भारत का मुसलमान बदल गया है. वह मंदिर-मस्जिद से ज़्यादा विकास चाहता है, रोज़गार चाहता है. अब मुसलमान सानिया मिर्ज़ा की स्कर्ट को लेकर परेशान नहीं होता. बच्चों के लिए शिक्षा चाहता है, ताकि प्रतियोगिता के इस दौर में मुक़ाबला कर सके. उसकी डिमांड सेकुलर हो गई है. लेकिन अ़फसोस की बात यह है कि खुद को मुसलमानों का नेता और रहनुमा समझने वालों को ही इस बात की भनक नहीं है.
मुसलमानों की चुनौतियां क्या हैं, इस विषय पर जयपुर में एक सेमिनार हुआ. इसमें देश भर से नेता, पत्रकार, मौलवी और फिल्मी हस्तियां शामिल हुईं. इस सेमिनार को ईटीवी उर्दू ने आयोजित किया, जिसे ईटीवी के सभी हिंदी और उर्दू चैनलों पर लाइव दिखाया गया. अच्छी बात यह है कि इस सेमिनार में भारतीय जनता पार्टी के नेता भी लोग थे. उन्हें सुनने के लिए राजस्थान के मुस्लिम समाज के जाने-माने लोग भी थे. कुछ आम मुस्लिम जनता भी थी. इस सेमिनार की सबसे अच्छी बात यह रही कि श्रोताओं ने भी इसमें हिस्सा लिया. उन्हें स्टेज पर जगह तो नहीं मिली, लेकिन वे भाषण देने वाले नेताओं और वक्ताओं पर टीका-टिप्पणी करते रहे. लोगों की टीका-टिप्पणी से यह बात साबित होती है कि मुस्लिम समाज बदल गया है. उसे अब भावनात्मक मुद्दों से ज़्यादा शिक्षा, रोज़गार, अधिकार और विकास की चिंता सता रही है.
जयपुर में अजीबोग़रीब नज़ारा देखने को मिला. एक सेमिनार में मौलवी थे, नेता थे, बड़े-बड़े पत्रकार थे, साथ ही फिल्मी हस्तियां थीं. सेमिनार का विषय था, मुस्लिम समाज की चुनौतियां. हैरानी की बात यह है कि इस सेमिनार में मौलवी और मौलाना किसी सेकुलर स्कॉलर की तरह बोल रहे थे, हिंदू मुसलमानों की भाषा बोल रहे थे, भाजपा के नेता मुसलमानों की समस्या का हल बता रहे थे, हिंदू पत्रकार मुसलमानों के हक की बात कर रहे थे. एक हिंदू नेता ने उर्दू को बचाने के लिए मुहिम छेड़ने की बात की, वहीं कुछ ऐसे मुसलमान नेता और पत्रकार थे, जिन्होंने भावनात्मक मुद्दे उठाए तो लोगों ने ऐतराज़ जताया और उन्हें बीच में रोकने की कोशिश की. भावनात्मक मुद्दे उठाने वाले नेताओं को शायद हैरानी भी हुई होगी कि यह क्या हो गया है. सेमिनार में घटी घटनाएं यह साबित करती हैं कि भावनात्मक मुद्दे को उठाकर अपनी दुकान चलाने वाले नेता इक्कीसवीं सदी के मुसलमानों को समझने में चूक गए. जब कभी किसी ने भावनात्मक मुद्दे उठाए तो पीछे लोग यह बात करते नज़र आए कि इन्हीं लोगों की वजह से मुसलमानों की यह हालत हुई है. मज़ेदार बात यह है कि वहां बैठे कट्टर दिखने और दाढ़ी वाले मुसलमान इन सबकी बातों को समझ रहे थे. यह अंतर कर पा रहे थे कि कौन मुसलमानों की समस्या को बता रहा है, कौन परेशानियों का हल बता रहा है और कौन मुसलमानों की मुसीबत बढ़ाने की साज़िश कर रहा है.
