चंगेज खान हो या औरंगज़ेब, माओ हो या स्टालिन या फिर सावरकर, इतिहास की किताबों में इनके बारे में जो लिखा गया है और जो हक़ीक़त है, उसमें का़फी फर्क़ है. यह फर्क़ इसलिए है, क्योंकि इतिहास हमेशा विजेताओं का हुआ करता है या शासकों का, पराजित या शासितों का नहीं होता है. इतिहास तो वही लिखवा सकते हैं और लिखवाते हैं, जो विजेता होते हैं और जो सत्ता में होते हैं. ओसामा बिन लादेन का इतिहास अमेरिका लिख रहा है, क्योंकि वही विजेता है. इतिहास की किताबों में ओसामा बिन लादेन का नाम दुनिया के सबसे खतरनाक आतंकवादी के रूप में दर्ज होगा. यही इतिहास अमेरिका लिखेगा, यही दुनिया भर में प्रचारित होगा. लेकिन, जो लोग ओसामा को इस्लाम के लिए लड़ने वाला महान योद्धा मानते हैं, वैसा इतिहास कौन लिखेगा?
सीढ़ियों पर अपनी जान बचाते दौड़ते, भागते और हांफते दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश के सांसद. कोई गिर रहा है, कोई दूसरे को धक्का दे रहा है. सब जान बचाकर भागने में लगे हैं. यह आंखों पर विश्वास करने वाला नजारा नहीं है. 9 सितंबर, 2001 से पहले यह कोई सोच भी नहीं सकता था कि अमेरिका के सांसद अपने ही संसद भवन से जान बचाकर इस तरह भागते हुए नज़र आएंगे. एक बार, दो बार नहीं, 2001 के बाद ऐसा नज़ारा कई बार देखा गया. 31 जनवरी, 2007 को तो हद ही हो गई. अमेरिका के बोस्टन शहर में किसी कंपनी ने प्रचार के लिए कई जगहों पर एलईडी बोर्ड लगा दिए. दूर से देखने में यह बम की तरह दिख रहे थे. खबर फैलते ही शहर पर सेना के हेलीकॉप्टर मंडराने लगे. टीवी पर लाइव दिखाया जाने लगा. शहर के लोग घरों में दुबक गए. लगा कि किसी सीरियल ब्लास्ट की योजना है. इस तरह की और भी घटनाएं कई अन्य शहरों में हुईं. वर्ल्ड ट्रेड सेंटर हादसे के बाद अमेरिका वासियों के दिलों में दहशत घर कर गई. अमेरिका का मिथक टूट गया. दुनिया का सबसे ताक़तवर देश, जिसके बारे में यह कहा जाता था कि उसकी भौगोलिक, सामरिक और राजनीतिक स्थिति ऐसी है कि उस पर कोई हमला नहीं कर सकता, अपनी ही सुरक्षा को लेकर चिंतित हो गया.
