका है. अब तक पाकिस्तान में मौजूद आतंकी संगठन भारत और दूसरे देशों के नागरिकों को निशाना बनाते रहे लेकिन इस बार  उन्होंने पाकिस्तान के पेशावर में आतंक का ऐसा खेल खेला जिससे इंसानियत मर गई. तमाम  मीडिया रिपोर्ट्स, अखबारों और चश्मदीदों ने स्कूल के

दिल्ली विधानसभा चुनाव: केजरीवाल के अस्तित्व का सवाल है

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दिल्ली में आजकल हर जगह केजरीवाल की गूंज सुनाई दे रही है. रेडियो पर केजरीवाल, मेट्रो में केजरीवाल, ऑटो पर केजरीवाल, होर्डिंग्स में केजरीवाल. हर जगह केजरीवाल नज़र आ रहे हैं. इसकी वजह यह है कि दिल्ली में होने वाला विधानसभा चुनाव आम आदमी पार्टी के लिए अस्तित्व का सवाल है. समस्या यह है कि आम आदमी पार्टी के पास केजरीवाल के चेहरे के अलावा कुछ नहीं बचा है. पार्टी कार्यकर्ता निराश हैं. कुछ को छोड़कर पार्टी का हर बड़ा-छोटा

यूआईडी कार्ड खतरनाक है : देश में क़ानून का राज ख़त्म हो गया है

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नरेंद्र मोदी सरकार को देश की सुरक्षा और भविष्य की चिंता नहीं हैं. अगर है, तो फिर वह देश की सुरक्षा से समझौता करने पर क्यों तुली है. मनमोहन सरकार से तो हमें कोई उम्मीद भी नहीं थी, लेकिन अगर मोदी सरकार भी वही गलतियां दोहराए, तो देश के भविष्य और सुरक्षा को लेकर सबको चौकन्ना हो जाना चाहिए. क्या यह चिंता की बात नहीं है कि सेना अध्यक्षों और खुफिया अधिकारियों पर विदेशी एजेंसियां निगरानी रखें. क्या यह चिंता

यूआईडी से देश की सुरक्षा को ख़तरा

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जितनी भी बायोमैट्रिक जानकारियां हैं, उनकी देखरेख और ऑपरेशन उन कंपनियों के हाथों में है, जिनका रिश्ता ऐसे देशों से है, जो जासूसी कराने के लिए कुख्यात हैं और उन कंपनियों के हाथों में है, जिन्हें विदेशी खुफिया एजेंसियों के रिटायर्ड अधिकारी चलाते हैं. इसका क्या मतलब है? क्या हम जानबूझ कर अमेरिका और विदेशी एजेंसियों के हाथों अपने देश को ख़तरे में डाल रहे हैं? हाल के दिनों में एक खुलासा हुआ था कि अमेरिका की सुरक्षा एजेंसी एनएसए