- रामदेव की बात पर सोनिया को किसने डराया, क्यों डर गई कांग्रेस?
- रामदेव के जवाब पर दिग्विजय सिंह क्यों चुप हुए?
- क्या दिग्विजय सिंह ने जानबूझ कर रामदेव के खिला़फ बयान दिया?
- शुरुआत में कांग्रेस ने बाबा रामदेव की मदद क्यों की?
राजनीति और आध्यात्म में सबसे बड़ा फर्क़ यह है कि आध्यात्म मनुष्य को मौन कर देता है, जबकि राजनीति में मौन रखना सबसे बड़ा पाप साबित होता है. बाबा रामदेव के हमले के बाद कांग्रेस पार्टी आध्यात्म की ओर मुड़ गई है, उसने चुप्पी साध ली है. यह चुप्पी किसी योजना या रणनीति का हिस्सा नहीं है, बल्कि डर का परिणाम है. बाबा रामदेव और उनके सहयोगियों ने काले धन की आड़ में कांग्रेस और गांधी परिवार पर हमले किए. उनका आरोप है कि राहुल गांधी को रूस की खुफिया एजेंसी केजीबी से पैसे मिलते हैं. राजीव गांधी ने स्विस बैंक में काला धन जमा किया. कांग्रेस सरकार ने क्वात्रोकी के बेटे को अंडमान निकोबार में तेल की खुदाई का ठेका दिया. काला धन जमा कराने वालों में केंद्रीय मंत्री विलासराव देशमुख और सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल का नाम लिया गया. इन आरोपों के जवाब में पार्टी ने मौन धारण कर लिया है. लगता है, बाबा रामदेव से कांग्रेस पार्टी डर गई है.
दरअसल, यह मामला अरुणाचल प्रदेश में शुरू हुआ. बाबा के शिविर में कांग्रेस के सांसद निनोंग एरिंग मौजूद थे. बाबा रामदेव अपने शिविरों में योग के साथ-साथ राजनीति की बातें करते हैं. बाबा ने गांधी परिवार पर कुछ टिप्पणी की तो सांसद एरिंग ने विरोध किया. बाबा का आरोप है कि कांग्रेसी सांसद ने उन्हें ब्लडी इंडियन कहा. वहां मीडिया था, कैमरे थे, इस पूरे मामले का वीडियो इंटरनेट पर भी उपल्ब्ध है. घटना के बाद बाबा रामदेव का बयान भी है, लेकिन हैरानी इस बात की है कि सांसद ने जो कुछ कहा, उसका वीडियो कहीं नहीं दिखा. निनोंग एरिंग स़फाई देते रहे कि उन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं कहा, लेकिन तीर कमान से निकल चुका था. बाबा रामदेव और कांग्रेस की जंग शुरू हो चुकी थी. इसके तुरंत बाद कांग्रेस के प्रो-एक्टिव महासचिव दिग्विजय सिंह ने मोर्चा संभाला. बाबा रामदेव द्वारा कांग्रेस के खिलाफ बयानबाजी और गांधी परिवार पर आरोप लगाने की उन्होंने भर्त्सना की और बाबा के धन का हिसाब मांग लिया. दिग्विजय सिंह ने कहा कि बाबा रामदेव के पास इतने पैसे कहां से आए, इसका भी हिसाब उन्हें देना चाहिए. मामले ने तूल पकड़ा. बाबा रामदेव एक फाइल के साथ हर टीवी चैनल पर ऩजर आने लगे. वह फाइल पतंजलि ट्रस्ट के इनकम टैक्स रिटर्न की थी. अचानक दिग्विजय सिंह भी चुप हो गए. कांग्रेस का हमला बंद हो गया, लेकिन रामदेव ने नए सिरे से हमला शुरू कर दिया.
दिल्ली के रामलीला मैदान में बाबा ने रैली की. भ्रष्टाचार के खिला़फ लड़ने वाले चेहरों को स्टेज पर बुलाया. कांग्रेस पर एक से बढ़कर एक आरोप लगाने शुरू कर दिए. आरोप भी ऐसे कि जिन्हें सुनकर देश के तबाह होने का डर पैदा हो जाता है. इन आरोपों के जवाब में कांग्रेस ने कुछ भी नहीं कहा. किसी नेता ने कोई जवाब नहीं दिया या रामदेव पर कोई हमला नहीं किया. हैरानी की बात यह है कि दिग्विजय सिंह ने भी मौन धारण कर लिया. कांग्रेस के कई नेताओं से बातचीत के दौरान यह समझ में आया कि कांग्रेस के हर लीडर को बाबा रामदेव और उनके सहयोगियों द्वारा लगाए गए आरोपों के बारे में जानकारी है. फिर ऐसा क्या हुआ. ऐसा क्या निर्देश दिया गया. ऐसा क्या फैसला लिया गया कि कांग्रेसी नेताओं की पूरी मंडली में एक भी ऐसा नहीं है, जिसने बाबा के खिला़फ मुंह खोला हो. बात यहीं खत्म नहीं हुई. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सत्यव्रत चतुर्वेदी ने यह कहकर चौंका दिया कि पार्टी के महासचिव दिग्विजय सिंह का बयान उनका निजी बयान है, कांग्रेस पार्टी को इससे कुछ लेना-देना नहीं है.