यह मिथक तोड़ने का श्रेय ओसामा बिन मोहम्मद बिन अवद बिन लादेन को जाता है, जिसे हम दुनिया के सबसे खतरनाक आतंकवादी ओसामा बिन लादेन के नाम से जानते हैं. ओसामा बिन लादेन एक आतंकी तो था, लेकिन उसने ऐसा काम किया, जिसे शक्तिशाली सोवियत रूस नहीं कर सका, जापान नहीं कर सका, हिटलर का जर्मनी नहीं कर सका. द्वितीय विश्वयुद्ध में भी किसी ने न्यूयॉर्क पर हमला करने की हिम्मत नहीं की. जापान ने पर्ल हार्बर पर हमला ज़रूर किया, लेकिन यह मेन लैंड से दो हज़ार किलोमीटर से भी ज़्यादा दूर समुद्र में एक टापू है. सामरिक दृष्टि से ओसामा बिन लादेन का वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमला इतिहास में अमेरिका पर हुआ सबसे बड़ा हमला है. ओसामा बिन लादेन ने पहली बार अमेरिका को यह एहसास दिलाया कि उसके शहर सुरक्षित नहीं हैं. वह एटलांटिक महासागर पार कर उसके शहरों को तबाह कर सकता है. ओसामा बिन लादेन का अमेरिका पर यह पहला हमला नहीं था. इससे पहले भी वह अमेरिकी दूतावासों और समुद्री जहाजों को निशाना बना चुका था, लेकिन वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमले ने दुनिया का रंग ही बदल दिया. अंतरराष्ट्रीय राजनीति, आर्थिक व्यवस्था, नाटो की ज़िम्मेदारियां, रूस एवं चीन का विश्व राजनीति में हस्तक्षेप, पश्चिम एशिया के प्रति दुनिया का रवैया, इजरायल एवं फिलिस्तीन की लड़ाई और आतंकवाद के प्रति दुनिया का रवैया जैसी कई महत्वपूर्ण चीजें हैं, जिनमें असरदार बदलाव आया. इन बदलावों की एक ही वजह थी, ओसामा बिन लादेन का अमेरिका पर हमला. ओसामा के हमले ने न स़िर्फ अमेरिका को असुरक्षित क़रार दिया, साथ ही विश्व राजनीति भी बदल गई. इसके बाद दुनिया की सारी ताक़तें ओसामा बिन लादेन को ढूंढने निकल पड़ीं, लेकिन वह दस सालों तक अमेरिकी सेना को चकमा देता रहा. बीच-बीच में वह अपने आडियो और वीडियो टेप जारी कर देता, दुनिया को यह बताने के लिए कि वह जिंदा है. 2 मई, 2011 को पाकिस्तान के ऐबटाबाद में ओसामा बिन लादेन को अमेरिकी सेना ने मार गिराया. अब सवाल यह है कि क्या ओसामा की मौत के साथ उसका अध्याय खत्म हो गया?
ओसामा बिन लादेन की मौत अलक़ायदा के मनोबल पर गहरा झटका है. ओसामा बिन लादेन दुनिया, खासकर ग़ैर मुस्लिम देशों के लिए एक आतंकवादी था, लेकिन इसके साथ ही इस बात को भी नकारा नहीं जा सकता कि वह एक करिश्माई नेता था. करोड़ों लोग उसे एक शानदार योद्धा मानते थे. ओसामा बिन लादेन के नाम से कौन वाकिफ नहीं है. दुनिया भर में बच्चे-बच्चे के मुंह पर ओसामा बिन लादेन का नाम है. करोड़ों लोगों के बीच ओसामा की पहचान यह है कि वह एक अरबपति था, जिसने इस्लाम के दुश्मनों से लड़ने के लिए दुनिया के सारे ऐशो-आराम त्याग दिए. ऐसे भी लोग हैं, जो ओसामा द्वारा की गई हत्याओं की निंदा करते हैं, साथ ही उसकी हिम्मत को दाद भी देते हैं कि वह अकेला ऐसा व्यक्ति था, जिसने अमेरिका से लोहा लिया. ओसामा ने जो किया, जिस तरह किया, उस पर मतभेद हो सकता है, लेकिन इस बात को कौन झुठला सकता है कि उसने धीरे-धीरे दुनिया भर में एक ऐसा संगठन तैयार कर दिया, जिससे बड़ी-बड़ी सरकारें सहम गईं.
