सीएजी रिपोर्ट पर राजनीतिः प्रजातंत्र के लिए खतरा है

democracy

सीएजी (कंपट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल) यानी नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट आई तो राजनीतिक हलक़ों में हंगामा मच गया. दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित विपक्ष के निशाने पर आ गईं. रिपोर्ट ने देश की जनता के सामने सबूत पेश किया कि कैसे कॉमनवेल्थ गेम्स नेताओं और अधिकारियों के लिए लूट महोत्सव बन गया. कांग्रेस पार्टी की तऱफ से दलील दी गई कि सीएजी की रिपोर्ट फाइनल नहीं है, इसलिए कोई कार्रवाई नहीं होगी. अब लोक लेखा कमेटी (पीएसी) में

लोकपाल बिलः यह जनता के साथ धोखा है

public cheated

सरकार ने लोकपाल बिल का मसौदा तैयार कर लिया है. इस मसौदे की एक रोचक जानकारी-अगर कोई व्यक्ति किसी अधिकारी के खिला़फ शिकायत करता है और वह झूठा निकला तो उसे 2 साल की सज़ा और अगर सही साबित होता है तो भ्रष्ट अधिकारी को मात्र 6 महीने की सज़ा. मतलब यह कि भ्रष्टाचार करने वाले की सज़ा कम और उसे उजागर करने वाले की सज़ा ज़्यादा. इसके अलावा भ्रष्टाचार के आरोपी अधिकारी को मुकदमा लड़ने के लिए मुफ्त सरकारी

यूआईडीः यह कार्ड खतरनाक है

aadhar card

वर्ष 1991 में भारत सरकार के वित्त मंत्री ने ऐसा ही कुछ भ्रम फैलाया था कि निजीकरण और उदारीकरण से 2010 तक देश की आर्थिक स्थिति सुधर जाएगी, बेरोज़गारी खत्म हो जाएगी, मूलभूत सुविधा संबंधी सारी समस्याएं खत्म हो जाएंगी और देश विकसित हो जाएगा. वित्त मंत्री साहब अब प्रधानमंत्री बन चुके हैं. 20 साल बाद सरकार की तरफ से भ्रम फैलाया जा रहा है, रिपोट्‌र्स लिखवाई जा रही हैं, जनता को यह समझाने की कोशिश की जा रही है

अब काला धन वापस नहीं आएगा

kala dhan

अब देश की जनता हाथ मलती रह जाएगी, क्योंकि काला धन वापस नहीं आने वाला है. अब यह भी पता नहीं चल पाएगा कि वे कौन-कौन कर्णधार हैं, जिन्होंने देश का पैसा लूट कर स्विस बैंकों में जमा किया है. भारत सरकार ने स्विट्जरलैंड की सरकार के साथ मिलकर एक शर्मनाक कारनामा किया है, लेकिन देश में इसकी चर्चा तक नहीं है. सरकार के कारनामे से विपक्ष भी वाकिफ है. इस पर आंदोलन करना चाहिए था, लेकिन यह भी एक

भाजपा में बहुत दम है…

bjp me bahut dam hai

भारतीय जनता पार्टी अब पार्टी विथ डिफरेंस के बजाय पार्टी इन डिलेमा बन गई है. दूसरे दलों से अलग होने का दंभ भरने वाली पार्टी अब असमंजस और विरोधाभास से ग्रसित हो चुकी है. वह भीषण गुटबाज़ी की चपेट में है, जिसकी वजह से पार्टी कार्यकर्ता आम जनता से दूर होते जा रहे हैं और पार्टी के नेताओं एवं कार्यकर्ताओं में दूरियां बढ़ गई हैं. पार्टी के अंतर्द्वंद्व का हाल यह है कि नेता प्रतिपक्ष का कोई बयान आता है

तेल कंपनियां या सरकारः देश कौन चला रहा है

tel company

यह कैसी सरकार है, जो जनता के खर्च को बढ़ा रही है और जीवन स्तर को गिरा रही है. वैसे दावा तो यह ठीक विपरीत करती है. वित्त मंत्री कहते हैं कि सरकार अपनी नीतियों के ज़रिए नागरिकों की कॉस्ट ऑफ लिविंग को घटाना और जीवन स्तर को ऊंचा करना चाहती है. पर वह कौन सी मजबूरी है, जिसकी वजह से पेट्रोल, डीजल और रसोई गैस के दाम बढ़ाए जाते हैं. पेट्रोलियम मंत्री जयपाल रेड्डी कहते हैं कि वह अर्थशास्त्र

अब लोकपाल नहीं बनेगा

aab lokpal

हमारे देश में सरकारी तंत्र के साथ साथ भ्रष्टाचार का तंत्र भी मौजूद है. यह भ्रष्ट तंत्र देश की जनता को तो नज़र आता है, लेकिन सरकार अंधी हो चुकी है. इसलिए सरकारी तंत्र और भ्रष्ट तंत्र दोनों एक दूसरे के पूरक बन गए हैं. ड्राइविंग लाइसेंस चाहिए तो सरकार के नियम क़ानून हैं, जिसके ज़रिए आपको लाइसेंस नहीं मिल सकता. आप शुमाकर क्यों न हों, उस टेस्ट को पास ही नहीं कर सकते. लाइसेंस के लिए भ्रष्ट तंत्र मौजूद

भ्रष्‍टाचार और काले धन के खिलाफ आंदोलन में बाबा रामदेव चूक गए

baba ramdeo chuk gaye

राजनीति भी अजीबोग़रीब खेल है, इसलिए इसे गेम ऑफ इंपोसिबल कहा गया है. यह ऐसा खेल है, जिसमें बड़े-बड़े खिलाड़ी को धराशायी होने में व़क्त नहीं लगता है, छोटे खिलाड़ी बाज़ी मार ले जाते हैं और कभी-कभी सबसे अनुभवी खिलाड़ी भी किसी नौसिखिए की तरह खेल जाता है. यह किसने सोचा था कि बाबा रामदेव के आंदोलन का ऐसा अंत होगा. यह किसने सोचा था कि मनमोहन सिंह जैसे शांत चित्त वाले लोग रात के एक बजे सो रही महिलाओं

मुस्लिम समाज का दर्द

muslim samaj ka dard

बिहार में आश्चर्यजनक चीजें होती हैं. मुसलमानों की समस्याओं पर सेमिनार हो, वक्ता राजनीतिक दलों के नेता और सामाजिक कार्यकर्ता हों और कोई आरएसएस और विश्व हिंदू परिषद की बात न करे, अगर कोई संघ परिवार और बजरंग दल को दोषी और अपराधी न बताए, अगर बाबरी मस्जिद का मुद्दा न उठे, अगर कोई भावनात्मक भाषण न दे, अगर मौलाना और मौलवी इस्लाम पर आने वाले खतरे को छोड़, शिक्षा और नौकरी की बातें करने लगें, तो हैरानी होती है.

लाइन में खडा़ किया गोली मारी और लाशें बहा दीं

goli maari dali

अगर न्याय में देरी का मतलब न्याय से वंचित होना है तो यह कह सकते हैं कि मेरठ के मुसलमानों के साथ अन्याय हुआ है. मई 1987 में हुआ मेरठ का दंगा पच्चीसवें साल में आ चुका है. इस दंगे की सबसे दर्दनाक दास्तां मलियाना गांव और हाशिमपुरा में लिखी गई. खाकी वर्दी वालों का जुर्म हिटलर की नाजी आर्मी की याद दिलाता है. मलियाना और हाशिमपुरा की सच्चाई सुनकर रूह कांप जाती है. देश की क़ानून व्यवस्था पर यह