इस सेमिनार का सबसे बड़ा हाईलाइट रहा जमीयत उलमा-ए-हिंद के जनरल सेक्रेटरी मौलाना महमूद मदनी का भाषण. वह एक सुलझे हुए समाजशास्त्री की तरह बोले. उन्होंने कहा कि हिंदुस्तान के मुसलमानों के लिए हिंदुस्तान से बेहतर और सुंदर जगह कोई नहीं है. उन्होंने मीडिया के रोल पर सवाल उठाया और कहा कि मुसलमानों को आतंकी और दहशतगर्द साबित करने में मीडिया ने भी अहम भूमिका निभाई है. उन्होंने कहा कि दूसरे धर्मों के लोगों के दिल जीतने के लिए मुसलमानों को आगे आना चाहिए. उन्होंने सा़फ-सा़फ कहा कि उन्हें माइनॉरिटी मिनिस्ट्री या मिनिस्टर फॉर माइनॉरिटी अफेयर्स नहीं चाहिए, मुसलमानों को इंसा़फ चाहिए, उन्हें रोज़गार चाहिए. अजमेर से आए सरवर चिश्ती ने इस सेमिनार में आधी रोटी खाइए-बच्चों को पढ़ाइए का नारा दिया. उन्होंने कहा कि मुसलमानों की खराब स्थिति के लिए मुस्लिम लीडर ज़िम्मेदार हैं, क्योंकि वे मुसलमानों का नहीं, बल्कि राजनीतिक दलों का प्रतिनिधित्व करते हैं. मुसलमानों की बात तो लालू यादव, मुलायम सिंह उठाते हैं. उन्होंने कहा कि रिजर्वेशन की ज़रूरत नहीं है, अगर रिजर्वेशन मिल भी गया तो क्या होगा? जब हमारे बच्चे पढ़ेंगे ही नहीं तो नौकरी कैसे करेंगे. उन्होंने सबसे महत्वपूर्ण बात यह कही कि मुसलमान अपने अधिकार शिक्षा और वोटिंग के ज़रिए लेंगे. इन दोनों मौलानाओं की बातें जितनी सेकुलर हैं, उतनी ही हक़ीक़त को बयान करने वाली हैं. मुसलमानों की यही असली चुनौती है.
दोनों मौलानाओं ने तो विकास और शिक्षा की बात की, लेकिन इस सेमिनार में आए सेकुलर नेताओं ने आर्थिक विकास और शिक्षा की बात छोड़ भावनाओं को भड़काना शुरू किया, लेकिन वहां बैठी जनता ने ऐसे नेताओं को खारिज कर दिया. इस लिस्ट में सबसे पहला नाम है कांग्रेस के नेता राशिद अल्वी का. उन्होंने शुरुआत में ही यह कह दिया कि आज़ादी के 63 सालों बाद भी हम यही तय नहीं कर पाए हैं कि मुसलमानों की चुनौती क्या है. सरकार से उम्मीद नहीं करनी चाहिए, क्योंकि मुसलमानों को अपनी चुनौतियों का हल खुद निकालना होगा. लोग नाराज़ हो गए. पीछे बैठे लोग कहने लगे कि अगर खुद ही हल निकालना है तो फिर राजनीतिक दल उनसे वोट क्यों मांगने आते हैं. राशिद अल्वी ने जैसे ही यह कहा कि मुसलमानों की सबसे बड़ी चुनौती संघ परिवार है, हिंदू कट्टरवाद से सबसे बड़ा खतरा है, वहां बैठे मुसलमानों ने उन्हें रोका और कहा कि मुसलमानों को बहकाने की बात न करके असल मुद्दे पर आइए. नेता ने नाराज़ लोगों से पूछा कि क्या आपको लगता है कि जो मैं कह रहा हूं, वह ज़रूरी मसला नहीं है. इस पर लोगों ने कहा कि आप लोगों की वजह से ही मुसलमान पिछड़ गया है. कांग्रेस के नेता मोहन प्रकाश ने भी इस सेमिनार में हिस्सा लिया. उन्होंने कहा कि असली चुनौती है हिंदू धर्म का वह तबका, जो मुसलमानों को दूसरे दर्जे का नागरिक समझता है. उन्होंने कहा कि गांधी की हत्या एक हिंदू ने की, क्योंकि गांधी मुसलमानों के पक्षधर थे. दरअसल, ऐसे सेमिनारों में कांग्रेस पार्टी के नेताओं के पास बोलने के लिए ज़्यादा कुछ नहीं होता, क्योंकि आज़ादी के बाद से ज़्यादातर राज्यों और केंद्र में कांग्रेस की सरकार रही है और मुसलमानों की हालत बद से बदतर होती चली गई. इसलिए जब भी मुसलमानों की चुनौतियों के बारे में बात होती है तो कांग्रेस के नेता इसे कम्यूनलिज्म और सेकुलरिज्म के चश्मे से देखना ज़्यादा पसंद करते हैं.
