- रामदेव के राजनीतिक भाषण के सीधे प्रसारण पर रोक
- रामदेव को कांग्रेस के एक नेता ने धमकी दी
- रामदेव की आरएसएस की विचारधारा से निकटता
- संतों ने रामदेव की पुस्तक जलाई
जैसे-जैसे समय बीतता जा रहा है, योगगुरु बाबा रामदेव के दोस्त और दुश्मन खुलकर सामने आने लगे हैं. बाबा के खिला़फ हरिद्वार के संत समाज के कुछ संत, अखाड़ा परिषद के कुछ बड़े-बड़े धर्माचार्य दुश्मन बनकर खड़े हो गए हैं. कांग्रेस पार्टी से उनकी दुश्मनी अब गहराती जा रही है, वहीं भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की दोस्ती रंग बिखेरने लगी है. जैसे-जैसे बाबा रामदेव की राजनीति परवान चढ़ेगी, वैसे-वैसे सवाल भी उठने लगेंगे. इन सवालों का जवाब रामदेव को देना होगा. मसलन, अगर उनकी पार्टी चुनाव लड़ती है तो उसकी विचारधारा क्या होगी, आर्थिक नीति क्या होगी, दलितों-किसानों-मजदूरों के लिए रामदेव की पार्टी क्या करेगी, विदेश नीति क्या होगी, रक्षा नीति क्या होगी. बाबा रामदेव अपने भाषणों में व्यवस्था बदलने की बात तो करते हैं, लेकिन व्यवस्था बदल कर वैकल्पिक व्यवस्था कैसी होगी, यह उन्हें देश की जनता को बताना चाहिए.
कांग्रेस पार्टी के नेता अब बाबा रामदेव को धमकी दे रहे हैं कि तुम राजनीति में मत आओ. तुम अपना धर्म-कर्म का काम करो. ये कांग्रेसी नेता किस हैसियत से बाबा रामदेव को धमकी दे रहे हैं.
– विश्वबंधु गुप्ता
कांग्रेस पार्टी अब बाबा रामदेव को सरकारी ताक़त का एहसास कराने में लगी है. पहली बार बाबा रामदेव बैकफुट पर नज़र आ रहे हैं. काले धन और भ्रष्टाचार के खिला़फ उनके स्वाभिमान आंदोलन को 23 मार्च को झटका लगा. उस दिन हरियाणा के झज्जर में उनकी रैली थी. इसका ऐलान वह पहले ही कर चुके थे. क़रीब 20 हज़ार लोग जमा भी हुए, लेकिन देश में किसी को पता नहीं चल सका कि बाबा रामदेव ने क्या कहा, उनके साथियों ने राजनीतिक दलों पर क्या नए आरोप लगाए, भ्रष्टाचार और काले धन से रामदेव की लड़ाई में क्या नया मोड़ आया. दिल्ली के रामलीला मैदान में हुई रैली के बाद रामदेव से देश की जनता की उम्मीदें बढ़ गई थीं, लेकिन आस्था चैनल पर रामदेव के भाषण को लाइव दिखाने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है. प्रतिबंध इसलिए लगाया गया है कि आस्था चैनल को धार्मिक कार्यक्रम दिखाने के लिए लाइसेंस दिया गया है. उस चैनल पर राजनीतिक कार्यक्रम नहीं दिखाया जा सकता है. सरकार कहती है कि आपका धार्मिक चैनल है. आप धर्म की बात करें, आत्मा-परमात्मा की बात करें. राजनीति की बातें धार्मिक चैनल पर करना मना है. झज्जर में रैली हुई, लेकिन आस्था पर इसका लाइव प्रसारण नहीं हुआ. दूसरे चैनलों ने भी इसे न तो लाइव दिखाया और न ही बाद में इस रैली के बारे में कोई खबर दी. देश के कई चैनलों के मालिकों से बाबा रामदेव की दोस्ती है, फिर भी किसी ने बाबा रामदेव को न तो दिखाया और न ही कोई खबर दी. इसकी वजह जानना भी दिलचस्प होगा. दिल्ली के अ़खबारों में भी बाबा रामदेव की रैली का नामोनिशान नहीं मिला.
रामदेव की आवाज़ बंद करने से रामदेव का क़द बढ़ रहा है. दिलों में रामदेव बड़े थे ही, अब दलों में भी रामदेव बड़े हो गए हैं, वर्ना एक फक़ीर की आवाज़ से सरकार को क्या खतरा हो सकता है.
