मुस्लिम समाज का दर्द

muslim samaj ka dard

बिहार में आश्चर्यजनक चीजें होती हैं. मुसलमानों की समस्याओं पर सेमिनार हो, वक्ता राजनीतिक दलों के नेता और सामाजिक कार्यकर्ता हों और कोई आरएसएस और विश्व हिंदू परिषद की बात न करे, अगर कोई संघ परिवार और बजरंग दल को दोषी और अपराधी न बताए, अगर बाबरी मस्जिद का मुद्दा न उठे, अगर कोई भावनात्मक भाषण न दे, अगर मौलाना और मौलवी इस्लाम पर आने वाले खतरे को छोड़, शिक्षा और नौकरी की बातें करने लगें, तो हैरानी होती है.

लाइन में खडा़ किया गोली मारी और लाशें बहा दीं

goli maari dali

अगर न्याय में देरी का मतलब न्याय से वंचित होना है तो यह कह सकते हैं कि मेरठ के मुसलमानों के साथ अन्याय हुआ है. मई 1987 में हुआ मेरठ का दंगा पच्चीसवें साल में आ चुका है. इस दंगे की सबसे दर्दनाक दास्तां मलियाना गांव और हाशिमपुरा में लिखी गई. खाकी वर्दी वालों का जुर्म हिटलर की नाजी आर्मी की याद दिलाता है. मलियाना और हाशिमपुरा की सच्चाई सुनकर रूह कांप जाती है. देश की क़ानून व्यवस्था पर यह

पीछे हट गए रामदेव

piche hatgaye ramdeo

रामदेव के राजनीतिक भाषण के सीधे प्रसारण पर रोक रामदेव को कांग्रेस के एक नेता ने धमकी दी रामदेव की आरएसएस की विचारधारा से निकटता संतों ने रामदेव की पुस्तक जलाई जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा है, योगगुरु बाबा रामदेव के दोस्त और दुश्मन खुलकर सामने आने लगे हैं. बाबा के खिला़फ हरिद्वार के संत समाज के कुछ संत, अखाड़ा परिषद के कुछ बड़े-बड़े धर्माचार्य दुश्मन बनकर खड़े हो गए हैं. कांग्रेस पार्टी से उनकी दुश्मनी अब गहराती जा रही

नकली नोट रिजर्व बैंक और सरकार

RESERVE-BANK-and-INDIAN-GOVERNMENT

नकली नोट पर अब तक का सबसे बडा ख़ुलासा रिजर्व बैंक के ख़जाने में नकली नोट कैसे पहुँचे सीबीआई ने रिजर्व बैंक में क्यों छापा मारा नकली नोट के खुलासे से यूरोप में भुचाल क्यों आया देश के रिज़र्व बैंक के वाल्ट पर सीबीआई ने छापा डाला. उसे वहां पांच सौ और हज़ार रुपये के नक़ली नोट मिले. वरिष्ठ अधिकारियों से सीबीआई ने पूछताछ भी की. दरअसल सीबीआई ने नेपाल-भारत सीमा के साठ से सत्तर विभिन्न बैंकों की शाखाओं पर

बंगाल चुनाव: वामपंथ जीता पर वामपंथी हार गए

bengal chunav

राजनीतिक दलों को एक बीमारी लगने लगी है. यह बीमारी पहले भारतीय जनता पार्टी को लगी थी, अब कम्युनिस्ट पार्टियों को लग गई है. बीमारी यह है कि इन पार्टियों के पास विचारधारा तो है, लेकिन ये उस पर चलती नहीं हैं. इनके पास कार्यकर्ता हैं, लेकिन जनता से तालमेल बनाने की क्षमता नहीं है. मज़बूत संगठन भी है, लेकिन दिशाहीनता की चपेट में है. ज़मीन से जुड़े नेताओं की कमी नहीं है, लेकिन उनकी कोई सुनवाई नहीं है. पार्टी