इसका मतलब तो यह है कि जो सत्यव्रत चतुर्वेदी कह रहे हैं, वही पार्टी का फैसला है. वही सोनिया गांधी का फैसला है. बाबा रामदेव के आरोपों पर कांग्रेस में बहस हुई. एक योजना बनी. यह तय किया गया कि बाबा रामदेव को इग्नोर किया जाए. रामलीला मैदान की रैली में कांग्रेस पर जो आरोप लगे, उनसे कांग्रेस में हड़कंप मच गया. जिस तरह के आरोप लगाए गए, वे बिल्कुल आरएसएस स्टाइल के आरोप थे. काला धन से यह मामला सोनिया गांधी तक चला गया.
कांग्रेस के कुछ नेताओं ने सोनिया गांधी को यह समझा दिया कि दिग्विजय सिंह की वजह से ही बाबा रामदेव आरोप लगा रहे हैं. दिग्विजय अगर मुंह नहीं खोलते तो बाबा रामदेव नहीं बोलते. कुछ कांग्रेसी नेता तो यह भी कह रहे हैं कि दिग्विजय सिंह ने जानबूझ कर बयान दिया. मतलब यह कि इस विवाद के लिए दिग्विजय सिंह ही ज़िम्मेदार हैं. इन नेताओं ने सोनिया गांधी को डराया कि रामदेव को हमने ही मुद्दा दे दिया. हम पहले से ही घोटालों में घिरे हुए हैं. मनमोहन सिंह सरकार ठीक से काम नहीं कर पा रही है. महंगाई है. ऐसे में बाबा रामदेव से टकराना ठीक नहीं है. फिर सोनिया गांधी को यह समझाया गया कि कांग्रेस के कुछ नेता बाबा रामदेव को ख्वामखाह बड़ा बना रहे हैं. बेवजह हम बाबा रामदेव को खतरा समझ रहे हैं. यह भी समझाया गया कि अगर कांग्रेस पार्टी कोई प्रतिक्रिया देती है तो बाबा रामदेव देश में घूम-घूमकर कांग्रेस के खिला़फ बयानबाज़ी करेंगे. बाबा रामदेव के साथ जनता का समर्थन है, इसलिए पार्टी को नुक़सान हो सकता है. स्वाभिमान आंदोलन की भ्रष्टाचार के खिला़फ लड़ाई में स़िर्फ कांग्रेस निशाने पर आ जाएगी. इसलिए बाबा रामदेव के आरोपों का जवाब न देकर ही इस मामले को ठंडा किया जा सकता है. पार्टी की इसी में भलाई है. कांग्रेस पार्टी बाबा रामदेव से डर गई और उसने बाबा रामदेव के आरोपों पर चुप्पी साध ली. दिग्विजय सिंह के बयान को उनका निजी बयान क़रार दिया गया.
हम चाहते हैं कि बाबा जी भी इस बात का ध्यान रखें कि उनको जो दान मिलता है, वह कहीं काला धन तो नहीं है. बाबा जी से मेरी यही प्रार्थना है कि सबको एक लाठी से न लपेटा करें और सोच-समझ कर बयान दिया करें. क्या पूंजीवादी बस कांग्रेस में हैं और उनके साथ कोई पूंजीवादी नहीं है? कोई ग़रीब आदमी उन्हें दान देता है क्या?
