रामदेव की बात पर सोनिया को किसने डराया, क्यों डर गई कांग्रेस? रामदेव के जवाब पर दिग्विजय सिंह क्यों चुप हुए? क्या दिग्विजय सिंह ने जानबूझ कर रामदेव के खिला़फ बयान दिया? शुरुआत में कांग्रेस ने बाबा रामदेव की मदद क्यों की? राजनीति और आध्यात्म में सबसे बड़ा फर्क़ यह है कि आध्यात्म मनुष्य को मौन कर देता है, जबकि राजनीति में मौन रखना सबसे बड़ा पाप साबित होता है. बाबा रामदेव के हमले के बाद कांग्रेस पार्टी आध्यात्म की
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कांग्रेस पार्टी और सरकार पर बाबा रामदेव और उनके साथियों के आरोप काला धन जमा कराने वालों में केंद्रीय मंत्री विलासराव देशमुख और सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल का नाम स्विस बैंकों में पैसा जमा करने वाले माफिया हसन अली के कांग्रेस पार्टी से रिश्ते क्वात्रोकी के बेटे को अंडमान निकोबार में तेल की खुदाई का ठेका दिया गया स्विट्ज़रलैंड के बैंकों में स्वर्गीय राजीव गांधी का काला धन जमा था राहुल गांधी को रूस की ख़ु़फिया एजेंसी
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पहले कांग्रेस पार्टी के दिग्विजय सिंह ने बाबा को मिलने वाले काले धन की जांच की मांग की. अब बाबा रामदेव संत समाज के निशाने पर आ गए हैं. हिंदुस्तान का इतिहास गवाह है कि जब-जब राजनीति का सामना संतों से हुआ, राजनीति हारी है, संत हमेशा जीते हैं. दिग्विजय सिंह के बयान के बाद बाबा रामदेव ने हुंकार भरी और यह बोल गए कि वह आज हज़ारों करोड़ के ब्रांड बन चुके हैं. क्या संत ब्रांड बन सकते हैं?
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बाबा रामदेव पर लगे आरोपों की सच्चाई जानने के लिए समन्वय संपादक डॉ. मनीष कुमार ने सुमेर पीठ के जगतगुरु शंकराचार्य नरेंद्रानंद सरस्वती से बातचीत की. प्रस्तुत हैं मुख्य अंश: बाबा रामदेव से संत समाज क्यों नाराज़ है? संतों को दवाइयां नहीं बेचनी चाहिए और अगर दवाएं बेचनी ही हैं तो संत के वेश को त्याग देना चाहिए, व्यवसाइयों की वेशभूषा और परिवेश अपना लेना चाहिए. वह जो कर रहे हैं, वह बिल्कुल भी उचित नहीं है. वैसे राजनीति में
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अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने सबसे पहले बाबा रामदेव के खिला़फ आधिकारिक बयान दिए. डॉ. मनीष कुमार ने परिषद के राष्ट्रीय प्रवक्ता बाबा हठयोगी से बातचीत की. पेश हैं मुख्य अंश: बाबा रामदेव ने ऐसा क्या कर दिया है कि अचानक पूरा संत समाज, अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद और अखिल भारतीय संत समिति उनके पीछे हाथ धोकर पड़ गए हैं? नहीं, ऐसा नहीं है कि पूरा संत समाज हाथ धोकर बाबा रामदेव के पीछे पड़ गया है. अगर साधु ही
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हत्या, लूट, अपहरण, धोखाधड़ी, बाहुबल और धनबल का राजनीति से क्या रिश्ता है, अगर यह समझना हो तो बिहार की विधानसभा को देखिए. बिहार विधानसभा के उनसठ फीसदी विधायकों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं. बिहार की जनता की ओर से मिले ऐतिहासिक जनादेश का पहला तोह़फा मुख्यमंत्री ने दिया. ऐसा मंत्रिमंडल बनाया, जिसमें आधे कैबिनेट मंत्री दाग़दार हैं. ऐसे में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सामने क्या विकल्प है? बिहार की जनता ने ऐतिहासिक और अविश्वसनीय जनादेश दिया. चुनाव के परिणामों
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देश के मुख्य विपक्षी दल यानी भारतीय जनता पार्टी के अंदरखाने के हालात चिंताजनक हैं. वरिष्ठ नेताओं के बीच गलाकाट प्रतिस्पर्धा ने पार्टी की प्रतिष्ठा दांव पर लगा दी है. नतीजतन, पार्टी आम आदमी और उसकी समस्याओं से लगातार दूर होती जा रही है. अगर यह स्थिति बरक़रार रही तो वह दिन दूर नहीं, जबकि सरकार के साथ-साथ उसे भी जनता की नाराज़गी का सामना करना पड़ सकता है. महाभारत की लड़ाई में कौरवों के साथ ज़्यादा बड़े-बड़े योद्धा थे,
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प्रजातंत्र की एक खासियत है. इसकी लहर उठती है. एक-एक देश करके यह दुनिया में नहीं फैली है. आंदोलन या बदलाव की आंधी चली और कई देशों ने एक साथ प्रजातंत्र को अपनाया. प्रजातंत्र की पहली लहर ने पूरे यूरोप और अमेरिका में अपनी जगह बनाई. लोकतंत्र की दूसरी लहर द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद आई. जब भारत समेत कई देशों ने आज़ादी के बाद प्रजातंत्र को अपनाया. इसकी तीसरी लहर सोवियत ब्लॉक के टूटने के बाद आई, जब कई सोशलिस्ट
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कांग्रेस पार्टी सांपनाथ है, कांग्रेस मीठा ज़हर है, कांग्रेस ब्राह्मणवाद से ग्रसित पार्टी है, सांप्रदायिकता के मामले में कांग्रेस पार्टी भारतीय जनता पार्टी से कम नहीं है, अल्पसंख्यकों को सबसे बड़ा धोखा कांग्रेस पार्टी ने दिया है, कांग्रेस पार्टी दलितों और अल्पसंख्यकों की विरोधी है, बाबरी मस्जिद के विध्वंस में कांग्रेस पार्टी की भागीदारी है, गुजरात में कांग्रेस पार्टी सॉफ्ट हिंदूवादी पार्टी बन गई है, कांग्रेस पार्टी ने बड़े-बड़े नारे देकर देश की जनता को गुमराह करने में महारथ हासिल
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भारत का मुसलमान बदल गया है. वह मंदिर-मस्जिद से ज़्यादा विकास चाहता है, रोज़गार चाहता है. अब मुसलमान सानिया मिर्ज़ा की स्कर्ट को लेकर परेशान नहीं होता. बच्चों के लिए शिक्षा चाहता है, ताकि प्रतियोगिता के इस दौर में मुक़ाबला कर सके. उसकी डिमांड सेकुलर हो गई है. लेकिन अ़फसोस की बात यह है कि खुद को मुसलमानों का नेता और रहनुमा समझने वालों को ही इस बात की भनक नहीं है. मुसलमानों की चुनौतियां क्या हैं, इस विषय पर
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