ओसामा बिन लादेन कोई साधारण आतंकवादी नहीं था. वह अमेरिका विरोध का जीता-जागता प्रतीक बन चुका था. फिलिस्तीन का मामला हो या फिर अ़फग़ानिस्तान और इराक़ का, अमेरिका ने अपनी शक्ति का प्रयोग किया. तेल के लिए उसने पश्चिम एशिया की सरकारों के साथ मिलकर वहां के निवासियों को विमुख किया. इस्लामिक देशों के लोग अमेरिका के बारे में अच्छी राय नहीं रखते हैं, उसे दुश्मन मानते हैं. ओसामा बिन लादेन ऐसे ही लोगों का महानायक बनकर उभरा. यही वजह है कि दुनिया भर के मुस्लिम देशों में ओसामा के चाहने वाले मौजूद हैं. यही वजह है कि ओसामा की मौत के बाद उन लोगों ने खुलेआम नमाज अदा की. ओसामा बिन लादेन किसी व्यक्ति या आतंकवादी का नाम नहीं रह गया है. ओसामा एक आइडिया है. ओसामा बिन लादेन ने इस्लामिक समाज और ईसाई सभ्यता के बीच एक ऐसी लकीर खींच दी, जिसका असर पूरे विश्व में प्रत्यक्ष रूप से दिखा. क्लैश ऑफ सिविलाइजेशन की बातें पहले से हो रही थीं, लेकिन ओसामा बिन लादेन ने इसे हक़ीक़त में बदल दिया. ऐसा विचार, जो यह मानता है कि अमेरिका और यूरोप इस्लामिक सभ्यता को तबाह करना चाहते हैं. उसने पश्चिम एशिया के लोगों को यह समझाया कि अमेरिका अपनी वैचारिक, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक सत्ता को मुसलमानों पर थोपना चाहता है. उसने यह अपील की कि अमेरिका और यूरोप के देश शक्तिशाली हैं और उनसे लड़ने के अलावा कोई चारा नहीं है. मुस्लिम देशों की सरकारें अमेरिका से नहीं लड़ सकती हैं, इसलिए खुद ही लड़ना ज़रूरी है. इनके खिलाफ जेहाद करना ही सबसे पवित्र कर्तव्य है. यह आइडिया खतरनाक और हिंसक है, लेकिन सच्चाई यह है कि ओसामा बिन लादेन के विचारों और संदेशों से कई नौजवान प्रेरित होते हैं. वह अरब देशों के युवाओं का हीरो है. यह बिन लादेन का ही असर है कि अमेरिका विरोध उनके दिलों में ऐसे बैठ जाता है कि वे आत्मघाती हमले करने से भी नहीं हिचकते. ओसामा बिन लादेन द्वारा बनाया गया संगठन अलक़ायदा ऐसे ही प्रेरित और समर्पित लोगों की फौज है. यही वजह है कि यूरोप, उत्तरी अमेरिका, मध्य पूर्व और एशिया के 40 से भी अधिक देशों में ओसामा बिन लादेन का अलक़ायदा सक्रिय है.
ओसामा बिन लादेन के मरने के बाद अलक़ायदा का नया चेहरा उभरेगा. ओसामा बिन लादेन की हैसियत अब एक दार्शनिक की होगी. यह संगठन लादेन द्वारा बताई गई विचारधारा और रणनीति पर चलेगा. पिछले दस सालों में ओसामा बिन लादेन ने अलक़ायदा को बड़ी सूझबूझ के साथ फ्रेंचाइजी मॉडल में तब्दील कर दिया. मतलब यह कि पहले जहां अलक़ायदा का स़िर्फ एक संगठन होता था, अब यह अलग-अलग जगहों पर छोटी-छोटी इकाइयों की तरह काम करेगा. ओसामा बिन लादेन इस्लाम की पवित्रता में विश्वास करता था. वह डेमोक्रेसी, कम्युनिज्म, सोशलिज्म या फिर किसी भी ग़ैर इस्लामी सरकारी व्यवस्था के खिलाफ था. वह इस्लामिक देशों में शरिया के मुताबिक़ क़ानून लागू करने का पक्षधर था. उसका मानना था कि मुल्ला उमर की तालिबानी सरकार वाला अ़फग़ानिस्तान ही अकेला इस्लामिक देश है. वह ऐसी ही सरकार हर मुस्लिम देश में लागू करना चाहता था. उसका मानना था कि अमेरिका ने पश्चिम एशिया में आकर सभ्यता और इस्लाम को प्रदूषित कर दिया है, इसलिए अमेरिका को पूरे पश्चिम एशिया से बाहर करना जरूरी है. ओसामा फिलिस्तीन का समर्थक था और इजरायल को पश्चिम एशिया से बाहर निकालने का पक्षधर था. इसके लिए उसे हिंसा से भी गुरेज नहीं था. इसमें कोई शक़ नहीं कि उसके विचार और लक्ष्य हासिल करने के तरीक़े उसे आतंकवादी की श्रेणी में शामिल करते हैं.