– दिग्विजय सिंह
इस घटना से कांग्रेस पार्टी की मानसिकता और राजनीति दोनों ही उजागर हो गई. कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में दक्षिणपंथी मानसिकता वालों की अच्छी खासी संख्या है. ये मुखर भी हैं. इनका दबदबा भी चलता है. कांग्रेस के इसी दक्षिणपंथी गुट ने एक तऱफ सोनिया को डराया, दूसरी तऱफ राहुल गांधी की तरफ दबाव दिया गया कि वह दिग्विजय सिंह से किनारा करें. दरअसल ये लोग रामदेव को मौक़ा देना चाहते हैं कि वह देश में घूम-घूमकर कार्यकर्ताओं की बड़ी फौज खड़ी कर लें. कांग्रेस के जवाब देने या न देने से रामदेव चुप होने वाले तो हैं नहीं. जबसे लोकसभा चुनाव शुरू हुए हैं, तबसे काले धन का मामला लेकर रामदेव ने हमला शुरू किया. इस विवाद से पहले भी वह कांग्रेस के खिला़फ बोल रहे थे. अब जब लड़ाई आमने-सामने की हो गई है तो उनका हमला और भी तेज़ हो गया है. कांग्रेस में एक दूसरा तबका भी है, जो बाबा रामदेव से दो-दो हाथ करना चाहता है. बाबा के खिला़फ लगे आरोपों की जांच कराना चाहता है. उनके हर आरोप का जवाब देना चाहता है, लेकिन कांग्रेस की यह वामपंथी लॉबी खामोश है. शायद उनका अस्तित्व नहीं है. अगर है भी, तो पता नहीं वे किस मांद के अंदर बैठे हैं. संगठन में उनका दबदबा खत्म हो गया है. उन्हें हम अब कह सकते हैं कि वे कांग्रेस के विलुप्त प्राणियों में से हैं. कुछ सांसदों ने पार्टी में अपना नंबर बढ़ाने के लिए रामदेव के नार्को टेस्ट की बात ज़रूर कही, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि वे पार्टी की तऱफ से नहीं, बल्कि एक सांसद होने के नाते यह मांग कर रहे हैं. कांग्रेस पार्टी अपने ही सांसदों की मांगों पर भी मौन है.
कांग्रेस के नेताओं ने एक तो सोनिया को डराया, दूसरा दिग्विजय सिंह को राहुल गांधी से दूर करने की चाल चली. राहुल गांधी ने सोनिया से बात करने की कोशिश की. समझने वाली बात यह है कि बाबा रामदेव राहुल गांधी से चुपके से मिले. वह चुपके से मिलने हरिद्वार भी जाते हैं. चुपके से इसलिए, क्योंकि तब मीडिया नहीं जाता. किसी को पता भी नहीं चलता. तब बाबा प्रेस को नहीं बुलाते. कई कांग्रेसी नेता दबी ज़ुबान में यह कहते हैं कि बाबा रामदेव को शुरुआत में कांग्रेस ने ही मदद की. सरकारी धन मुहैय्या कराया. उस व़क्त कांग्रेस के नेताओं को यह लगा कि बाबा रामदेव अगर पार्टी बना लेते हैं तो भारतीय जनता पार्टी के ही वोट काटेंगे. बाबा रामदेव की राजनीति से कांग्रेस पार्टी को ही फायदा होगा. बाबा रामदेव के खिला़फ जब दिग्विजय सिंह ने बयान दिया तो दक्षिणपंथी लॉबी परेशान हो गई. बाबा ने दिग्विजय सिंह जैसे नेताओं को राहुल गांधी से अलग करने की भी कोशिश की, ताकि राहुल के आसपास भी दक्षिणपंथियों की भीड़ लग जाए. आज की तारी़ख में राहुल गांधी राजनीतिक मामले में दिग्विजय सिंह की बात सुनते हैं. यही वजह है कि दिग्विजय सिंह के एक बयान ने बाबा रामदेव को इतना परेशान कर दिया कि उन्होंने खुलेआम सोनिया गांधी और राहुल गांधी पर हमला कर दिया.
यह व्यक्तिगत झगड़ा है दोनों का, पार्टी का इससे कोई लेनां-देना नहीं है. दिग्विजय सिंह ने अनेक बार ऐसे स्टेटमेंट्स दिए हैं, जिनको पार्टी ने कहा कि यह उनकी व्यक्तिगत भावना है, व्यक्तिगत सोच है. यह बाबा और दिग्विजय सिंह के बीच की बात है, कांग्रेस और बाबा के बीच की नहीं है.