यह सेमिनार वाकई में स्पेशल रहा. चर्चा मुसलमानों की समस्याओं पर हो रही थी और इस विषय पर भारतीय जनता पार्टी के नेता भी बोल रहे थे. भारतीय जनता पार्टी के सबसे पहले वक्ता थे राजस्थान के नेता प्रतिपक्ष घनश्याम तिवारी. उन्होंने कहा कि राजस्थान में विभाजन के दौरान 6 फीसदी मुसलमान सरकारी नौकरी में थे और आज स़िर्फ एक फीसदी बचे हैं. उन्होंने कहा कि शिक्षा और नौकरी की समस्या ही मुसलमानों की सबसे बड़ी चुनौती है. इसके बाद भारतीय जनता पार्टी के राजस्थान अध्यक्ष अरुण चतुर्वेदी ने अपनी बात रखी. उन्होंने कहा कि उर्दू और हिंदी में कोई अंतर नहीं है. उन्होंने कहा कि 63 सालों के बाद जब यह चर्चा हो रही है कि मुसलमानों की चुनौती क्या है, इससे यही साबित होता है कि सरकारों ने मुसलमानों के लिए कुछ नहीं किया है. उन्होंने कहा कि यह प्रतियोगिता का बाज़ार है, जिसमें शिक्षा के ज़रिए ही मुसलमान दूसरे से मुक़ाबला कर सकते हैं. भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने इस बात का पूरा ध्यान रखा कि सेमिनार में उनके मुंह से ऐसी कोई बात न निकले, जिससे हंगामा हो जाए. लेकिन भारतीय जनता पार्टी पर चौथी दुनिया के एडिटर-इन-चीफ ने बड़ी ज़िम्मेदारी डाल दी. उन्होंने कहा कि मुसलमानों के सामने तो चुनौतियां ही चुनौतियां हैं, लेकिन हिंदुस्तान के बहुसंख्यकों के सामने देश को बचाने की चुनौती है. बहुसंख्यकों ने अगर अल्पसंख्यकों को इज़्ज़त नहीं दी, हक़ नहीं दिया, आगे बढ़ने का मौक़ा नहीं दिया तो भरोसा रखिए यह मुल्क बचने वाला नहीं है. हमारी हालत पाकिस्तान से भी बदतर हो जाएगी. इसमें सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी भारतीय जनता पार्टी की है, क्योंकि सवाल, उंगलियां और आंखें इन्हीं की तऱफ उठती हैं. संतोष भारतीय ने बड़ी सा़फगोई से भारतीय जनता पार्टी को कठघरे में भी खड़ा कर दिया.
सहारा उर्दू के संपादक अज़ीज़ बर्नी का भाषण सबसे अलग रहा. उन्होंने बहुत ही जोश के साथ अपनी बात रखी. लहजा ऐसा था, जिसे हम जज़्बाती कह सकते हैं. उनके भाषण का सार यही था कि इस देश में जो भी मुसलमान है, उसे आतंकवादी क़रार दिया जाता है. वह मुसलमानों की सबसे बड़ी चुनौती राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को मानते हैं. उन्होंने अजमेर के सरवर चिश्ती द्वारा दिए गए नारे, आधी रोटी खाइए-बच्चों को पढ़ाइए को नकार दिया. उन्होंने कहा कि बच्चों को तालीम देकर क्या होगा. जब वह मदरसे जाता है तो उसे आतंकवादी कह दिया जाता है. अच्छी बात यह थी कि सेमिनार में सुनने आए लोग यह कह रहे थे कि ऐसे ही लोग मुसलमानों को असल मुद्दे से दूर ले जाते हैं, इन मुद्दों को उठाकर ही मुसलमानों को बहकाया जाता है. ये तालीम और रोज़गार की बात करने के बजाय संघियों की बात करके समाज में भाईचारे को खत्म करते हैं. अज़ीज़ बर्नी ने कहा कि महात्मा गांधी की हत्या किसी हिंदू ने नहीं, एक संघी ने की. उन्होंने वहां मौजूद लोगों को बताया कि हिंदू महासभा का जन्म 1901 में हुआ. वैसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का जन्म 1925 में हुआ और हिंदू महासभा 1915 में बनी. अब यह बात अज़ीज़ बर्नी ही बता सकते हैं कि 1901 में किसका जन्म हुआ? सेमिनार में मौजूद एक शख्स ने बातचीत में कहा कि पत्रकारों का काम समाज में भाईचारा फैलाने का होता है, लेकिन बर्नी साहब ने तो स़िर्फ लोगों की भावना भड़काने की कोशिश की है. वहीं एक बुज़ुर्ग ने कहा कि यह शख्स देश में आग लगवा देगा.