ओसामा की रणनीति अलग-अलग दुश्मनों के हिसाब से बनी थी. अलक़ायदा के मैन्युअल में इसे अच्छी तरह से समझाया गया है. ओसामा बिन लादेन छोटे देशों से लड़ने के लिए बम धमाके और आत्मघाती हमले जैसी रणनीति पर काम करता था, लेकिन सोवियत संघ और अमेरिका जैसे बड़े देशों के लिए उसकी रणनीति अलग थी. वह इनके साथ सालों तक चलने वाली लंबी लड़ाई करके इन्हें तबाह करना चाहता था. उसका मानना था कि ऐसी लड़ाई के ज़रिए ही विश्व शक्ति को हराया जा सकता है. ऐसी रणनीति की वजह से विश्व शक्ति की आर्थिक स्थिति कमज़ोर हो जाती है. सैनिकों के मरने से इन देशों की सरकार पर दबाव बढ़ता है, जिसकी वजह से वे युद्ध के मैदान से भागने के लिए मजबूर हो जाएंगे. साथ ही इस दौरान धर्मयुद्ध के नाम पर अलग-अलग देशों से जेहादी शामिल होंगे, जो जान दे देंगे, लेकिन समर्पण नहीं करेंगे. इसी रणनीति के ज़रिए ओसामा बिन लादेन ने सोवियत संघ को अफगान युद्ध में पराजित किया था. सोवियत सेना को अपने टैंक छोड़कर भागना पड़ा था. ओसामा बिन लादेन यही उम्मीद कर रहा था कि अ़फग़ानिस्तान में जो हाल सोवियत संघ का हुआ, वही अमेरिका का होगा. समझने वाली बात यह है कि उसकी रणनीति सफल होती नज़र आ रही है. अमेरिका की आर्थिक स्थिति युद्ध की वजह से खराब हो गई है. अमेरिका अब ज़्यादा दिनों तक इराक और अ़फग़ानिस्तान से युद्ध जारी रखने के पक्ष में नहीं है. इन देशों में युद्ध को लेकर सरकार को जन समर्थन नहीं है. चुनाव के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा ने यही वादा किया था कि वह युद्ध को खत्म करेंगे, इराक़ और अ़फग़ानिस्तान से सैनिकों को वापस लाएंगे. अमेरिकी सेना के वापस जाने से पहले ही ओसामा बिन लादेन पकड़ा गया. अमेरिका ने उसे मार गिराया, लेकिन यह कहना पड़ेगा कि वह इतिहास का ऐसा अकेला शख्स है, जिसने दोनों सुपर पावर से लड़ाई लड़ी. एक को उसने हरा दिया और दूसरे के साथ युद्ध में मारा गया. भविष्य में अगर अमेरिकी सेना अ़फग़ानिस्तान से वापस जाती है और तालिबान वापस अ़फग़ानिस्तान में सरकार बनाने में कामयाब हो जाता है तो यक़ीनन इसका श्रेय ओसामा बिन लादेन को जाएगा.