– सत्यव्रत चतुर्वेदी
दिग्विजय सिंह कांग्रेस के सबसे प्रो-एक्टिव महासचिव हैं. राहुल गांधी के निकट हैं. पार्टी में उनकी अहमियत इसलिए है, क्योंकि वह एकमात्र ऐसे नेता हैं, जो कांग्रेस का मुस्लिम चेहरा बनकर उभरे हैं. आज की तारीख में दिग्विजय सिंह के अलावा कोई दूसरा नेता नहीं है, जिस पर देश के मुसलमान भरोसा करते हों. मुसलमानों के संगठनों से उनका संपर्क है. कांग्रेस पार्टी दिग्विजय सिंह के ज़रिए ही मुस्लिम संगठनों से बातचीत करती है. एक और खासियत यह है कि कांग्रेस में दिग्विजय सिंह के अलावा आरएसएस से लड़ने वाला कोई मुखर नेता नहीं है. आरएसएस के खिला़फ बयानबाजी हो, दिल्ली के बाटला हाउस में आजमगढ़ के छात्रों का एनकाउंटर हो, भगवा आतंक का विरोध हो, हर जगह दिग्विजय सिंह मुसलमानों के साथ खड़े ऩजर आते हैं. बाबा रामदेव और कांग्रेस की लड़ाई की जड़ में दिग्विजय सिंह हैं. अगर दिग्विजय सिंह को पार्टी दरकिनार करती तो वह मुसलमानों के एजेंडे से दूर होती ऩजर आती. समझने वाली बात यह है कि दिग्विजय सिंह मुस्लिम एजेंडे को उठाते ज़रूर हैं, लेकिन उन मुद्दों को, जिन्हें हम भावनात्मक कह सकते हैं. बेहतर तो यह होता कि दिग्विजय सिंह सच्चर कमेटी और रंगनाथ मिश्र कमीशन की रिपोर्ट के लिए संघर्ष करते तो मुसलमानों की परेशानी कम होती. असलियत यह है कि मुसलमानों को गुमराह करने में कांग्रेस ने कभी कोई कमी नहीं की. दिग्विजय सिंह भी यही कर रहे हैं.
कांग्रेस का इतिहास रहा है कि पार्टी में कभी भी वैचारिक पवित्रता कोई मुद्दा ही नहीं रही. यह बहुत बड़ी खूबी भी है और कमज़ोरी भी कि कांग्रेस में अलग-अलग विचारधारा के लोग एक साथ काम करते रहे हैं, आपस में वर्चस्व की लड़ाई लड़ते रहे हैं. कांग्रेस को ऐसे लोगों ने भी नेतृत्व दिया है, जो हिंदू महासभा के लीडर हुआ करते थे. महात्मा गांधी मध्यमार्गी थे तो जवाहर लाल नेहरू और सुभाष चंद्र बोस का झुकाव वामपंथ की ओर था. सुभाष चंद्र बोस का कांग्रेस के दक्षिणपंथियों ने ही विरोध किया था. इंदिरा जी हमेशा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से लड़ती थीं. राजीव गांधी के समय से आरएसएस से यह लड़ाई कमजोर पड़ गई. जब राजीव गांधी को 412 सीटें मिली थीं, तब आरएसएस ने कांग्रेस की मदद की थी. कांग्रेस पार्टी का रोल बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि प्रकरण में विवादास्पद है. गुजरात में कांग्रेस सॉफ्ट हिंदुत्ववादी पार्टी भी इन्हीं नेताओं की वजह से बन गई है. कांग्रेस का यही तबका सच्चर कमेटी और रंगनाथ मिश्र आयोग की रिपोर्ट पर कार्रवाई करने में अड़चनें खड़ी करता है. पिछले 15 सालों में जबसे मनमोहन सिंह वित्तमंत्री हुए हैं, तबसे पार्टी में दक्षिणपंथियों का वर्चस्व बढ़ गया है. कार्यशैली बदल गई है. इनएक्शन को एक्शन समझ लिया गया है. निर्णय न लेना भी निर्णय बन गया है. चुप्पी जवाब बन गई है. आज नेहरू और इंदिरा गांधी की पार्टी का आलम यह है कि रामदेव और उनके सहयोगियों ने कांग्रेस पर आरोपों की झड़ी लगा दी है और पार्टी ने जवाब न देना ही सबसे सही जवाब मान लिया है. पांच राज्यों में चुनाव हो रहे हैं. इन चुनावों में भ्रष्टाचार सबसे मुख्य मुद्दा है. काले धन को लेकर आम जनता में रोष है. यह भी एक वजह है कि कांग्रेस बाबा रामदेव से टक्कर लेने की हिम्मत नहीं जुटा पाई.
राजनीति भी अजब खेल है. यह कभी-कभी सर्वशक्तिमान को शक्तिहीन और एक फक्कड़ को सर्वशक्तिमान बना देती है. कांग्रेस के पास सरकार है, सरकार के पास जांच एजेंसियां हैं, जांच एजेंसियों के पास शक्ति है, फिर भी पूरा कुनबा चुप है. रामदेव और उनके साथियों द्वारा लगाए गए आरोप अगर गलत हैं तो कांग्रेस को यह चुप्पी तोड़नी चाहिए. हर आरोप की जांच होनी चाहिए. अगर यह चुप्पी बनी रही तो लोग तो यही समझेंगे कि बाबा और उनके साथियों ने जो आरोप लगाए हैं, वे सच हैं.