- नकली नोट पर अब तक का सबसे बडा ख़ुलासा
- रिजर्व बैंक के ख़जाने में नकली नोट कैसे पहुँचे
- सीबीआई ने रिजर्व बैंक में क्यों छापा मारा
- नकली नोट के खुलासे से यूरोप में भुचाल क्यों आया
देश के रिज़र्व बैंक के वाल्ट पर सीबीआई ने छापा डाला. उसे वहां पांच सौ और हज़ार रुपये के नक़ली नोट मिले. वरिष्ठ अधिकारियों से सीबीआई ने पूछताछ भी की. दरअसल सीबीआई ने नेपाल-भारत सीमा के साठ से सत्तर विभिन्न बैंकों की शाखाओं पर छापा डाला था, जहां से नक़ली नोटों का कारोबार चल रहा था. इन बैंकों के अधिकारियों ने सीबीआई से कहा कि उन्हें ये नक़ली नोट भारत के रिजर्व बैंक से मिल रहे हैं. इस पूरी घटना को भारत सरकार ने देश से और देश की संसद से छुपा लिया. या शायद सीबीआई ने भारत सरकार को इस घटना के बारे में कुछ बताया ही नहीं. देश अंधेरे में और देश को तबाह करने वाले रोशनी में हैं. आइए, आपको
आज़ाद भारत के सबसे बड़े आपराधिक षड्यंत्र के बारे में बताते हैं, जिसे हमने पांच महीने की तलाश के बाद आपके सामने रखने का फ़ैसला किया है. कहानी है रिज़र्व बैंक के माध्यम से देश के अपराधियों द्वारा नक़ली नोटों का कारोबार करने की.
नक़ली नोटों के कारोबार ने देश की अर्थव्यवस्था को पूरी तरह अपने जाल में जकड़ लिया है. आम जनता के हाथों में नक़ली नोट हैं, पर उसे ख़बर तक नहीं है. बैंक में नक़ली नोट मिल रहे हैं, एटीएम नक़ली नोट उगल रहे हैं. असली-नक़ली नोट पहचानने वाली मशीन नक़ली नोट को असली बता रही है. इस देश में क्या हो रहा है, यह समझ के बाहर है. चौथी दुनिया की तहक़ीक़ात से यह पता चला है कि जो कंपनी भारत के लिए करेंसी छापती रही, वही 500 और 1000 के नक़ली नोट भी छाप रही है. हमारी तहक़ीक़ात से यह अंदेशा होता है कि देश की सरकार और रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया जाने-अनजाने में नोट छापने वाली विदेशी कंपनी के पार्टनर बन चुके हैं. अब सवाल यही है कि इस ख़तरनाक साज़िश पर देश की सरकार और एजेंसियां क्यों चुप हैं?
एक जानकारी जो पूरे देश से छुपा ली गई, अगस्त 2010 में सीबीआई की टीम ने रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के वाल्ट में छापा मारा. सीबीआई के अधिकारियों का दिमाग़ उस समय सन्न रह गया, जब उन्हें पता चला कि रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया के ख़ज़ाने में नक़ली नोट हैं. रिज़र्व बैंक से मिले नक़ली नोट वही नोट थे, जिसे पाकिस्तान की खु़फिया एजेंसी नेपाल के रास्ते भारत भेज रही है. सवाल यह है कि भारत के रिजर्व बैंक में नक़ली नोट कहां से आए? क्या आईएसआई की पहुंच रिज़र्व बैंक की तिजोरी तक है या फिर कोई बहुत ही भयंकर साज़िश है, जो हिंदुस्तान की अर्थव्यवस्था को खोखला कर चुकी है. सीबीआई इस सनसनीखेज मामले की तहक़ीक़ात कर रही है. छह बैंक कर्मचारियों से सीबीआई ने पूछताछ भी की है. इतने महीने बीत जाने के बावजूद किसी को यह पता नहीं है कि जांच में क्या निकला? सीबीआई और वित्त मंत्रालय को देश को बताना चाहिए कि बैंक अधिकारियों ने जांच के दौरान क्या कहा? नक़ली नोटों के इस ख़तरनाक खेल पर सरकार, संसद और जांच एजेंसियां क्यों चुप है तथा संसद अंधेरे में क्यों है?
