चुनावी सर्वे लोगो को भ्रमित करते हैं

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आम आदमी पार्टी का दावा है कि वह दिल्ली में सरकार बनाएगी. इस दावे का आधार आम आदमी पार्टी द्वारा किया गया सर्वे है. अगर सर्वे ही चुनाव के मापदंड होते तो स़िर्फ भारत ही क्यों, दुनिया के किसी भी देश में लोग चुनाव के नतीजे का इंतज़ार नहीं करते. अरविंद केजरीवाल का दावा है कि आम आदमी पार्टी को 32 फ़ीसद वोट मिलेंगे और 70 में से 46 सीट पर उनकी पार्टी के उम्मीदवार जीत दर्ज कराएंगे. वैसे इस तरह का दावा करना राजनीतिक तौर पर

आम आदमी पार्टी की असलियत

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सबसे ईमानदार, मैं सबसे त्यागी, मैं सबसे बड़ा संत, मैं ही सर्वगुणसम्पन्न और बाक़ी दुनिया के सारे लोग भ्रष्ट, बेईमान और धूर्त हैं. मेरी अच्छाई को बताने वाले ईमानदार और मुझ पर उंगली उठाने वाले दलाल, यह आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल की राजनीति का स्वभाव है. चुनाव में अरविंद केजरीवाल ने ईमानदार पार्टी को वोट करने की मांग की. लेकिन लोगों ने उनकी पार्टी से ज़्यादा वोट बीजेपी को दिया. क्या अब भी ज़्यादातर लोग आम आदमी

लोकपाल कानून :अन्ना के संघर्ष का परिणाम

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रालेगण सिद्धी में अन्ना हजारे ने नौ दिनों तक अनशन किया. इस अनशन के साथ साथ जनतंत्र मोर्चा के कार्यकर्ता देश के कई शहरों और क़स्बों में धरना-प्रदर्शन व अनशन करते रहे. नेशनल मीडिया में उन्हें दिखाया नहीं गया, लेकिन क्षेत्रीय अख़बारों और टीवी चैनलों ने स्थानीय आंदोलनों को जमकर दिखाया. देशभर में दो सौ से ज्यादा जगहों पर अन्ना के समर्थन में लोग सड़कों पर उतरे. सरकार को लगातार यह जानकारी मिल रही थी कि 2011 की तरह अगर

अरविन्द केजरीवाल ने की आम आदमी के सपने की हत्या

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आज तक के एक कार्यक्रम में पुण्य प्रसून वाजपेयी ने एक ऐसी बात कही, जिससे सबके दिल को गहरा आघात पहुंचा. उन्होंने अन्ना-अरविंद चिट्ठी विवाद पर कहा कि यह एक सपने की मौत हो रही है. लेकिन इसके ठीक 72 घंटे के बाद जो वीडियो दुनिया के सामने आया, उससे यह साबित हो गया कि यह सपने की मौत नहीं, बल्कि सपने की हत्या कर दी गई है. और इस हत्या के मुख्य आरोपी अरविंद केजरीवाल हैं, जिनकी महत्वाकांक्षा सत्ता

आम आदमी पार्टी को अन्ना का समर्थन नहीं है

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दिल्ली चुनाव आम आदमी पार्टी के लिए जीने-मरने का सवाल है. इसलिए यह पार्टी साम, दाम, दंड, भेद- इन चारों हथियारों का बड़ी होशियारी से इस्तेमाल कर रही है. कहने को तो इस पार्टी के नेता पारदर्शिता के पक्षधर हैं, लेकिन उनके बयान वैचारिक रूप से अशुद्ध व भ्रामक प्रतीत होते हैं. दिल्ली चुनाव में व्यवस्था परिवर्तन का क्या मतलब है? दिल्ली सरकार देश की अकेली राज्य सरकार है जिसके पास न तो पुलिस है, न ही जनता की सुरक्षा

नरेंद्र मोदी बनाम राहुल

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देश में इस वक़्त दो व्यक्ति प्रधानमंत्री पद के प्रमुख दावेदार हैं. राहुल गांधी और नरेन्द्र मोदी. लेकिन न तो राहुल और न ही मोदी ने तरक्की का ऐसा कोई मॉडल पेश किया है, जो समूचे देश के हित में हो. हालांकि, दोनों ही कहते हैं कि देश मज़बूत और विकसित बने, पर दोनों को ही ये नहीं पता कि ऐसा होगा तो आख़िरकार होगा कैसे? मोदी हों या राहुल, दोनों ही बस जुमले उछालते हैं, सवाल उठाते हैं, पर समाधान नहीं बताते.   नीम हकीम ख़तरा ए

पार्ट-2 : आधारहीन आधार कार्ड

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यूआईडी यानी आधार के मामले में यूपीए सरकार का रवैया अजीबोग़रीब है. सरकार संसद के अंदर कुछ कहती है. संसद के बाहर मीडिया से कुछ और कहती है और अदालत के अंदर जाकर बिल्कुल ही अगल बात कहती है. सरकार की अलग-अलग एजेंसियां यह भ्रम फैलाती हैं कि यूआईडी हर सरकारी काम के लिए ज़रूरी है, लेकिन कोर्ट में जाकर मुकर जाती हैं. सरकार से जब यह पूछा जाता है कि इस स्कीम पर कितने पैसे ख़र्च होगें, तो सरकार

मनमोहन सिंह जेल जा सकते है

manmohan singh jail ja sakte hain

क्या प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह दिसंबर में जेल जाएंगे? क्या मनमोहन सिंह देश के पहले ऐसे प्रधानमंत्री होंगे, जिन्हें जेल जाना होगा? यह सवाल दुखद है, लज्जाजनक है और चिंतित करने वाला है और इसलिए इसे उठाना आज सबसे जरूरी है. कोयला घोटाले में सरकार का जो अबतक का रवैया सच को झूठ और झूठ को सच बनाने का रहा है, इससे सुप्रीम कोर्ट नाराज है. आजाद भारत के इतिहास में सीबीआई और सरकार के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की तरफ से

इतिहास के आईने में एक ईमानदार प्रधानमंत्री

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यूपीए सरकार के दस साल पूरे होने वाले हैं. इन दस सालों में क्या हुआ? हम विकास की राह पर कहां तक पहुंचे? भारत आगे बढ़ा या पीछे छूट गया? देश की एकता व अखंडता मजबूत हुई या फिर हम बिखरने लगे? वर्षों से चल रही समस्याओं का क्या हुआ? सरकार की नीतियां कितनी सफल हुईं और संवैधानिक संस्थाओं पर लोगों का विश्‍वास कितना बढ़ा? इतिहास मनमोहन सिंह सरकार का किस तरह आकलन करेगा? ये कुछ ऐसे सवाल हैं, जिनका

दिल्ली विधानसभा चुनाव : यह आम आदमी पार्टी की अग्नि परीक्षा है

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दिल्ली विधानसभा चुनाव में एक और स्थिति पैदा हो सकती है कि भारतीय जनता पार्टी चुनाव जीत जाती है. कांग्रेस हार जाती है. आम आदमी पार्टी को ज्यादा सीटें नहीं मिलती है. काजल की काली कोठरी के बाहर रह कर खुद को बेदाग कहना आसान है, लेकिन काजल की काली कोठरी के अंदर रह कर खुद को बेदाग रखना ही असली परीक्षा है. आम आदमी पार्टी राजनीति की काली कोठरी से अब तक बाहर है. अभी अंदर गई भी नहीं