अब सवाल यह है कि ओसामा बिन लादेन के बाद अलक़ायदा का क्या होगा. ओसामा बिन लादेन ने एक ऐसा संगठन तैयार किया, जो संख्या के आधार पर ज़्यादा बड़ा नहीं है, लेकिन इसके सदस्य समर्पित और प्रशिक्षित लड़ाकू हैं, जो जान पर खेलकर अपना काम करते हैं. समझने वाली बात यह है कि अलक़ायदा किसी दूसरे संगठनों की तरह कोई वर्गीकृत संगठन नहीं है. इसका कोई निर्धारित कंट्रोल एवं कमांड सिस्टम नहीं है. आज अलक़ायदा का नेटवर्क इंडोनेशिया से लेकर अमेरिका तक फैला है. 9/11 के बाद ओसामा ने अलक़ायदा को छोटी-छोटी टुकड़ियों में बांट दिया. ओसामा बिन लादेन ने अलक़ायदा को पूरी दुनिया में फैला दिया. इसकी सारी गतिविधियां दुनिया से छिपी हैं. इसके सदस्य गुप्त रूप से काम करते हैं. लादेन को टेक्नालॉजी की अच्छी समझ थी. वह इस बात से वाक़ि़फ था कि अ़फग़ान युद्ध के बाद से दुनिया का़फी बदल चुकी है. वह इस बात को भी समझता था कि किस तरह इंटरनेट और सैटेलाइट के ज़रिए शक्तिशाली देश उसके संगठन पर निगरानी रख सकते हैं और किस तरह उसे तबाह कर सकते हैं. इसलिए उसने एक ऐसा संगठन तैयार किया, जिसके सदस्यों, समर्थकों एवं योजनाओं की जानकारी और आकलन करना का़फी मुश्किल है. यही वजह है कि ओसामा बिन लादेन की मौत से अलक़ायदा के संगठन को ज़्यादा नुक़सान नहीं होने वाला है. ओसामा बिन लादेन ने 9/11 के बाद एक आदमी-एक बम की रणनीति पर काम किया. हालांकि पाकिस्तान और अफगानिस्तान में अलक़ायदा के कई ठिकानों पर हमले हुए, उसके कई सदस्य मारे गए, लेकिन अमेरिका और यूरोप के देशों को सबसे ज़्यादा खतरा अलक़ायदा की उन टुकड़ियों से है, जो पश्चिम एशिया, अमेरिका, यूरोप और अफ्रीका में सक्रिय हैं. इससे भी ज़्यादा खतरा उन लोगों से है, जो अलक़ायदा से जुड़े तो नहीं हैं, लेकिन अलक़ायदा के संदेश से प्रभावित होकर जेहादी बनते हैं या कभी भी जेहादी बन सकते हैं. इसलिए ओसामा बिन लादेन मरने के बाद भी उतना ही खतरनाक है, जितना वह जीवित रहने पर था. ओसामा बिन लादेन का जिंदा रहना अलक़ायदा के लिए एक जीत की अनुभूति थी कि दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश ने जिसे पकड़ने के लिए अपनी पूरी ताक़त लगा दी, फिर भी वह बिन लादेन जिंदा है, अमेरिका की पकड़ से बाहर है. ओसामा बिन लादेन के मारे जाने से अमेरिका को स़िर्फ मनोवैज्ञानिक फायदा हुआ है, हालांकि उसे अलक़ायदा के सदस्यों एवं समर्थकों से खतरा आज और भी अधिक है, क्योंकि अलक़ायदा अब ओसामा की मौत का बदला लेने पर आमादा है.