अब सवाल यह है कि सीबीआई को मुंबई के रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया में छापा मारने की ज़रूरत क्यों पड़ी? रिजर्व बैंक से पहले नेपाल बॉर्डर से सटे बिहार और उत्तर प्रदेश के क़रीब 70-80 बैंकों में छापा पड़ा. इन बैंकों में इसलिए छापा पड़ा, क्योंकि जांच एजेंसियों को ख़बर मिली है कि पाकिस्तान की खु़फ़िया एजेंसी आईएसआई नेपाल के रास्ते भारत में नक़ली नोट भेज रही है. बॉर्डर के इलाक़े के बैंकों में नक़ली नोटों का लेन-देन हो रहा है. आईएसआई के रैकेट के ज़रिए 500 रुपये के नोट 250 रुपये में बेचे जा रहे हैं. छापे के दौरान इन बैंकों में असली नोट भी मिले और नक़ली नोट भी. जांच एजेंसियों को लगा कि नक़ली नोट नेपाल के ज़रिए बैंक तक पहुंचे हैं, लेकिन जब पूछताछ हुई तो सीबीआई के होश उड़ गए. कुछ बैंक अधिकारियों की पकड़-धकड़ हुई. ये बैंक अधिकारी रोने लगे, अपने बच्चों की कसमें खाने लगे. उन लोगों ने बताया कि उन्हें नक़ली नोटों के बारे में कोई जानकारी नहीं, क्योंकि ये नोट रिजर्व बैंक से आए हैं. यह किसी एक बैंक की कहानी होती तो इसे नकारा भी जा सकता था, लेकिन हर जगह यही पैटर्न मिला. यहां से मिली जानकारी के बाद ही सीबीआई ने फ़ैसला लिया कि अगर नक़ली नोट रिजर्व बैंक से आ रहे हैं तो वहीं जाकर देखा जाए कि मामला क्या है. सीबीआई ऱिजर्व बैंक ऑफ इंडिया पहुंची, यहां उसे नक़ली नोट मिले. हैरानी की बात यह है कि रिज़र्व बैंक में मिले नक़ली नोट वही नोट थे, जिन्हें आईएसआई नेपाल के ज़रिए भारत भेजती है.
रिज़र्व बैंक आफ इंडिया में नक़ली नोट कहां से आए, इस गुत्थी को समझने के लिए बिहार और उत्तर प्रदेश में नक़ली नोटों के मामले को समझना ज़रूरी है. दरअसल हुआ यह कि आईएसआई की गतिविधियों की वजह से यहां आएदिन नक़ली नोट पकड़े जाते हैं. मामला अदालत पहुंचता है. बहुत सारे केसों में वकीलों ने अनजाने में जज के सामने यह दलील दी कि पहले यह तो तय हो जाए कि ये नोट नक़ली हैं. इन वकीलों को शायद जाली नोट के कारोबार के बारे में कोई अंदाज़ा नहीं था, स़िर्फ कोर्ट से व़क्त लेने के लिए उन्होंने यह दलील दी थी. कोर्ट ने जब्त हुए नोटों को जांच के लिए सरकारी लैब भेज दिया, ताकि यह तय हो सके कि ज़ब्त किए गए नोट नक़ली हैं. रिपोर्ट आती है कि नोट असली हैं. मतलब यह कि असली और नक़ली नोटों के कागज, इंक, छपाई और सुरक्षा चिन्ह सब एक जैसे हैं. जांच एजेंसियों के होश उड़ गए कि अगर ये नोट असली हैं तो फिर 500 का नोट 250 में क्यों बिक रहा है. उन्हें तसल्ली नहीं हुई. फिर इन्हीं नोटों को टोक्यो और हांगकांग की लैब में भेजा गया. वहां से भी रिपोर्ट आई कि ये नोट असली हैं. फिर इन्हें अमेरिका भेजा गया. नक़ली नोट कितने असली हैं, इसका पता तब चला, जब अमेरिका की एक लैब ने यह कहा कि ये नोट नक़ली हैं. लैब ने यह भी कहा कि दोनों में इतनी समानताएं हैं कि जिन्हें पकड़ना मुश्किल है और जो विषमताएं हैं, वे भी जानबूझ कर डाली गई हैं और नोट बनाने वाली कोई बेहतरीन कंपनी ही ऐसे नोट बना सकती है.
