भारतीय जनता पार्टी अब राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की राह पर चलेगी. भाजपा पहले भी संघ के इशारे पर ही चलती थी, लेकिन थोड़ा पर्दा था. नए अध्यक्ष नितिन गडकरी ने यह पर्दा भी उठा दिया है. पहले संघ के लोग कहते थे कि भाजपा के क्रियाकलापों में संघ का कोई हस्तक्षेप नहीं है और भाजपा के नेता कहते थे कि संघ उनके लिए वैचारिक प्रेरणास्रोत है, भाजपा के काम में संघ की कोई दख़लअंदाज़ी नहीं है. ऐसा पहली बार हुआ है कि भाजपा के किसी अध्यक्ष ने पार्टी के कार्यक्रम में संघ के अधिकारियों की हिस्सेदारी की बात कही है. पार्टी को मज़बूत करने की राह पर निकली भाजपा के राष्ट्रीय कार्यकारिणी का मक़सद एक था, भाजपा को संघ के साए में लाना और संघ विरोधी भाजपा नेताओं को पार्टी की दुर्दशा के लिए ज़िम्मेदार बताना. इसके अलावा नए अध्यक्ष नितिन गडकरी ने राम मंदिर का राग अलाप कर भाजपा की ओर से यह संदेश दिया है कि पार्टी देश में सांप्रदायिक राजनीति को हवा देगी.
इंदौर में देश भर से आए भाजपा नेताओं का जमावड़ा था. देश-विदेश के मीडिया के लोग थे. तीन दिनों तक चली भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी को लेकर पार्टी कार्यकर्ताओं में उत्सुकता थी. वहां की हर पल की ख़बर न्यूज़ चैनलों पर ब्रेकिंग न्यूज़ बनकर आ रही थी. भाजपा के समर्थक एवं विरोधियों की नज़र इस बैठक पर टिकी थी. अपेक्षा यह थी कि भारतीय जनता पार्टी इस कार्यकारिणी के बाद नए अंदाज़ और नए तेवर के साथ उभरेगी. लेकिन, इस बैठक से भाजपा ने जो संदेश दिया है, वह न स़िर्फ चौंकाने वाला है, बल्कि भाजपा समर्थकों के लिए निराशाजनक है. नितिन गडकरी पहली बार अध्यक्ष के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर नेताओं और कार्यकर्ताओं के सामने थे. गडकरी के पास पार्टी में नई सोच, नई ऊर्जा और नई कार्य प्रणाली लागू करने का अवसर था. पार्टी को सही रास्ते पर लाने का सुनहरा मौक़ा था. यह मौक़ा बेकार चला गया. नितिन गडकरी अग्नि परीक्षा में खरे नहीं उतरे.
भाजपा के किसी अध्यक्ष ने पार्टी के कार्यक्रम में संघ के अधिकारियों की हिस्सेदारी की बात कही है. पार्टी को मज़बूत करने की राह पर निकली भाजपा के राष्ट्रीय कार्यकारिणी का मक़सद एक था, भाजपा को संघ के साए में लाना और संघ विरोधी भाजपा नेताओं को पार्टी की दुर्दशा के लिए ज़िम्मेदार बताना. इसके अलावा नए अध्यक्ष नितिन गडकरी ने राम मंदिर का राग अलाप कर भाजपा की ओर से यह संदेश दिया है कि पार्टी देश में सांप्रदायिक राजनीति को हवा देगी.
नितिन गडकरी जब भी बोले, ऐसा लगा कि उनके मुंह से संघ बोल रहा है. नितिन गडकरी के सामने भाजपा को मज़बूत करने की चुनौती है. नितिन गडकरी भाजपा का नवनिर्माण राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की तरह करना चाहते हैं. राष्ट्रीय कार्यकारिणी के दौरान नितिन गडकरी ने जितनी भी बातें कहीं, उनसे यही संकेत मिलते हैं कि वह भारतीय जनता पार्टी को एक कैडर पार्टी बनाना चाहते हैं और उसके मुख्य पदों पर संघ के पूर्णकालिक एवं समर्पित कार्यकर्ता होंगे. कार्यकर्ताओं के निर्माण, विचारधारा, कार्यशैली और नैतिक आचरण के लिए भी राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से ही प्रेरणा ली जाएगी. गडकरी ने यह भी संदेश दिया कि जिस तरह संघ कार्यकर्ताओं के लिए वार्षिक प्रशिक्षण वर्ग आयोजित होता है, उसी तर्ज पर भाजपा कार्यकर्ताओं के लिए भी प्रशिक्षण शिविर आयोजित होंगे.
