दंगे होने वाले है

dange hone wale hain

देश में जिस तरह का राजनीतिक माहौल बनाया जा रहा है, उससे साफ़ लगता है कि दंगे होने वाले हैं. देश का मीडिया, राजनीतिक दल और राजनेता इस देश में दंगे कराने पर आमादा हैं. दंगे कराने वालों में सांप्रदायिक ताकतों के साथ- साथ वे कथित सेकुलर ताकतें भी हैं, जिनकी निगाह उस 19 फ़ीसद वोटों पर है, जिन्हें वे बड़ी बेशर्मी से मुस्लिम वोटबैंक कहती हैं. कोई चेहरा दिखाकर मुसलमानों को डरा रहा है, तो कोई हमदर्द होने का दिखावा करके. हैरानी इस बात की है

एक बार फिर कांग्रेस ने गाँधी को मारा

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बहुत कम लोग ऐसे होते हैं, जो बदलते नहीं हैं, लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं, जो कभी सुधरते नहीं हैं. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की यादों से जुड़ी वस्तुओं की फिर से नीलामी हुई. फिर से भारत की ऐतिहासिक धरोहरों पर बोली लगी, लेकिन भारत की सरकार फिर से सोती रह गई. यह नहीं सुधरी. हालांकि फिर से एक भारतीय ने भारत की लाज बचाई. एक बार फिर उसी भारतीय ने महात्मा गांधी की यादों से जुड़ी वस्तुएं खरीदीं और पिछली बार की

चुनावी सर्वे के खेल में : मोदी और राहुल साथ-साथ है

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देश में होने वाले चुनावी सर्वे न स़िर्फ भ्रामक हैं, बल्कि उन्हें राजनीतिक हथियार की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है. सर्वे रिपोर्ट्स में नरेंद्र मोदी को एनडीए का ट्रम्प कार्ड और प्रधानमंत्री पद का सबसे बेहतर उम्मीदवार बताया जा रहा है. साथ ही यह भी बताया जा रहा है कि अगर नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बने, तो भाजपा को सबसे ज़्यादा सीटें मिलेंगी. समझने वाली बात यह है कि मोदी के  प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बनने से

यु पी ए -२ के चार साल : यह सरकार झूठी है

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यूपीए-2 के चार साल अभूतपूर्व घोटालों की शृंखला और निर्लज्ज भ्रष्टाचार के लिए याद किए जाएंगे. इन चार सालों में देश में महंगाई बढ़ी, विकास रुका, किसानों ने आत्महत्याएं कीं, मज़दूर बेहाल हुए और सरकारी तंत्र को लकवा मार गया, लेकिन दूसरी ओर एकसच यही है कि पूंजीपतियों एवं उद्योगपतियों ने जमकर माल भी कमाया. इतिहास के पन्नों में यह दौर जनांदोलन के लिए दर्ज होगा, क्योंकि यही वह दौर था, जब देश की जनता यूपीए सरकार की करतूतों, घोटालों,

भारत का दूषित प्रजातंत्र

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राजनीतिक दलों का वर्चस्व इतना मज़बूत है कि देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था पूरी तरह से पार्टी तंत्र में तब्दील हो चुकी है. हालत यह है कि चुनाव अब महज़ खानापूर्ति बनकर रह गए हैं. हर राजनीतिक दल अपनी मूल विचारधारा को त्याग कर येन केन प्रकारेण सत्ता पर क़ाबिज़ होना चाहता है. दरअसल, भारत का प्रजातंत्र दूषित हो चुका है और यही प्रजातंत्र के लिए ख़तरे की घंटी है. क्या है सच्चाई, पेश है विश्‍लेषण पर आधारित एक रिपोर्ट? अन्ना

मेरठ दंगे – इतिहास का काला अध्याय- 25 साल बाद भी न्याय नहीं मिला

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1987 में मलियाना को किसी की नजर लग गई, तो वहीं दूसरी ओर 22 मई, 1987 हाशिमपुरा के लिए मनहूस दिन था. दरअसल, पीएसी के जवानों ने मलियाना और हाशिमपुरा में मौत का जो तांडव किया, यह सचमुच एक अनोखी बात है. ये बातें आज तक सामने नहीं आईं कि किस अधिकारी या नेता ने इसकी मंजूरी थी दी. क्या है सच? जब गुजरात के सरदारपुरा दंगे में शामिल 31 लोगों को आजीवन कारावास की सज़ा मिलती है, तो देश

सरबजीत को हमने मारा

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दुनिया को पता चल गया कि पाकिस्तान की जेल में बंद निर्दोष भारतीय नागरिक सरबजीत सिंह की जान एक सोची-समझी साजिश के तहत ले ली गई. लेकिन एक तीखा सच यह भी है कि सरबजीत की मौत के लिए जितनी ज़िम्मेदार पाकिस्तान सरकार है, हमारा यानी भारत का अपराध किसी भी मायने में उससे कम नहीं है. कूटनीति का अर्थ राष्ट्रहित के लिए समग्र राष्ट्रीय शक्ति का व्यवहार कुशल प्रयोग एवं नियोजन होता है, ताकि बिना युद्ध किए हम अपनी

संजय दत्त को माफ़ी क्यों?

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एक पत्रिका ने बड़े ही मार्मिक ढंग से यह छापा था कि संजय दत्त की गिरफ्तारी के बाद सुनील दत्त साहब पर क्या बीती. इस रिपोर्ट के मुताबिक, पहले सुनील दत्त को इस बात पर विश्‍वास ही नहीं हो रहा था कि संजय धमाके की साजिश का हिस्सा भी हो सकता है. जब सुनील दत्त संजय से मिले, तो संजय ने क़बूला कि उसने अनीस इब्राहिम से राइफल और कारतूस लिए थे. सुनील दत्त ने पूछा, बेटे, तुमने ऐसा क्यों

जनतंत्र यात्रा 2013 – अब बदलाव ज़रूरी है

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अन्ना हज़ारे की जनतंत्र यात्रा सुपर फ्लॉप हो सकती है, क्योंकि कई लोग यह मानते हैं कि हिंदुस्तान के लोगों को देश से कोई मतलब नहीं है. उन्हें अपने पेट के लिए रोटी और अपने भविष्य की चिंता ज़्यादा होती है. हर जगह लोग जाति और संप्रदाय में बंटे हैं. हर जगह बैकवर्ड-फॉरवर्ड की लड़ाई है. दलित और पिछड़ों की लड़ाई है. दलितों में भी दलित और महादलित की लड़ाई है. फॉरवर्ड में भी इस बात की लड़ाई है कि

यह बजट खोखला और दिशाहीन है

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यह एक पुराना तर्क है कि जब समस्याएं असामान्य हों, तो ऐसी समस्याओं से निपटने का तरीक़ा भी असामान्य होना चाहिए. अगर कठिन समस्याओं से निपटने के लिए हम साधारण तरी़के अपनाएंगे, तो वे कभी हल नहीं होंगी. कुछ साल पहले तक भारत एक सुपर पावर बनने की ओर अग्रसर था, लेकिन पिछले तीन सालों में स्थिति उलट गई है. भारत को वापस विकास और उन्नति के रास्ते पर लाकर खड़ा करने के लिए 2013-14 का बजट एक सुनहरा अवसर