प्रियंका ख़ुद को प्रियंका रॉबर्ट वाडरा लिखती हैं, लेकिन कांग्रेस उन्हें प्रियंका गांधी के रूप में सामने लाना चाहती है, क्योंकि लोगों के मन में यही नाम सालों से चमक रहा है. बिहार चुनाव में कांग्रेस इस सुपर तुरुप के पत्ते का इस्तेमाल करने जा रही है, इसके बाद उत्तर प्रदेश और फिर लोकसभा के चुनाव में भी जीत की आशा केवल और केवल प्रियंका गांधी ही हैं. राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए लोकसभा में पूर्ण बहुमत अनिवार्य शर्त है और कांग्रेस हर क़ीमत पर यह शर्त जीतना चाहती है. कांग्रेस इस क़दम से एक ओर विपक्षी दलों को धराशायी करना चाहती है और दूसरी ओर राजीव गांधी जैसा बहुमत राहुल गांधी के लिए हासिल करने का सपना पाल रही है.
कांग्रेस पार्टी प्रियंका गांधी को बिहार के चुनावी दंगल में उतारने वाली है. कांग्रेस के चुनाव प्रचार में प्रियंका का सबसे अहम रोल होगा. चुनाव से पहले और चुनाव प्रचार के दौरान प्रियंका के बिहार दौरे की तैयारी शुरू हो गई है. बिहार के पार्टी संगठन का जायज़ा लिया जा रहा है, जिसके बाद यह तय होगा कि वह किस ज़िले में कब जाएंगी. कांग्रेस पार्टी चाहती है कि बिहार में प्रियंका का ज़्यादा से ज़्यादा इस्तेमाल किया जाए. प्रियंका को बिहार के दो सौ से ज़्यादा जगहों पर घुमाया जाएगा. प्रियंका को बिहार चुनाव में सक्रिय करने के पीछे कांग्रेस का उद्देश्य बिहार में सरकार बनाना नहीं है, बल्कि यह गांधी परिवार की सबसे महत्वपूर्ण और सबसे चुनौतीपूर्ण योजना का एक हिस्सा है, जिसके तहत 2014 के लोकसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत दिलाकर राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाना है.
कांग्रेस के लिए 2014 का लोकसभा चुनाव करो या मरो की स्थिति जैसा है, लेकिन बिहार और उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के संगठन की स्थिति अच्छी नहीं है. इन राज्यों में स़िर्फ संगठन की ताक़त पर कांग्रेस चुनाव नहीं लड़ सकती है. कांग्रेस के रणनीतिकारों को यह लगता है कि प्रियंका इस स्थिति से निजात दिला सकती हैं. वह संगठन को दरकिनार करके सीधे जनता से संवाद स्थापित करने में पूरी तरह से सक्षम हैं. सोनिया गांधी को इस बात पर भरोसा है कि मज़बूत संगठन न होने के नुक़सान की भरपाई प्रियंका अपनी छवि और योग्यता से कर सकेंगी. प्रियंका में वह प्रतिभा है कि गरीबी हटाओ जैसे नारों को जन्म दे सकती हैं. वह मुद्दे को जनता का नारा बनाने में सक्षम हैं. ऐसे नारों के सहारे किसी भी चुनाव के माहौल बदला जा सकता है. प्रियंका की इसी काबिलियत से देश भर के नेता भयभीत हैं. कांग्रेस पार्टी भी जानती है कि जब प्रियंका चुनाव के प्रचार में उतरेंगी तो विरोधियों में भगदड़ मच जाएगी.
कांग्रेस पार्टी ने यह तय कर लिया है कि राहुल गांधी को 2014 में देश का प्रधानमंत्री बनाना है. पार्टी 2019 तक इंतज़ार नहीं करना चाहती है. इस योजना को साकार करने के लिए पार्टी ने अभी से ही तैयारी शुरू कर दी है. राहुल गांधी अपनी टीम के साथ मिलकर पार्टी संगठन को अपने हिसाब से शक्ल देने में लगे हैं. इस योजना के बारे में कांग्रेस पार्टी के नेताओं को पुख्ता ख़बर नहीं है. कांग्रेस के रणनीतिकारों को यह लगता है कि अगर पार्टी को लोकसभा चुनाव 2014 में बहुमत पाना है तो बिहार और उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव उसे जीतने होंगे. पहला इम्तहान बिहार में होना है. बिहार में पार्टी की स्थिति मज़बूत करना ज़रूरी है. वहां विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को बिहार में स़िर्फ दो सीटें मिली थीं. बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस प्रियंका के ज़बरदस्त प्रचार के ज़रिए बिखरी हुई पार्टी को संगठित करना चाहती है. पार्टी संगठन न भी हो, क्योंकि इतनी जल्दी संगठन नहीं बनता, पर मतदाताओं को प्रभावित किया जा सकता है. चुनाव के नज़रिए से पुराने वोटबैंक को वापस खींचना, युवाओं के बीच पार्टी को लोकप्रिय बनाना और महिलाओं एवं अल्पसंख्यकों का विश्वास हासिल करना जैसे बिंदु प्रियंका के एजेंडे में प्रमुखता से डाले गए हैं. कांग्रेस पार्टी को लगता है कि जिस तरह राहुल गांधी ने लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में करिश्मा किया, वैसा ही करिश्मा बिहार में प्रियंका गांधी करने में सफल होंगी.