अज़ीज़ बर्नी के बाद आल इंडिया मिल्ली काउंसिल के महासचिव डॉ. मंज़ूर आलम ने मुसलमानों की चुनौतियों का सबसे सटीक विश्लेषण किया. उन्होंने कहा कि जो देश की चुनौती है, वही मुसलमानों की चुनौती है. उन्होंने कहा कि मुसलमानों की हालत क्या है, वह सच्चर कमेटी और रंगनाथ मिश्र आयोग की रिपोर्ट से ज़ाहिर हो चुका है. उन्होंने कहा कि अगर हमारे बच्चे तालीम और हुनरमंदी की ओर नहीं जाएंगे और क़ाबिल नहीं बनेंगे तो मुसलमान हाथ फैलाते रहेंगे, देने वाला दुत्कारता रहेगा. बहुत होगा तो दो आंसू बहा देंगे और आपकी ही ज़ुबान में आपकी बात कह देंगे, लेकिन आपको कुछ नहीं मिलेगा. अज़ीज़ बर्नी से अलग उन्होंने उलेमाओं से अपील की कि वे अपनी पहचान के साथ शिक्षा, रोज़गार और आर्थिक विकास के रास्ते में आने वाली दीवार को तोड़ें. इसके लिए नौजवानों को आगे आना होगा. उन्होंने कहा कि व़क्त आ गया है, देश के विकास के लिए सब धर्मों के लोगों को मिलजुल कर आज़ादी की दूसरी लड़ाई की तैयारी करने की ज़रूरत है.
फिरोजाबाद के सांसद एवं कांग्रेस पार्टी के नेता राजबब्बर ने उर्दू को बचाने के लिए मुहिम छेड़ने की बात की. उन्होंने कहा कि जब भी किसी भाषा को धर्म से जोड़ दिया जाता है तो उसे खत्म करने की साज़िश समझना चाहिए. उन्होंने कहा कि उर्दू मुसलमानों की ज़ुबान नहीं है, यह हिंदुस्तान की ज़ुबान है. अच्छी बात यह है कि राजबब्बर किसी कांग्रेसी नेता की तरह नहीं बोले, बल्कि उनके अंदर का समाजवाद बोल रहा था. उन्होंने कहा कि आज़ादी के बाद सरकारी नौकरियों में मुसलमानों की जो जगह खाली हुईं, उन पर सरकार मुसलमानों की भर्ती करे. उन्होंने कहा कि वह मुसलमानों की नौकरी के लिए संघर्ष करने के लिए तैयार हैं, लेकिन आप अपने बच्चों को उसके लायक तैयार तो करें. उन्होंने कहा कि मुसलमानों को शिक्षा हासिल करके सरकारी नौकरियों में
जाना चाहिए.