– कल्बे रूशैद रिज़वी
इस मामले में हमने बाबा रामदेव के साथियों से बातचीत की, जो स्वाभिमान आंदोलन में उनके साथ हैं. उनका मानना है कि यह नोटिस ग़ैर कानूनी है. यह आर्टिकल 19 के विरोध में है, जिसके तहत विचार की अभिव्यक्ति का अधिकार है. इस पर दो तरह की रोक है. पहली यह कि अपने विचारों से हिंसा भड़काने पर मनाही है और दूसरी यह कि भारतीय संविधान के खिला़फ बोलना मना है. अब सवाल उठता है कि क्या बाबा सांप्रदायिक बातें कर रहे हैं, हिंसा भड़काने वाला भाषण देते हैं या फिर संविधान के खिला़फ बोल रहे हैं. सबसे चौंकाने वाली बात स्वाभिमान आंदोलन में रामदेव के सहयोगी एवं इनकम टैक्स विभाग के पूर्व कमिश्नर विश्वबंधु गुप्ता ने बताई. उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी के नेता अब बाबा रामदेव को धमकी दे रहे हैं कि तुम राजनीति में मत आओ. तुम अपना धर्म-कर्म का काम करो. ये कांग्रेसी नेता किस हैसियत से बाबा रामदेव को धमकी दे रहे हैं. बाबा को टेलीफोन पर यह धमकी दे गई है. वहीं भारत स्वाभिमान आंदोलन में रामदेव के क़रीबी इस्मालिक धर्मगुरु मौलाना क़ल्बे रूशैद रिज़वी ने कहा कि इतनी बड़ी सरकार, जिसका नाम भारत सरकार है, अगर वह सरकार रामदेव की आवाज़ बंद कर रही है तो उससे रामदेव का कद बढ़ रहा है. दिलों में रामदेव बड़े थे ही, अब दलों में भी रामदेव बड़े हो गए हैं, वर्ना एक फकीर की आवाज से सरकार को क्या खतरा हो सकता है. झज्जर की रैली में लोग उत्तेजित थे. सब यह सवाल कर रहे थे कि बाबा रामदेव के भाषण के सीधे प्रसारण को सरकार ने सेंसर क्यों किया. बाबा रामदेव ने इन लोगों से कहा-सब्र रखो, मैंने तो बाण छोड़ दिया है, लगेगा ज़रूर. जल्दी नहीं लगेगा तो देर से लगेगा, लेकिन छाती के बीच में लगेगा. आस्था चैनल पर रामदेव की रैलियों के प्रसारण पर प्रतिबंध लगाकर सरकार ने अपनी ताक़त दिखाई, लेकिन इस पर बाबा रामदेव क्या करेंगे, यह देखना बाकी है.
कांग्रेस पार्टी और बाबा रामदेव आमने-सामने क्यों हो गए. क्या मतभेद स़िर्फ काले धन को लेकर है, क्या कांग्रेस इसलिए नाराज़ है कि बाबा रामदेव के मंच से गांधी परिवार पर आरोप लगाए जा रहे हैं. बाबा की दोस्ती गांधी परिवार के दुश्मनों से हो गई है, इसलिए तो कांग्रेस आगबबूला नहीं है. वैसे रामदेव ने कई बार यह कहा है कि उनकी किसी पार्टी से शत्रुता नहीं है, लेकिन वह देश के भ्रष्ट तंत्र के खिला़फ आंदोलन कर रहे हैं. इसलिए बाबा रामदेव के निशाने पर वर्तमान सरकार है. बाबा रामदेव यह संदेश देना चाहते हैं कि अगर सरकार में भाजपा भी होती तो भी वह आंदोलन करते. क्या सचमुच ऐसा है.