अब सवाल है कि क्या प्रियंका बिहार में यह कमाल दिखा पाएंगी? लोगों को प्रियंका में इंदिरा गांधी की झलक दिखाई देती है. प्रियंका में एक एक्स फैक्टर है. पिछले चुनाव में जिस तरह प्रियंका ने मोदी को जवाब दिया, कांग्रेस बुढ़िया पार्टी है के जवाब में जिस तरह उन्होंने कांग्रेस गुड़िया पार्टी है कहा, उसे लोगों ने ज़्यादा पसंद किया. प्रियंका ने बड़ी समझदारी के साथ अपनी मार्केटिंग भी की है. उन्होंने सबसे पहले ख़ुद को दादी इंदिरा गांधी जैसा बताया. सबूत में नाक दिखाई और कहा कि यह इंदिरा गांधी जैसी है और फिर अपनी साड़ियों के बारे में बताया कि वे तो उनकी दादी की ही हैं. इतना ही नहीं, साड़ियां भी वह इंदिरा जी की तरह ही पहनती हैं. प्रियंका ने संदेश दे दिया कि वह न केवल बहादुर हैं, बल्कि विपक्ष का सामना भी कर सकती हैं और देश को बेहतर युवा नेतृत्व दे सकती हैं. प्रियंका 2004 में पहली बार चुनाव प्रचार में उतरीं. उन्होंने अपना सिक्का रायबरेली में आजमाया. यहां कांग्रेस पार्टी की तऱफ से गांधी परिवार के क़रीबी सतीश शर्मा और भाजपा के उम्मीदवार अरुण नेहरू थे, जो किसी जमाने में राजीव गांधी के क़रीबी थे. प्रियंका के रायबरेली में आते ही चुनावी माहौल बदल गया. उनका पहला भाषण ही इतना प्रभावी था कि उनके विरोधियों के भी होश उड़ गए. रायबरेली की पहली मीटिंग में प्रियंका ने कहा, मुझे आपसे एक शिक़ायत है. मेरे पिता के मंत्रिमंडल में रहते हुए जिसने गद्दारी की, भाई की पीठ में छुरा मारा, जवाब दीजिए, ऐसे आदमी को आपने यहां घुसने कैसे दिया? उनकी यहां आने की हिम्मत कैसे हुई?
प्रियंका ने यह भी कहा, यहां आने से पहले मैंने अपनी मां से बात की थी. मां ने कहा कि किसी की बुराई मत करना. मगर मैं जवान हूं, दिल की बात आपसे न कहूं तो किससे कहूं? प्रियंका गांधी जहां जातीं, वहां इंदिरा गांधी और राजीव गांधी को याद करना नहीं भूलतीं. रायबरेली के इस चुनाव में प्रियंका ने कहा कि मुझे यहां आकर गर्व महसूस हो रहा है. यह इंदिरा जी की कर्मभूमि है. वह मेरी दादी ही नहीं थीं, सारी जनता की मां भी थीं. इस चुनाव में अरुण नेहरू (भाजपा) और सतीश शर्मा (कांग्रेस) आमने-सामने थे. चुनाव प्रचार के दौरान दोनों ही एक-दूसरे पर सीधा हमला करने से बचते रहे. अरुण नेहरू की जीत लगभग पक्की थी, लेकिन प्रियंका ने चुनाव से तीन दिन पहले आकर ऐसा माहौल बना दिया कि सतीश शर्मा जीत गए. यही प्रियंका गांधी का जादू है. उनमें जनता को इंदिरा गांधी की झलक दिखती है. इसी जादू का इस्तेमाल कांग्रेस पार्टी बिहार में करना चाहती है. बिहार के चुनाव में प्रियंका का जादू कितना चलेगा, यह अभी कहा नहीं जा सकता है, लेकिन इतना ज़रूर है कि बिहार में अपनी ज़मीन खो चुकी कांग्रेस मज़बूत होगी, जिसका फायदा उसे 2014 के लोकसभा चुनाव में मिलेगा.