अमेरिका की लैब ने जांच एजेंसियों को पूरा प्रूव दे दिया और तरीक़ा बताया कि कैसे नक़ली नोटों को पहचाना जा सकता है. इस लैब ने बताया कि इन नक़ली नोटों में एक छोटी सी जगह है, जहां छेड़छाड़ हुई है. इसके बाद ही नेपाल बॉर्डर से सटे बैंकों में छापेमारी का सिलसिला शुरू हुआ. नक़ली नोटों की पहचान हो गई, लेकिन एक बड़ा सवाल खड़ा हो गया कि नेपाल से आने वाले 500 एवं 1000 के नोट और रिज़र्व बैंक में मिलने वाले नक़ली नोट एक ही तरह के कैसे हैं. जिस नक़ली नोट को आईएसआई भेज रही है, वही नोट रिजर्व बैंक में कैसे आया. दोनों जगह पकड़े गए नक़ली नोटों के काग़ज़, इंक और छपाई एक जैसी क्यों है. एक्सपर्ट्स बताते हैं कि भारत के 500 और 1000 के जो नोट हैं, उनकी क्वालिटी ऐसी है, जिसे आसानी से नहीं बनाया जा सकता है और पाकिस्तान के पास वह टेक्नोलॉजी है ही नहीं. इससे यही निष्कर्ष निकलता है कि जहां से ये नक़ली नोट आईएसआई को मिल रहे हैं, वहीं से रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया को भी सप्लाई हो रहे हैं. अब दो ही बातें हो सकती हैं. यह जांच एजेंसियों को तय करना है कि रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया के अधिकारियों की मिलीभगत से नक़ली नोट आया या फिर हमारी अर्थव्यवस्था ही अंतरराष्ट्रीय मा़फ़िया गैंग की साज़िश का शिकार हो गई है. अब सवाल उठता है कि ये नक़ली नोट छापता कौन है.
हमारी तहक़ीक़ात डे ला रू नाम की कंपनी तक पहुंच गई. जो जानकारी हासिल हुई, उससे यह साबित होता है कि नक़ली नोटों के कारोबार की जड़ में यही कंपनी है. डे ला रू कंपनी का सबसे बड़ा करार रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया के साथ था, जिसे यह स्पेशल वॉटरमार्क वाला बैंक नोट पेपर सप्लाई करती रही है. पिछले कुछ समय से इस कंपनी में भूचाल आया हुआ है. जब रिजर्व बैंक में छापा पड़ा तो डे ला रू के शेयर लुढ़क गए. यूरोप में ख़राब करेंसी नोटों की सप्लाई का मामला छा गया. इस कंपनी ने रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया को कुछ ऐसे नोट दे दिए, जो असली नहीं थे. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की टीम इंग्लैंड गई, उसने डे ला रू कंपनी के अधिकारियों से बातचीत की. नतीजा यह हुआ कि कंपनी ने हम्प्शायर की अपनी यूनिट में उत्पादन और आगे की शिपमेंट बंद कर दी. डे ला रू कंपनी के अधिकारियों ने भरोसा दिलाने की बहुत कोशिश की, लेकिन रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया ने यह कहा कि कंपनी से जुड़ी कई गंभीर चिंताएं हैं. अंग्रेजी में कहें तो सीरियस कंसर्नस. टीम वापस भारत आ गई.
