एक वरिष्ठ मंत्री ने निजी तौर पर बताया कि यह मामला गंभीर राजनीतिक परिणाम ला सकता है. कुछ मंत्रियों ने खुद को ग़ैर संवैधानिक अथॉरिटीज वाले कॉकस के आगे बेबस बताया. समझने वाली बात यह है कि हाल के दिनों में जितने भी घोटाले और षड्यंत्र देखने को मिले हैं, उन सब में इसी ग़ैर संवैधानिक अथॉरिटीज वाले कॉकस का प्रभाव रहा है. सरकार ने शुरू में धमकी देकर काम निकालने की सोची. जब ऐसा नहीं हुआ, तब लालच दिखाया.
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इज़राइल के अ़खबारों में भारत-इज़राइल दोस्ती की कहानियां धड़ल्ले से छप रही हैं. दोनों देशों को एक नेचुरल फ्रेंड बताया जा रहा है. साथ में यह भी बताया जा रहा है कि किस तरह अमेरिका की यहूदी लॉबी ने अमेरिका, और भारत को एकजुट किया. यही यहूदी लॉबी भारत-अमेरिका न्यूक्लियर डील और इज़राइल से हथियार खरीदने की डील के पीछे है. इस यहूदी लॉबी की ताक़त का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि न्यूक्लियर डील की वजह
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भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष नितिन गडकरी पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच थे. अनौपचारिक माहौल था और वह देश और भविष्य पर बातचीत कर रहे थे. अनायास उनके मुंह से एक कड़वा सच निकल गया. उन्होंने कहा कि सरकार किसी की बने, देश की हालत सुधरने वाली नहीं है. जनता को खुद अपने पैरों पर खड़ा होना पड़ेगा. अगर देश के मुख्य विपक्षी दल के अध्यक्ष ऐसी धारणा रखते हैं तो सचमुच देश का भविष्य खतरे में है. यह खतरा इसलिए
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देश के सर्वोच्च न्यायालय में सेना और सरकार आमने-सामने हैं. आज़ादी के बाद भारतीय सेना की यह सबसे शर्मनाक परीक्षा है, जिसमें थल सेनाध्यक्ष की संस्था को सरकार दाग़दार कर रही है. पहली बार सेनाध्यक्ष और सरकार के बीच विवाद का फैसला अदालत में होगा. विवाद भी ऐसा, जिसे सुनकर दुनिया भर में भारत की हंसी उड़ रही है. यह मामला थल सेनाध्यक्ष जनरल विजय कुमार सिंह की जन्मतिथि का है. इस मामले में एक पीआईएल सुप्रीम कोर्ट के सामने
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पांच जून, 1975 को पटना के गांधी मैदान में लालू प्रसाद यादव ने कहा था कि इस संसद को आग लगा दो. अगले दिन अ़खबारों ने उनके इसी वाक्य को इस समाचार का शीर्षक बनाया. लालू यादव उस व़क्त छात्रनेता थे, युवा थे और जयप्रकाश जी के आंदोलन के महत्वपूर्ण आंदोलनकारी थे. 29 दिसंबर, 2011 को लालू यादव सचमुच संसद को आग लगाने का काम कर रहे थे. राज्यसभा में दिन भर लोकपाल बिल पर बहस होती रही. सरकार के
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राजनीति का खेल भी बड़ा अजीब है. इस खेल में हर खिलाड़ी सोचता कुछ है, बोलता कुछ है और करता कुछ और ही है. क्या कांग्रेस पार्टी सचमुच मुसलमानों को सरकारी नौकरियों में आरक्षण देना चाहती है या फिर यह स़िर्फ एक चुनावी स्टंट है. यह एक ऐसा सवाल है, जो हर व्यक्ति के मन में उठ रहा है. कांग्रेस अगर मुसलमानों के विकास के लिए वाकई कुछ करना चाहती है तो सालों से धूल फांक रही सच्चर कमेटी और
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मुसलमानों के नेता पार्टी हाईकमान के इशारे पर नाचने वाले नेता बन गए हैं. आरक्षण की बात उठती है तो कोर्ट यह कह कर खारिज कर देती है कि धर्म के नाम पर आरक्षण या नीति नहीं बनाई जा सकती. राजनीतिक दलों का हाल यह है कि कुछ सीधे विरोध में खड़े हैं. और जो साथ होने का दावा करते हैं, वे गिद्ध की तरह मुसलमानों के वोट को नोचने-खसोटने में लगे हैं. कहने का मतलब यह है कि मुसलमानों
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खुदरा व्यापार का मतलब है कि कोई दुकानदार किसी मंडी या थोक व्यापारी के माध्यम से माल या उत्पाद खरीदता है और फिर अंतिम उपभोक्ता को छोटी मात्रा में बेचता है. खुदरा व्यापार का मतलब है कि वैसे सामानों की खरीद-बिक्री, जिन्हें हम सीधे इस्तेमाल करते हैं. रोजमर्रा में इस्तेमाल होने वाली वस्तुओं या सामान को हम किराने की दुकान, कपड़े की दुकान, रेहड़ी और पटरी वाले आदि से खरीदते हैं. ये दुकानें घर के आसपास होती है. फिर शहरों
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एक सच्ची घटना है- कुत्ता क्यों मरा? पंजाब के सबसे क़द्दावर मुख्यमंत्री थे सरदार प्रताप सिंह कैरो. स्वतंत्रता सेनानी के साथ-साथ बड़े क़द्दावर नेता थे. एक बार दिल्ली से चंडीगढ़ जा रहे थे. उनके साथ उनके संसदीय सचिव देवीलाल भी थे. सरदार कैरो की गाड़ी तेज़ी से भाग रही थी कि एक कुत्ता बीच में आ गया. कुत्ते की मौत हो गई. सरदार कैरो ने थोड़ी दूर जाकर गाड़ी रुकवाई. सड़क किनारे दो चक्कर लगाए और देवीलाल जी को बुलाया.
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हमारे संविधान में नए राज्य बनाने की एक प्रक्रिया है. संविधान के मुताबिक़, नए राज्य बनाने का अधिकार संसद के पास है. यदि किसी प्रदेश के क्षेत्र, सीमा या नाम बदलने का सुझाव है तो ऐसे बिल को राष्ट्रपति संसद में भेजने से पहले संबंधित राज्य की विधानसभा को भेजकर निश्चित समय सीमा के अंदर राय देने को कहेंगे और यदि उस समय सीमा के अंदर राय नहीं दी जाती है तो यह मान लिया जाएगा कि बिल के बारे
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