2014 के चुनाव का अंकगणित कांग्रेस पार्टी के लिए अच्छा नहीं है. अगर राहुल गांधी को पूर्ण बहुमत के साथ प्रधानमंत्री बनाना है तो संगठन को मज़बूत करने के साथ-साथ कई तरह के राजनीतिक दांव खेलने पड़ेंगे. राहुल गांधी के लिए माहौल बनाना पड़ेगा. ऐसी स्थिति पैदा करने की ज़रूरत पड़ेगी कि देश की जनता को यह लगे कि कांग्रेस का कोई विकल्प नहीं है. 2009 के चुनाव में कांग्रेस पार्टी को अभूतपूर्व सफलता मिली. लोकसभा में कांग्रेस पार्टी के सदस्यों की संख्या 203 है. कई राज्यों में तो कांग्रेस ने इतनी सीटें जीतीं, जिसे फिर से दोहराना नामुमकिन सा है. 2009 में कांग्रेस ने दिल्ली, हरियाणा, उत्तराखंड, अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर की लगभग सारी सीटें जीत लीं. इन राज्यों में फिर से ऐसा करिश्मा दिखाना मुश्किल होगा. आंध्र प्रदेश में 42 में से 33 सीटें जीतकर कांग्रेस ने इतिहास रच दिया. इसके अलावा असम में 7, गुजरात में 11, केरल में 13, मध्य प्रदेश में 12, पंजाब में 8 और राजस्थान में 20 सीटें जीतकर कांग्रेस ने तमाम राजनीतिक विश्लेषकों को आश्चर्यचकित कर दिया. उत्तर प्रदेश में पार्टी 21 सीटें जीतकर दूसरे स्थान पर रही और महाराष्ट्र में उसे 17 सीटें मिलीं. भारतीय राजनीति का तकाज़ा यह है कि हर चुनाव में 30 फीसदी वर्तमान विजेता चुनाव हार जाता है. आंकड़े अगर सच होते हैं तो इसका मतलब यह है कि 2014 के चुनावों में इन राज्यों में कांग्रेस की सीटें कम होंगी. अगर आंकड़ों पर यक़ीन न भी किया जाए, फिर भी यह कहा जा सकता है कि इन राज्यों में ऐसी जीत फिर से हासिल करना नामुमकिन है. सोनिया गांधी इसी नामुमकिन चुनौती को मुमकिन बनाने की तैयारी में जुट गई हैं. कांग्रेस की रणनीति यह है कि जिन राज्यों में 2009 के चुनाव में कम सीटें आई हैं, वहां पार्टी को मजबूत करना है, ताकि 2014 के आम चुनाव में 203 से ज़्यादा सीटें मिल सकें और राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाया जा सके. कांग्रेस पार्टी को यह भी लग रहा है कि 2014 अच्छा मौक़ा है, क्योंकि विपक्षी पार्टियां कमज़ोर हो रही हैं और कोई भी पार्टी फिलहाल कांग्रेस को चुनौती देने के क़ाबिल नहीं है. अगर यह मौक़ा हाथ से निकल गया तो काफी देर हो जाएगी. कांग्रेस पार्टी राहुल को प्रधानमंत्री बनाने के लिए 2019 तक का इंतज़ार करने को तैयार नहीं है.