रामदेव के आंदोलन का पहला लक्ष्य काला धन वापस लाना है और विदेशी बैंकों में काला धन जमा करने वालों को बेनक़ाब कर उन्हें दंडित करना है. इस मुहिम में बाबा के साथ पूरे देश को खड़ा होना चाहिए. विदेशी बैंकों में जमा भारत का धन अगर वापस आ गया तो सचमुच देश के वारे-न्यारे हो जाएंगे, इसमें कोई शक़ नहीं है. बाबा की इस मुहिम का विरोध करना देशद्रोह की तरह है. लेकिन एक सवाल उठता है कि क्या देश का काला धन स़िर्फ विदेशी बैंकों में है. देश में जो काला धन है, जमाखोरी है, कालाबाज़ारी है, उसका क्या होगा. काले धन से बाबा रामदेव का आशय देश के बड़े पूंजीपतियों से है, जिन्होंने देश के लोगों के खून-पसीने की कमाई विदेश में जमा कर रखी है. लेकिन हमारे देश में मध्यमवर्गीय पूंजीपति भी हैं, जिसका सीधा रिश्ता भी आम लोगों से होता है. पूंजीपतियों की जो बी श्रेणी है, इस काले धन की कोई बात क्यों नहीं कर रहा है. देश में जो काला धन पड़ा हुआ है, उसका क्या होगा. विदेश से काले धन को लाया जाए, उसमें पूरा हिंदुस्तान बाबा रामदेव के साथ है. बाबा रामदेव को विदेश में जमा काले धन के साथ देश के अंदर मौजूद काले धन को बाहर निकालने के लिए भी अपनी मुहिम में जगह देनी चाहिए. दिल्ली की एक मशहूर दुकान है, जब भी वहां छापा पड़ता है तो घी के कनस्तर में हज़ार रुपये की गड्डी मिलती है. असलियत यह है कि जितना विदेश में काला धन है, उससे कई गुना ज़्यादा भारत में काला धन है. जो कहीं हीरे के रूप में है, सोने के रूप मे है, कैश के रूप में है, जिसे लोग जमीन के अंदर गाड़कर रखते हैं. देश में मौजूद काला धन ही भ्रष्टाचार की जननी है. घूस में जो पैसा दिया जाता है, वह स़फेद नहीं, काला धन ही होता है. अगर देश के अंदर मौजूद काले धन को पकड़ा जाए तो देश के वारे-न्यारे होने के साथ-साथ भ्रष्टाचार भी खत्म हो जाएगा. उसके खिला़फ बाबा रामदेव क्यों नहीं बोलते हैं. इससे भी महत्वपूर्ण सवाल यह है कि क्या स़िर्फ विदेश में जमा काले धन को वापस लाने से भारत में व्यवस्था परिवर्तन हो जाएगा.
बाबा रामदेव देश को नई दिशा पर ले जाना चाहते हैं. काले धन को वापस लाना, भ्रष्टाचार खत्म करना आदि किसी भी दल का एक एजेंडा हो सकता है. देश को चलाने के लिए एक संगठित विचारधारा की जरूरत होती है, जिससे देश की आर्थिक नीति, विदेश नीति, रक्षा नीति और विकास का रास्ता तय होता है. बाबा रामदेव से यह सवाल इसलिए पूछा जाना लाजिमी है, क्योंकि उन्होंने यह ऐलान किया है कि उनकी पार्टी 542 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. देश की जनता का यह हक़ बनता है कि चुनाव से पहले वह यह जाने कि रामदेव की पार्टी की विचारधारा क्या है.
बाबा रामदेव ने अब तक अपने आंदोलन या पार्टी की कोई समग्र और संगठित विचारधारा पेश नहीं की है. वह अपने शिविरों और रैलियों में राजनीति के बारे में बातें करते हैं. उनकी बातों से लगता है कि बाबा रामदेव भारत में स्वदेशी व्यवस्था, अंगे्रजी भाषा के बहिष्कार, गोहत्या के विरोध और अखंड भारत के पैरोकार हैं. रामदेव के भाषणों से जो बात समझ में आती है, उससे यही लगता है कि बाबा रामदेव की विचारधारा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारा एक जैसी है. रामलीला मैदान में बाबा रामदेव ने कहा कि स्विस बैंकों से चार सौ करोड़ भारत लाना है और गौ हत्या के पाप से भी देश को बचाना है. गो हत्या को अपराध संघ भी मानता है. भारतीय जनता पार्टी की सरकार जिस राज्य में आती है, गौ हत्या पर प्रतिबंध लगाती है. बाबा रामदेव कहते हैं कि वह देश में स्वदेशी तंत्र, स्वदेशी व्यवस्था, स्वदेशी के काम को आगे बढ़ाना चाहते हैं. अब यह स्वदेशी व्यवस्था क्या है. कई सालों से आरएसएस स्वदेशी का आंदोलन चला