इसमें कोई शक़ नहीं है कि ओसामा की मौत से अमेरिकी सरकार ने राहत की सांस ली. अमेरिका के रणनीतिकार यही सोच रहे होंगे कि भविष्य में अब कोई दूसरा ओसामा बिन लादेन न पैदा हो. एक और बात जो ग़ौर करने वाली है कि ओसामा बिन लादेन ने मानसिक और वैचारिक स्तर पर भी व्यापक असर डाला है. 9/11 की घटना के बाद से इस्लाम, जेहाद और आतंकवाद को लेकर पूरी दुनिया में बहस छिड़ गई. 2001 के बाद से इस्लामिक समाज को चरमपंथियों और उग्रवाद ने अपने चंगुल में लिया और इसमें उन्हें सफलता भी मिली. वहीं मुसलमानों का एक बड़ा तबका इस्लाम के इस रूप के विरोध में जा खड़ा हुआ. ओसामा बिन लादेन, अलक़ायदा और उससे जुड़े संगठनों की वजह से मुस्लिम समाज में आधुनिकता की हवा चली. जेहाद के नाम पर होने वाली हिंसा की निंदा करने के लिए मुसलमान आगे आने लगे. मुस्लिम समाज की नई पीढ़ी यानी युवा वर्ग ने तो हिंसा और आतंक को सिरे से नकार दिया. इसका असर पश्चिम एशिया में देखने को मिल रहा है, जहां मुसलमान प्रजातंत्र के लिए आंदोलन कर रहे हैं. इन आंदोलनों में महिलाएं भी शामिल हैं. भारत और पाकिस्तान में चरमपंथी तो हैं, लेकिन उन्हें मुस्लिम युवाओं का समर्थन नहीं हासिल है. ओसामा बिन लादेन की गतिविधियों की वजह से यूरोप और अमेरिकी समाज का असली चेहरा भी सामने आया. यूरोप और अमेरिका अपनी सांस्कृतिक श्रेष्ठता पर इठलाते रहे हैं. अब तक यही बताया गया कि सहिष्णुता और उदारता पश्चिम सभ्यता की जड़ है. 9/11 के बाद से जिस तरह गैर ईसाइयों के साथ बर्ताव हुआ, जिस तरह ग़ैर ईसाइयों पर हमले हुए, जिस तरह पगड़ी और हिजाब को लेकर सिखों एवं मुसलमानों को प्रताड़ित किया गया, उससे पश्चिमी सभ्यता की कलई खुल गई.
ओसामा बिन लादेन का सफरनामा
1957 : सऊदी अरब के एक बहुत बड़े व्यवसायी मोहम्मद अवाद बिन लादेन के घर ओसामा का जन्म.
1967: हेलीकॉप्टर एक्सीडेंट में मोहम्मद अवाद की मृत्यु, दस वर्ष की उम्र में ओसामा बिन लादेन पिता की दौलत का उत्तराधिकारी बना.
1979 : लादेन अफगानिस्तान गया, जहां वह अफगान लड़ाकों के साथ मुजाहिदीन बन गया और अ़फग़ानों का वित्तदाता बना.
1989: रूस के अफगानिस्तान छोड़ने के बाद ओसामा सऊदी अरब वापस आता है और पिता का काम देखता है. अ़फग़ानों को मदद जारी रहती है.
1990 : कुवैत पर इराक़ के हमले के मद्देनज़र अमेरिकी सैनिक सऊदी अरब आते हैं. लादेन अरब से विमुख हो जाता है और सऊदी अरब के विरोध में लेख लिखने लगता है.
1991 : सऊदी अरब से निष्कासित, सूडान नया घर. घरवाले भी उसे नकार देते हैं.
1993 : वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर बम फटा, सोमालिया में अमेरिकी सैनिकों की हत्या.
1995 : रियाद में बम धमाका, कई अमेरिकी मारे गए.
1996 : सूडान से बहिष्कृत, अफगानिस्तान जाकर अमेरिका के खिलाफ जेहाद की घोषणा.
1998 : नैरोबी, केन्या, तंजानिया और दार-ए-सलाम में अमेरिकी दूतावासों पर बमों से हमला.
2000 : लॉस एंजिलिस हवाई अड्डे पर बम विस्फोट की योजना विफल. पकड़े गए आतंकियों ने बिन लादेन से प्रशिक्षण लिया था.
2001 : 9/11 की घटना, लादेन प्रमुख दोषी माना गया.
2002 : तालिबान सत्ताच्युत, लादेन का अमेरिका के खिलाफ युद्ध.
2003: अल जजीरा चैनल पर लादेन का वीडियो टेप, जिसमें लादेन सारे मुसलमानों को एक होकर अमेरिका से लड़ने की नसीहत देता है.
2004 : अमेरिका लादेन के सिर पर ईनाम बढ़ाकर 50 मिलियन डॉलर कर देता है.
2011 : लादेन पाकिस्तान के ऐबटाबाद में अमेरिकी हमले में मारा जाता है.