डे ला रू कंपनी की 25 फीसदी कमाई भारत से होती है. इस ख़बर के आते ही डे ला रू कंपनी के शेयर धराशायी हो गए. यूरोप में हंगामा मच गया, लेकिन हिंदुस्तान में न वित्त मंत्री ने कुछ कहा, न ही रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने कोई बयान दिया. रिज़र्व बैंक के प्रतिनिधियों ने जो चिंताएं बताईं, वे चिंताएं कैसी हैं. इन चिंताओं की गंभीरता कितनी है. रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया के साथ डील बचाने के लिए कंपनी ने माना कि भारत के रिज़र्व बैंक को दिए जा रहे करेंसी पेपर के उत्पादन में जो ग़लतियां हुईं, वे गंभीर हैं. बाद में कंपनी के चीफ एक्जीक्यूटिव जेम्स हसी को 13 अगस्त, 2010 को इस्ती़फा देना पड़ा. ये ग़लतियां क्या हैं, सरकार चुप क्यों है, रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया क्यों ख़ामोश है. मज़ेदार बात यह है कि कंपनी के अंदर इस बात को लेकर जांच चल रही थी और एक हमारी संसद है, जिसे कुछ पता नहीं है.
5 जनवरी, 2011 को यह ख़बर आई कि भारत सरकार ने डे ला रू के साथ अपने संबंध ख़त्म कर लिए. पता यह चला कि 16,000 टन करेंसी पेपर के लिए रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया ने डे ला रू की चार प्रतियोगी कंपनियों को ठेका दे दिया. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने डे ला रू को इस टेंडर में हिस्सा लेने के लिए आमंत्रित भी नहीं किया. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया और भारत सरकार ने इतना बड़ा फै़सला क्यों लिया. इस फै़सले के पीछे तर्क क्या है. सरकार ने संसद को भरोसे में क्यों नहीं लिया. 28 जनवरी को डे ला रू कंपनी के टिम कोबोल्ड ने यह भी कहा कि रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया के साथ उनकी बातचीत चल रही है, लेकिन उन्होंने यह नहीं बताया कि डे ला रू का अब आगे रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के साथ कोई समझौता होगा या नहीं. इतना सब कुछ हो जाने के बाद भी डे ला रू से कौन बात कर रहा है और क्यों बात कर रहा है. मज़ेदार बात यह है कि इस पूरे घटनाक्रम के दौरान रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ख़ामोश रहा.
इस तहक़ीक़ात के दौरान एक सनसनीखेज सच सामने आया. डे ला रू कैश सिस्टम इंडिया प्राइवेट लिमिटेड को 2005 में सरकार ने दफ्तर खोलने की अनुमति दी. यह कंपनी करेंसी पेपर के अलावा पासपोर्ट, हाई सिक्योरिटी पेपर, सिक्योरिटी प्रिंट, होलोग्राम और कैश प्रोसेसिंग सोल्यूशन में डील करती है. यह भारत में असली और नक़ली नोटों की पहचान करने वाली मशीन भी बेचती है. मतलब यह है कि यही कंपनी नक़ली नोट भारत भेजती है और यही कंपनी नक़ली नोटों की जांच करने वाली मशीन भी लगाती है. शायद यही वजह है कि देश में नक़ली नोट भी मशीन में असली नज़र आते हैं. इस मशीन के सॉफ्टवेयर की अभी तक जांच नहीं की गई है, किसके इशारे पर और क्यों? जांच एजेंसियों को अविलंब ऐसी मशीनों को जब्त करना चाहिए, जो नक़ली नोटों को असली बताती हैं. सरकार को इस बात की जांच करनी चाहिए कि डे ला रू कंपनी के रिश्ते किन-किन आर्थिक संस्थानों से हैं. नोटों की जांच करने वाली मशीन की सप्लाई कहां-कहां हुई है.