कांग्रेस की जीत में रोज़गार गारंटी योजना, महिलाओं को सुरक्षा गारंटी, महिला शिक्षा योजना, स्वास्थ्य सुरक्षा योजना, किसानों की क़र्ज़ माफी योजना एवं पिछड़ी जातियों के लिए योजना आदि लोकलुभावन कामों का बड़ा हाथ रहा है. इसलिए नई सरकार में विकास का पहिया और भी तेज़ी से दौड़ना तय है. सोनिया गांधी का नेशनल एडवाइज़री काउंसिल का अध्यक्ष बनना भी कांग्रेस की रणनीति का हिस्सा है. इसके ज़रिए आने वाले समय में ग़रीबों, अल्पसंख्यकों एवं ग्रामीणों के विकास की विभिन्न योजनाएं और मनरेगा आदि जैसी योजना सही ढंग से लागू हों, इस पर सोनिया गांधी का पूरा ध्यान रहेगा. इससे महिला आरक्षण, नरेगा, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं ग्रामीण विकास आदि की सफलताओं का क्रेडिट सोनिया गांधी को मिलेगा. इसके अलावा भी कांग्रेस 2014 के आम चुनाव की तैयारी में लग गई है. कांग्रेस के लिए उत्तर प्रदेश और बिहार में पार्टी को मजबूत करना कितना जरूरी है, इसके सबूत हमें 14 अप्रैल को अंबेडकरनगर में हुई रैली से मिलते हैं. कांग्रेस पार्टी ने इस रैली में कहीं भी कुछ भी संसाधन और पैसा मुहैया कराने में कोई कसर नहीं छोड़ी. देश के सारे कांग्रेसी मंत्रियों और मुख्यमंत्रियों को यह बात साफ-साफ बता दी गई है कि पार्टी संगठन और खासकर राहुल गांधी के किसी भी कार्यक्रम में साधनों की कमी नहीं होनी चाहिए. सामाजिक कार्यों के ज़रिए ग्रामीण इलाक़ों में कांग्रेस पार्टी को मज़बूत करने के लिए ग़ैर सरकारी संस्थान खोले जा रहे हैं और उन्हें धन मुहैया कराया जा रहा है. इसके अलावा कांग्रेस पार्टी अख़बार और टीवी चैनल खोलने की तैयारी में है, ताकि पार्टी के कामों का ज़्यादा से ज़्यादा प्रचार हो सके. साथ ही राहुल गांधी ने संगठन को मजबूत करने की जिम्मेदारी खुद पर ले ली है. वह बिहार और उत्तर प्रदेश में युवाओं को मौका देना चाहते हैं. उनकी रणनीति यह है कि 2014 के चुनावों में बिहार और उत्तर प्रदेश में नए चेहरे मैदान में उतरें. उन्हें लगता है कि पुराने नेताओं की छवि और उनके आपसी झगड़ों की वजह से इन राज्यों में पार्टी की यह दुर्गति हुई है. राहुल गांधी एनएसयूआई और यूथ कांग्रेस के नेताओं को प्रोत्साहन देना चाहते हैं. राहुल गांधी की यह योजना है कि बिहार और उत्तर प्रदेश में 2014 के चुनाव में स्वच्छ छवि वाले युवा उम्मीदवारों को ज्यादा से ज्यादा टिकट दिया जाए. यही वजह है कि इन दोनों संगठनों की देखरेख का काम राहुल के तुगलक रोड स्थित आवास से हो रहा है. कांग्रेस कार्यकर्ताओं के बीच यह दफ्तर राहुल सचिवालय के नाम से जाना जाता है. बताया यह जा रहा है कि इस दफ्तर से पार्टी संगठन को सिर्फ निर्देश दिए जा रहे हैं, यहां सलाह-मशविरों के लिए कोई जगह नहीं है.
2014 में कांग्रेस के सामने कई चुनौतियां होंगी. पिछली बार कांग्रेस के पक्ष में लोगों की राय इसलिए सबसे ज़्यादा बनी कि राहुल गांधी एवं सोनिया गांधी ने साफ कहा कि उन्हें प्रधानमंत्री नहीं बनना है, जबकि बाक़ी दलों में प्रधानमंत्री पद के कई-कई दावेदार घूम रहे थे. भारत की जनता ने इन्हें इसलिए पसंद किया, क्योंकि ऐसे लोग कम होते हैं, जो सत्ता हाथ में रहते हुए भी सत्ता के शीर्ष पर नहीं जाते. कांग्रेस की दूसरी चुनौती यह होगी कि केंद्र सरकार को महंगाई और बेरोज़गारी को प्राथमिकता देनी होगी. सही प्रशासन, कमज़ोर वर्गों के लिए योजनाएं, किसानों की आत्महत्या पर रोकथाम और खेती को लाभकारी बनाने जैसे बिंदु भी उसे अपनी प्राथमिकताओं में शामिल करने होंगे. दलित एवं अल्पसंख्यक ख़ुद को सुरक्षित समझें, उन्हें आर्थिक विकास का फायदा और राजनीतिक प्रक्रिया में भागीदारी मिले, यह भी सरकार का कर्तव्य है. अल्पसंख्यकों के लिए, ख़ासकर रंगनाथ मिश्र आयोग की रिपोर्ट को अविलंब लागू करना होगा. इसके अलावा मनमोहन सरकार को इस बात से भी सतर्क रहने की ज़रूरत है कि 2014 तक कोई आर्थिक घोटाले न हों. कांग्रेस पार्टी अगर इन बातों का ध्यान रखेगी तो उसे देश में हर जगह प्यार एवं समर्थन मिलेगा. और, उसकी महायोजना सफल हो सकती है.