एक था ओसामा

ek tha osama

चंगेज खान हो या औरंगज़ेब, माओ हो या स्टालिन या फिर सावरकर, इतिहास की किताबों में इनके बारे में जो लिखा गया है और जो हक़ीक़त है, उसमें का़फी फर्क़ है. यह फर्क़ इसलिए है, क्योंकि इतिहास हमेशा विजेताओं का हुआ करता है या शासकों का, पराजित या शासितों का नहीं होता है. इतिहास तो वही लिखवा सकते हैं और लिखवाते हैं, जो विजेता होते हैं और जो सत्ता में होते हैं. ओसामा बिन लादेन का इतिहास अमेरिका लिख रहा

अनिल अंबानी जेल में क्यों नहीं हैं

anil ambani

भ्रष्टाचार के मामले में मंत्री जेल जा सकता है, नेता गिरफ्तार हो सकते हैं, कभी-कभी तो अधिकारियों को भी कुर्सी छोड़नी पड़ती है. 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाले में कुछ कंपनियों के मालिकों पर केस चला, लेकिन जो बड़े खिलाड़ी हैं, उनके कर्मचारियों को जेल भेजा गया. अंबानी हों या फिर टाटा, इन बड़े-बड़े उद्योगपतियों में ऐसी क्या खास बात है कि सीबीआई इनके खिला़फ मुक़दमा दर्ज करने की हिम्मत नहीं कर सकी? आज के ज़माने में अमर सिंह जैसा दोस्त मिलना

अन्ना हजारे से चुक हो गई

anna se chuk ho gayi

ऐसा लगता है कि अन्ना हजारे और उनके साथियों का लक्ष्य जन लोकपाल बिल को लागू कराना नहीं, बल्कि उसका श्रेय लेना है. अगर जन लोकपाल बिल को लागू कराना मक़सद था तो एक ही दांव में जन लोकपाल बिल क़ानून बन जाता और सरकार को संभलने का मौक़ा तक न मिलता. अगर इस कमेटी में अरुण जेटली, सीताराम येचुरी, सुब्रमण्यम स्वामी, फाली एस नरीमन और अरविंद केजरीवाल होते तो ये सरकारी प्रतिनिधियों पर न स़िर्फ भारी पड़ते, बल्कि इस

अन्‍ना हजारे न महात्‍मा गांधी हैं और न लोकनायक जय प्रकाश नारायणः अन्ना को अन्ना ही रहने दो

anna hazare

जय प्रकाश जी के आंदोलन का स्कोप बड़ा था. वह व्यवस्था परिवर्तन के लिए आंदोलन कर रहे थे. उन्होंने संपूर्ण क्रांति का नारा दिया था. अन्ना हजारे और जय प्रकाश नारायण में एक बड़ा अंतर यह है कि अन्ना ख़ुद इस आंदोलन के जनक थे. लोकपाल बिल की मांग पर वह ख़ुद अनशन पर बैठ गए. मीडिया ने जब इसे दिखाया तो समर्थन बढ़ने लगा, इंटरनेट के माध्यम से लोग जुड़ने लगे और आंदोलन बड़ा हो गया. जय प्रकाश जी

भ्रष्‍ट व्‍यवस्‍था को उड़ा ले जाएगी अन्‍ना की आंधी

lokpal anna

लोकपाल क़ानून 42 साल से अधर में सरकार का लोकपाल कमज़ोर है सरकारी लोकपाल बिल एक राजनीतिक चाल युवा वर्ग राहुल नहीं, अन्ना के साथ 50 से अधिक देशों में लोकपाल मौजूद देश भर में अन्ना हजारे की जय जयकार, भ्रष्टाचार के ख़िला़फ आंदोलन की गूंज, शहरी युवाओं का सड़कों पर उतरना और कैंडिल मार्च, यह सब एक नई राजनीति की शुरुआत के संकेत हैं. भारत की राजनीति एक ऐसे मोड़ पर खड़ी है, जहां सत्तापक्ष और विपक्ष के मायने