इस सेमिनार के हीरो भारतीय जनता पार्टी के नेता शाहनवाज़ हुसैन रहे. उन्होंने औक़ा़फ की ज़मीन का मुद्दा उठाकर सेमिनार का रु़ख ही मोड़ दिया. उन्होंने बताया कि 5 लाख एकड़ ज़मीन औक़ा़फ की है, जो मुसलमानों की है. यह ज़मीन शहर में है, जिसे मुसलमानों को वापस कर दिया जाए तो मुसलमान अपनी क़िस्मत खुद लिख सकता है. अ़फसोस की बात यह है कि औक़ा़फ की आधी ज़मीन राज्य या केंद्र सरकार ने हड़प ली है. शाहनवाज़ हुसैन ने कहा कि माइनॉरिटी अफेयर मिनिस्ट्री के फंड से नहीं, बहुसंख्यक अफेयर से मुसलमानों का विकास हो. उन्होंने कहा कि इतिहास के पन्नों को पलटने से कुछ नहीं होगा. उन्होंने कहा कि ऐसे लोगों को पहचानने की ज़रूरत है, जो भावनात्मक मुद्दे उठाकर मुसलमानों के नाम पर राज्यसभा जाते हैं, मंत्री बनते हैं, बोर्ड के चेयरमैन बनते हैं और अपनी राजनीति चमकाते हैं. ऐसे लोग ही मुस्लिम समाज की चुनौती हैं.
शाहनवाज़ हुसैन के भाषण का असर कांग्रेस के नेताओं पर सा़फ दिखा. कांग्रेस पार्टी के नेता एवं सांसद परवेज़ हाशमी ने राजस्थान की कांग्रेस सरकार पर ही सवालिया निशान खड़ा कर दिया. उन्होंने कहा कि वह राजस्थान के लोगों की शिकायत सोनिया गांधी और राहुल गांधी तक पहुंचाएंगे. उन्होंने मांग की कि राजस्थान में माइनॉरिटी कमीशन का गठन हो, मुसलमानों से जुड़े बोर्ड का गठन हो. इसके बाद सेमिनार के चेयरमैन सै़फुद्दीन सोज़ ने यह आश्वासन दिया कि वह वक़़्फ और औक़ा़फ की ज़मीन के मामले को जल्द ही निपटाने के लिए पहल करेंगे.
यह सेमिनार कई मायने में चकित करता है. ऐसे मौक़े बहुत ही कम दिखते हैं, जहां अलग-अलग विचारधारा के लोग एक मंच पर एक साथ दिखते हैं और इस बात को भी सरेआम स्वीकार करते हैं कि कुछ विषय ऐसे हैं, जिन्हें राजनीति से बाहर ही रखा जाए तो बेहतर है. सेमिनार के ज़रिए मुसलमानों की चुनौतियां और उनके विकास का मुद्दा राजनीति के दायरे से ऊपर उठ गया. भारतीय जनता पार्टी के लोग मुसलमानों के विकास के रास्ते बता रहे हों, यह सचुमच आश्चर्य की बात है. वैसे जज्बाती भाषण देना और तालियां बटोरना आसान काम होता है. हर कौम में जज्बाती भाषण देने वाले मौजूद हैं, लेकिन ऐसे लोग न चुनौतियों का हल बताते हैं और न समाज को विकास का रास्ता दिखा सकते हैं. यह सेमिनार कई ऐसे चेहरों को सामने लाया, जो सचमुच मुसलमानों के हितैषी हैं, वहीं इसने ऐसे चेहरों को भी बेनक़ाब किया, जो मुसलमानों के नाम पर अपनी रोटियां सेंकते हैं.
इस सेमिनार में पाकिस्तान की सबसे मशहूर अभिनेत्री मीरा भी मौजूद थीं. स्टेज पर वह स्कर्ट पहने हुए थीं. सेमिनार खत्म होने के बाद होटल में इन वक्ताओं के बीच बातचीत हो रही थी. एक बड़े नेता ने कहा कि मीरा को स्कर्ट पहन कर नहीं आना चाहिए था, तो दूसरे ने कहा कि वहां भीड़ थी, मुझे तो डर लग रहा था कि कहीं कोई हंगामा न हो जाए.
भारत का मुसलमान बदल गया है. वह विकास चाहता है, रोज़गार चाहता है. उसकी डिमांड सेकुलर हो गई है. अब मुसलमान सानिया मिर्ज़ा और मीरा के स्कर्ट को लेकर परेशान नहीं होते. लेकिन अ़फसोस की बात यह है कि मुसलमानों के रहनुमाओं को इस बात की भनक तक नहीं है.