अर्थनीति तय करेगी देश की राजनीति

namo

2 जी घोटाले में जब ए राजा पकड़े गए, तो कांग्रेस के बड़े-बड़े नेता, यहां तक कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह दो साल तक कहते रहे कि कोई घोटाला नहीं हुआ है. कोयला घोटाले में जब मनमोहन सिंह का नाम आया, तो कांग्रेस पार्टी ने कहा कि यह नीतिगत फैसला है. मजेदार बात यह है कि विपक्षी पार्टियों ने भी इन मामलों को जोर-शोर से नहीं उठाया. यह तो अदालत है, जिसकी वजह से इन घोटालों के गुनहगारों को सजा मिल

अरविंद केजरीवाल: चुनाव से पहले, चुनाव के बाद

chunav se pahle chunav ke baad

2012 में मनोवैज्ञानिक डेविड थामस की एक चर्चित किताब आई. इस किताब का नाम है नार्सिसिज्म: बिहाइंड द मास्क. नार्सिसिज्म एक मनोवैज्ञानिक कुंठा है. कुछ लोग इसे व्यक्तित्व विकार भी मानते हैं. शब्दकोश में इस शब्द का अर्थ ढूंढने पर पता चलता है कि नार्सिसिज्म को हिंदी में आत्मकामी कहते हैं. इस किताब के शीर्षक का मतलब है, मुखौटे के पीछे का आत्मकामी. इस किताब में आत्मकामियों के कुछ लक्षण बताए गए हैं. बिना किसी बड़ी उपलब्धि और उत्कृष्ट निपुणता

मुसलमानों को कांग्रेस ने स़िर्फ धोखा दिया

rahul sonia

यह मुसलमानों को याद करने का मौसम है. उनकी समस्याओं पर बहस का मौसम है. यह मुसलमानों को ख़तरे बताने का मौसम है. यह मुसलमानों को डराने का मौसम है. यह चुनाव का मौसम है. यही वजह है कि हर राजनीतिक दल में मुसलमानों के प्रति प्रेम उमड़ रहा है. मुसलमानों के दु:ख पर आंसू बहाए जा रहे हैं. ऐसा हर चुनाव से पहले होता है. हर बार मुसलमानों को बरगलाने के दांव खेले जाते हैं. हाल तो यह है

नरेंद्र मोदी को कौन चुनौती देगा

Narendra modi ko koun

देश का अगला प्रधानमंत्री कौन होगा? कयासों और दावों के बीच नाम तो कई हैं, लेकिन सभी नामों के साथ उम्मीद और नाउम्मीद का संशय जुड़ा हुआ है. राहुल बनाम मोदी का एक आकलन ज़रूर है, लेकिन चुनाव नजदीक आने तक जाहिर तौर पर राजनीतिक परिदृश्य बदलेंगे, तब उसमें नए खिलाड़ी भी होंगे और नए मोहरे भी. हालांकि नरेंद्र मोदी की तस्वीर जिस तरह राष्ट्रीय पटल पर उभर कर आई, उससे संभावनाओं का एक प्रश्‍न प्रबल होता जा रहा है

नीति और नीयत साफ़ नहीं है

niti aur niyat

वैचारिक विरोधाभास किसी भी राजनीतिक दल की सेहत के लिए अच्छा नहीं होता है. ऐसी पार्टियां समाज को नेतृत्व नहीं दे सकतीं, समस्याओं का निदान नहीं कर सकतीं. आम आदमी पार्टी की समस्या यह है कि इसका आधार ही विरोधाभास से ग्रसित है. यही वजह है कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार बने एक महीना भी नहीं बीता और केजरीवाल के साथ-साथ पूरी पार्टी की टाय-टाय फिस्स हो गई. पार्टी की नीति और नीयत, दोनों उजागर हो गईं.

यह कोई करिश्मा नहीं है

karishma

मीडिया में अरविंद केजरीवाल की जय जयकार हो रही है. कोई इसे अचंभा बता रहा है तो कुछ लोग इसे चमत्कार कह रहे हैं. अरविंद केजरीवाल इन सबसे आगे हैं. वे कहते हैं यह तो भगवान का ही करिश्मा है, नहीं तो एक नई पार्टी सरकार बना सकती है यह कोई सोच भी नहीं सकता है. केजरीवाल लोगों को भ्रमित कर रहे हैं, क्योंकि अगर भगवान होते तो देश की ये हालत ही नहीं होती. अरविंद केजरीवाल असलियत जानते हैं

कोयले का दाग़ नहीं धुलेगा

koyla

मनमोहन सिंह को बचाने के लिए सरकार ने कोई कसर नहीं छोड़ी. यह जरा हास्यास्पद है, लेकिन फिर भी जानना ज़रूरी है कि जब सुप्रीम कोर्ट के जजों ने कड़ा रुख अपनाया, तो मनमोहन सिंह सरकार ने कहा कि फाइलें गायब हो गईं. अब पता नहीं कि फाइलें गायब हुई थीं या फिर गायब कर दी गई थीं. सुप्रीम कोर्ट के रवैये की वजह से कोयला मंत्री ने फाइलें ढूंढने के लिए टीम बनाई और बाद में सुप्रीम कोर्ट ने मामला सीबीआई

यह प्रजातंत्र का अंधकार युग है

prajatantra andhkar yug

मनमोहन सिंह की सरकार ने खुद को एक झूठी, भ्रष्ट, जनविरोधी और आज़ाद भारत की सबसे बदनाम सरकार के रूप में स्थापित किया है. यह एक ऐसी सरकार है, जिसने संसद और सुप्रीम कोर्ट में झूठ बोलने का कीर्तिमान स्थापित किया. यह आज़ाद भारत की अब तक की सबसे भ्रष्ट सरकार है. एक ऐसी सरकार, जिसके कार्यकाल में ऐतिहासिक महंगाई और बेरोज़गारी देखी गई. मनमोहन सिंह की सरकार ऐसी सरकार साबित हुई, जिसके कार्यकाल में किसानों ने सबसे ज़्यादा आत्महत्याएं कीं. पिछले दस सालों में

यह जनविरोधी मॉडल है

narendra modi

2014 लोकसभा चुनाव के लिए मोदी पूरे देश का दौरा कर रहे हैं. सच बात तो यही है कि देश पिछले 20 सालों में आगे जाने की बजाय विकास के सफ़र में पीछे छूट गया है. ग़रीब और ग़रीब हो गए और अमीर पहले कई गुणा ज्यादा अमीर हो गए. किसानों की हालत ख़राब है. वो आत्महत्या कर रहे हैं. खेतों को छोड़ कर शहरों में पलायन कर रहे हैं. दुनिया के सबसे ज्यादा युवा भारत में तो रहते हैं, लेकिन सच्चाई ये

यह तीसरा मोर्चा नहीं है

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जब 14 पार्टियों के 17 नेताओं ने एक दूसरे का हाथ उठाकर यह फोटो खिंचवाई तो वीपी सिंह के राष्ट्रीय मोर्चा की याद ताज़ा हो गई. ऐसी ही तस्वीरें उन दिनों अख़बारों में छपा करती थीं. वो अलग वक्त था. आज का दौर अलग है. वी पी सिंह कई राजनीतिक दलों को एकजुट करने में सफल हुए थे. भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ सफल आंदोलन किया और कांग्रेस विरोध की लहर पैदा की थी. वह तीसरे मोर्चे का एक सफल प्रयास साबित हुआ. कांग्रेस हारी और