यूआईडी कार्ड की कहानी इस तरह शुरू होती है. देश में एक विशिष्ट पहचान पत्र के लिए विप्रो नामक कंपनी ने एक दस्तावेज तैयार किया. इसे प्लानिंग कमीशन के पास जमा किया गया. इस दस्तावेज का नाम है स्ट्रेटिजिक विजन ऑन द यूआईडीएआई प्रोजेक्ट. मतलब यह कि यूआईडी की सारी दलीलें, योजना और उसका दर्शन इस दस्तावेज में है. बताया जाता है कि यह दस्तावेज अब ग़ायब हो गया है. विप्रो ने यूआईडी की ज़रूरत को लेकर 15 पेजों का
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अन्ना का आंदोलन अब अपने आख़िरी पड़ाव पर आता दिख रहा है. दो स्थितियां बनती हैं. पहली यह कि सरकार अगर एक मज़बूत जन लोकपाल क़ानून लेकर आती है तो अन्ना का आंदोलन फिजल आउट कर जाएगा. दूसरी स्थिति यह बन सकती है कि संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान सरकार लोकपाल क़ानून न बनाए. इस स्थिति में अन्ना फिर से भूख हड़ताल पर बैठ जाएंगे. देश में फिर से वही माहौल बनेगा, जैसे कुछ दिनों पहले था. कई राज्यों
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2-जी स्पेक्ट्रम घोटाले ने देशवासियों का सरकारी तंत्र पर विश्वास ही तोड़ दिया. जब पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं जनता पार्टी के अध्यक्ष सुब्रह्मण्यम स्वामी ने इस घोटाले को कोर्ट तक पहुंचाया तो किसी को यह अंदाज़ा नहीं था कि कोई मंत्री किसी घोटाले में जेल भी जा सकता है, लेकिन 2-जी घोटाले में पहले दूरसंचार मंत्री ए राजा जेल गए, फिर डीएमके प्रमुख करुणानिधि की बेटी कनिमोई भी जेल गईं. इनके साथ-साथ बड़ी-बड़ी कंपनियों के मालिक और अधिकारी तिहाड़ जेल
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क्या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक पौरुषविहीन संगठन हो गया है. क्या संघ परिवार देश में खुद किसी आंदोलन को शुरू करने का सामर्थ्य खो चुका है. क्या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का इस कदर वैचारिक पतन हो गया है कि नौजवानों को सड़कों पर उतारने की उसकी शक्ति ही खत्म हो गई. क्या संघ परिवार का अपने पूर्णकालिकों, नेताओं, कार्यकर्ताओं एवं समर्थकों से विश्वास उठ गया है या फिर हमें यह मान लेना चाहिए कि संघ भी देश के उन संगठनों
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राजस्थान के शेखावाटी इलाक़े के किसान कुछ साल पहले पानी की समस्या से परेशान थे. खेती में ख़र्च इतना ज़्यादा बढ़ गया था कि फसल उपजाने में उनकी हालत दिन-प्रतिदिन खराब होती चली गई, लेकिन कृषि के क्षेत्र में यहां एक ऐसी क्रांति आई, जिससे यह इलाक़ा आज भारत के दूसरे इलाक़ों से कहीं पीछे नहीं है. शेखावाटी में आए इस बदलाव के पीछे मोरारका फाउंडेशन की वर्षों की मेहनत है. फाउंडेशन के इस सपने को पूरा करने का भागीरथ
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32 रुपये में कैसे ज़िंदा रहा जा सकता है, यह कला योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलुवालिया को पूरे देश को सिखानी चाहिए. मोंटेक सिंह अहलुवालिया और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह दोस्त हैं. योजना आयोग की भूमिका देश के विकास में बहुत ही अहम है. इसलिए यह सवाल उठता है कि क्या हम ऐसे देश में रह रहे हैं, जहां की सरकार को मालूम नहीं है कि देश में कितने ग़रीब हैं. क्या हमने देश की बागडोर ऐसे लोगों के
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हिंदुस्तान को सचमुच किसी की नज़र लग गई है. ईमानदारी से कोई काम यहां हो नहीं सकता है. निचले स्तर के अधिकारी अगर भ्रष्टाचार करते हैं तो ज़्यादा दु:ख नहीं होता है, लेकिन जिस प्रोजेक्ट के साथ प्रोफेसर अमर्त्य सेन एवं पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम जैसे लोग जुड़े हों और वहां घपलेबाजी हो, बेईमानी हो, ग़ैरक़ानूनी और अनैतिक काम हों तो दु:ख ज़्यादा होता है. नालंदा को फिर से विश्व ख्याति दिलाने वाला प्रोजेक्ट भ्रष्ट आचरण की भेंट चढ़ गया
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वे सांसद कहां हैं, जो अन्ना हजारे को यह समझा रहे थे कि संसद की एक गरिमा होती है, उसे बाहर से डिक्टेट नहीं किया जा सकता है. वे आज चुप क्यों हैं? संसद की गरिमा बचाने के लिए, देश के लोकतंत्र को बचाने के लिए उन्हें अपनी चुप्पी तोड़नी चाहिए. कैश फॉर वोट भारत के इतिहास का सबसे शर्मनाक स्कैम है. देश के सांसद बिकते हैं, ऐसा सोचकर ही घिन होती है. देश के प्रजातंत्र के साथ खिलवाड़ करने
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अन्ना हजारे मूल बातें कहते हैं, इसलिए बड़े-बड़े विद्वान उनसे बहस नहीं कर सकते. सांसद सेवक हैं और देश की जनता मालिक है. अगर सेवक मालिक की बात न माने तो मालिक को यह हक़ है कि वह उसे बाहर कर दे. यही दलील अन्ना हजारे की है. देश को भ्रष्ट सांसदों से छुटकारा दिलाने के लिए राइट टू रिकॉल और राइट टू रिजेक्ट की मांग लेकर अन्ना हजारे और उनकी टीम आंदोलन करने वाली है. सांसदों को समय से
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एक कहावत है, प्याज़ भी खाया और जूते भी खाए. ज़्यादातर लोग इस कहावत को जानते तो हैं, लेकिन बहुत कम लोगों को ही पता है कि इसके पीछे की कहानी क्या है. एक बार किसी अपराधी को बादशाह के सामने पेश किया गया. बादशाह ने सज़ा सुनाई कि ग़लती करने वाला या तो सौ प्याज़ खाए या सौ जूते. सज़ा चुनने का अवसर उसने ग़लती करने वाले को दिया. ग़लती करने वाले शख्स ने सोचा कि प्याज़ खाना ज़्यादा
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