हमारी जांच टीम को एक सूत्र ने बताया कि डे ला रू कंपनी का मालिक इटालियन मा़िफया के साथ मिलकर भारत के नक़ली नोटों का रैकेट चला रहा है. पाकिस्तान में आईएसआई या आतंकवादियों के पास जो नक़ली नोट आते हैं, वे सीधे यूरोप से आते हैं. भारत सरकार, रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया और देश की जांच एजेंसियां अब तक नक़ली नोटों पर नकेल इसलिए नहीं कस पाई हैं, क्योंकि जांच एजेंसियां अब तक इस मामले में पाकिस्तान, हांगकांग, नेपाल और मलेशिया से आगे नहीं देख पा रही हैं. जो कुछ यूरोप में हो रहा है, उस पर हिंदुस्तान की सरकार और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया चुप है.
अब सवाल उठता है कि जब देश की सबसे अहम एजेंसी ने इसे राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा बताया, तब सरकार ने क्या किया. जब डे ला रू ने नक़ली नोट सप्लाई किए तो संसद को क्यों नहीं बताया गया. डे ला रू के साथ जब क़रार ़खत्म कर चार नई कंपनियों के साथ क़रार हुए तो विपक्ष को क्यों पता नहीं चला. क्या संसद में उन्हीं मामलों पर चर्चा होगी, जिनकी रिपोर्ट मीडिया में आती है. अगर जांच एजेंसियां ही कह रही हैं कि नक़ली नोट का काग़ज़ असली नोट के जैसा है तो फिर सप्लाई करने वाली कंपनी डे ला रू पर कार्रवाई क्यों नहीं हुई. सरकार को किसके आदेश का इंतजार है. समझने वाली बात यह है कि एक हज़ार नोटों में से दस नोट अगर जाली हैं तो यह स्थिति देश की वित्तीय व्यवस्था को तबाह कर सकती है. हमारे देश में एक हज़ार नोटों में से कितने नोट जाली हैं, यह पता कर पाना भी मुश्किल है, क्योंकि जाली नोट अब हमारे बैंकों और एटीएम मशीनों से निकल रहे हैं.
डे ला रू का नेपाल और आई एस आई कनेक्शन
कंधार हाईजैक की कहानी बहुत पुरानी हो गई है, लेकिन इस अध्याय का एक ऐसा पहलू है, जो अब तक दुनिया की नज़र से छुपा हुआ है. इस खउ-814 में एक ऐसा शख्स बैठा था, जिसके बारे में सुनकर आप दंग रह जाएंगे. इस आदमी को दुनिया भर में करेंसी किंग के नाम से जाना जाता है. इसका असली नाम है रोबेर्टो ग्योरी. यह इस जहाज में दो महिलाओं के साथ स़फर कर रहा था. दोनों महिलाएं स्विट्जरलैंड की नागरिक थीं. रोबेर्टो़ खुद दो देशों की नागरिकता रखता है, जिसमें पहला है इटली और दूसरा स्विट्जरलैंड. रोबेर्टो को करेंसी किंग इसलिए कहा जाता है, क्योंकि यह डे ला रू नाम की कंपनी का मालिक है. रोबेर्टो ग्योरी को अपने पिता से यह कंपनी मिली. दुनिया की करेंसी छापने का 90 फी़सदी बिजनेस इस कंपनी के पास है. यह कंपनी दुनिया के कई देशों कें नोट छापती है. यही कंपनी पाकिस्तान की आईएसआई के लिए भी काम करती है. जैसे ही यह जहाज हाईजैक हुआ, स्विट्जरलैंड ने एक विशिष्ट दल को हाईजैकर्स से बातचीत करने कंधार भेजा. साथ ही उसने भारत सरकार पर यह दबाव बनाया कि वह किसी भी क़ीमत पर करेंसी किंग रोबेर्टो ग्योरी और उनके मित्रों की सुरक्षा सुनिश्चित करे. ग्योरी बिजनेस क्लास में स़फर कर रहा था. आतंकियों ने उसे प्लेन के सबसे पीछे वाली सीट पर बैठा दिया. लोग परेशान हो रहे थे, लेकिन ग्योरी आराम से अपने लैपटॉप पर काम कर रहा था. उसके पास सैटेलाइट पेन ड्राइव और फोन थे.यह आदमी कंधार के हाईजैक जहाज में क्या कर रहा था, यह बात किसी की समझ में नहीं आई है. नेपाल में ऐसी क्या बात है, जिससे स्विट्जरलैंड के सबसे अमीर व्यक्ति और दुनिया भर के नोटों को छापने वाली कंपनी के मालिक को वहां आना पड़ा. क्या वह नेपाल जाने से पहले भारत आया था. ये स़िर्फ सवाल हैं, जिनका जवाब सरकार के पास होना चाहिए. संसद के सदस्यों को पता होना चाहिए, इसकी जांच होनी चाहिए थी. संसद में इस पर चर्चा होनी चाहिए थी. शायद हिंदुस्तान में फैले जाली नोटों का भेद खुल जाता.