रहा है. बाबा के स्वदेशी और संघ के स्वदेशी में कोई अंतर है भी या नहीं. यह रामदेव को स़फाई से बताना चाहिए. बाबा रामदेव अपने भाषणों में कहते हैं कि भाषा के नाम पर इस देश के करोड़ों लोगों के साथ अन्याय हो रहा है. दुनिया का कोई स्वतंत्र देश विदेशी भाषा में नहीं पढ़ता है. यह अन्याय भी मिटाना है. स्वतंत्र भारत में जो अंग्रेजी तंत्र चल रहा है, उसे भी मिटाना है. अब सवाल है कि अगर हिंदी को हम पूरे देश में लागू करेंगे तो दक्षिण और पूर्वोत्तर के राज्यों में आंदोलन होंगे तो उन्हें क्या जवाब दिया जाएगा. मज़ेदार बात यह है कि आरएसएस भी अंग्रेजी के बहिष्कार और हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने का पक्षधर है. काले धन पर भी रामदेव ने भाजपा वाली लाइन ले ली. विदेश में जमा काले धन को निशाना बनाया. आश्चर्य की बात यह है कि पिछले लोकसभा चुनाव में आडवाणी ने काले धन का मामला उठाया, तबसे बाबा रामदेव ने भी उस काले धन को मुख्य मुद्दा बनाया, जो विदेश में है. एक और मुद्दा चौंकाने वाला है. देश में यह अकेला राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ही है, जो इक्कीसवीं सदी में भी अखंड भारत की बातें करता है और यही सपना बाबा रामदेव की आंखों में नज़र आता है. दिल्ली के रामलीला मैदान में हुई रैली में बाबा रामदेव ने यह कहकर सबको चौंका दिया कि अ़फगानिस्तान से लेकर बर्मा तक और कैलाश मान सरोवर जो भारत का मुकुट है, उसे भी भारत में वापस लाना है. हो सकता है, बाबा रामदेव अति उत्साह में यह बात कह गए होंगे, लेकिन मंच पर बैठे मुस्लिम नेता भी बाबा की इस बात को सुनकर सहम गए. बाबा रामदेव की बातों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का एजेंडा झलकता है. इसमें कोई शक़ नहीं है कि भारत में जितनी भी पार्टियां या संगठन हैं, उनमें बाबा रामदेव की सबसे ज़्यादा वैचारिक निकटता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से है.
सरकार ने आस्था चैनल पर राजनीतिक भाषण पर प्रतिबंध ज़रूर लगा दिया, लेकिन बाबा रामदेव और उनके समर्थकों को एक न्यूज चैनल लगाने में ज़्यादा व़क्त नहीं लगेगा. जिस पर दिन भर बाबा रामदेव बोलेंगे. भारत एक अजीबोग़रीब देश है. यहां धर्म और राजनीति में फर्क़ कर पाना बड़ा मुश्किल है. हिंदुस्तान ऐसा देश है, जहां धर्म और राजनीति एक-दूसरे के विरोधाभासी नहीं, बल्कि कई मायनों में पूरक भी हैं. हिंदुस्तान में तो मजहब के बिना सियासत अंधी है और सियासत के बिना मजहब लंगड़ा है. बाबा रामदेव पूरे देश को नेतृत्व देना चाहते हैं. इस देश में हिंदुओं के अलावा दूसरे धर्मों के लोग भी हैं. बाबा रामदेव को देश के हर धर्म, जाति एवं क्षेत्र के लोगों के सामाजिक और आर्थिक विकास का एजेंडा लोगों के सामने रखना होगा. भारतीय जनता पार्टी की बी टीम बनकर देश में व्यवस्था परिवर्तन नहीं लाया जा सकता. वैसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को इस बात से खुश होना चाहिए कि उनकी विचारधारा को फैलाने का काम देश का सबसे लोकप्रिय संत कर रहा है. भारतीय जनता पार्टी को इस बात से खुश होना चाहिए कि जिस विचारधारा को आगे बढ़ाने और मानने में उसे शर्मिंदगी महसूस होती है, वह काम बाबा रामदेव कर रहे हैं. वैसे देश की राजनीति में दोस्त मिलना मुश्किल है और सामने से लड़ने वाले दुश्मन तो और भी मुश्किल से मिलते हैं. कांग्रेस पार्टी को इस बात से खुश होना चाहिए कि जिस विचारधारा से वह लड़ने का दंभ भरती हैं, उसी एजेंडे को लेकर रामदेव आमने-सामने लड़ने को तैयार हैं. वैसे भारत की राजनीति में छिपकर वार करने की परंपरा बरसों से चली आ रही है. एजेंडे को सामने रखकर सीधी लड़ाई लड़ने वाले राजनेता रामदेव का स्वागत होना चाहिए.