नकली नोंटों का मायाजाल
सरकार के ही आंकड़े बताते हैं कि 2006 से 2009 के बीच 7.34 लाख सौ रुपये के नोट, 5.76 लाख पांच सौ रुपये के नोट और 1.09 लाख एक हज़ार रुपये के नोट बरामद किए गए. नायक कमेटी के मुताबिक़, देश में लगभग 1,69,000 करोड़ जाली नोट बाज़ार में हैं. नक़ली नोटों का कारोबार कितना ख़तरनाक रूप ले चुका है, यह जानने के लिए पिछले कुछ सालों में हुईं कुछ महत्वपूर्ण बैठकों के बारे में जानते हैं. इन बैठकों से यह अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि देश की एजेंसियां सब कुछ जानते हुए भी बेबस और लाचार हैं. इस धंधे की जड़ में क्या है, यह हमारे ख़ुफिया विभाग को पता है. नक़ली नोटों के लिए बनी ज्वाइंट इंटेलिजेंस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि भारत नक़ली नोट प्रिंट करने वालों के स्रोत तक नहीं पहुंच सका है. नोट छापने वाले प्रेस विदेशों में लगे हैं. इसलिए इस मुहिम में विदेश मंत्रालय की मदद लेनी होगी, ताकि उन देशों पर दबाव डाला जा सके. 13 अगस्त, 2009 को सीबीआई ने एक बयान दिया कि नक़ली नोट छापने वालों के पास भारतीय नोट बनाने वाला गुप्त सांचा है, नोट बनाने वाली स्पेशल इंक और पेपर की पूरी जानकारी है. इसी वजह से देश में असली दिखने वाले नक़ली नोट भेजे जा रहे हैं. सीबीआई के प्रवक्ता ने कहा कि नक़ली नोटों के मामलों की तहक़ीक़ात के लिए देश की कई एजेंसियों के सहयोग से एक स्पेशल टीम बनाई गई है. 13 सितंबर, 2009 को नॉर्थ ब्लॉक में स्थित इंटेलिजेंस ब्यूरो के हेड क्वार्टर में एक मीटिंग हुई थी, जिसमें इकोनोमिक इंटेलिजेंस की सारी अहम एजेंसियों ने हिस्सा लिया. इसमें डायरेक्टरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलिजेंस, इंटेलिजेंस ब्यूरो, आईबी, वित्त मंत्रालय, सीबीआई और सेंट्रल इकोनोमिक इंटेलिजेंस ब्यूरो के प्रतिनिधि मौजूद थे. इस मीटिंग का निष्कर्ष यह निकला कि जाली नोटों का कारोबार अब अपराध से बढ़कर राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा बन गया है. इससे पहले कैबिनेट सेक्रेटरी ने एक उच्चस्तरीय बैठक बुलाई थी, जिसमें रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया, आईबी, डीआरआई, ईडी, सीबीआई, सीईआईबी, कस्टम और अर्धसैनिक बलों के प्रतिनिधि मौजूद थे. इस बैठक में यह तय हुआ कि ब्रिटेन के साथ यूरोप के दूसरे देशों से इस मामले में बातचीत होगी, जहां से नोट बनाने वाले पेपर और इंक की सप्लाई होती है. तो अब सवाल उठता है कि इतने दिनों बाद भी सरकार ने कोई कार्रवाई क्यों नहीं की, जांच एजेंसियों को किसके आदेश का इंतजार है?