संघ ने भारतीय जनता पार्टी पर अपना शिकंजा कैसे कसा है, यह गडकरी के पूरे भाषण में झलक रहा था. राम मंदिर के बारे में जो बयान गडकरी ने दिया है, वही राग संघ और भाजपा पिछले कई सालों से अलाप रही है. उन्होंने कहा कि भारतीय जनता पार्टी अयोध्या में मंदिर के निर्माण के लिए प्रतिबद्ध है. गडकरी ने मुस्लिम समुदाय से अपील की कि वह अयोध्या में राम मंदिर बनाने में सहयोग दे. उनका कहना था कि अगर मुस्लिम विवादित भूमि पर दावा छोड़ देते हैं तो मंदिर के पास ही मस्जिद बनाई जाएगी. ऐसे बयानों का कोई मतलब नहीं है, क्योंकि गडकरी की बातों पर विश्वास करने वाला कोई मुस्लिम संगठन नज़र नहीं आ रहा है. नए अध्यक्ष ने ऐसा कोई काम भी नहीं किया है, जिससे मुस्लिम समुदाय यह भरोसा करे कि पहले मंदिर बन जाने दो, फिर संघ और भाजपा के लोग वहां मस्जिद बनाने में मदद करेंगे. संघ और भाजपा के लोग भी यह जानते हैं कि उनकी बातों पर कोई मुस्लिम संगठन विश्वास नहीं करने वाला है. फिर से राम मंदिर का मुद्दा उठाने के पीछे क्या देश में एक बार फिर सांप्रदायिक माहौल तैयार करने का इरादा है. याद रहे कि यह मामला फिलहाल अदालत में है और इस साल ही बिहार में चुनाव होने वाले हैं.
भाजपा हो या कांग्रेस, अगर उन्हें दलितों का समर्थन लेना है तो राहुल गांधी या नितिन गडकरी द्वारा दलितों के यहां जाने और खाने से कुछ नहीं होने वाला है. राष्ट्रीय पार्टियों का यह दायित्व है कि दलितों और आदिवासियों को वह अपने यहां नेतृत्व का मौक़ा दें. दलित समाज की समस्या, उसकी ग़रीबी और उसके शोषण के ख़िला़फ आंदोलन करें. अ़फसोस की बात यह है कि भारतीय जनता पार्टी के नेता जब भी मुख्य मुद्दे की बात करते हैं तो उनमें स़िर्फ राम मंदिर, धारा 370, यूनिफार्म सिविल कोड और गोवंश संरक्षण की बात होती है. इनमें दलितों के हिस्से का कुछ भी नहीं है. अगर भाजपा वाकई में दलितों का समर्थन लेना चाहती है तो राष्ट्रीय कार्यकारिणी में गडकरी को दलितों के लिए किसी योजना की घोषणा करनी चाहिए थी. इसके अलावा दलितों के लिए पार्टी संगठन में आरक्षण या फिर दलितों के विकास के लिए कोई प्रस्ताव लाया जाता तो बेहतर होता. लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ. नितिन गडकरी ने दलित के घर खाना खाया, मीडिया में इसका का़फी प्रचार भी हुआ. अब नितिन गडकरी ने अगले तीन सालों में भाजपा के वोट में दस फीसदी बढ़ोत्तरी का वायदा तो किया है, लेकिन इसे अंजाम कैसे दिया जाएगा, इसका रोडमैप भाजपा के किसी भी नेता के सामने सा़फ नहीं है.
राष्ट्रीय कार्यकारिणी के दौरान भारतीय जनता पार्टी के पास आत्मनिरीक्षण करने का मौक़ा था. पिछले चुनाव में हार की वजह और ज़िम्मेदारी को तय करने का अवसर था. आज पार्टी की सबसे बड़ी समस्या वैचारिक और सांगठनिक है, जिसकी वजह से आज भाजपा पहचान के संकट से जूझ रही है. हैरानी की बात यह है कि भाजपा उन राज्यों में सांगठनिक चुनाव नहीं करा सकी, जिनके दम पर पार्टी ने केंद्र में सरकार बनाई थी. अगर पार्टी को मज़बूत करना है तो जिन मुख्य राज्यों में भाजपा के सांगठनिक चुनाव नहीं हो सके हैं, उनके बारे में भी बात करनी चाहिए थी. जिन राज्यों में भारतीय जनता पार्टी की हार हुई है, उसके कारणों पर भी चर्चा होनी चाहिए थी. पार्टी को आपसी फूट और नेताओं के स्वार्थ से कैसे निजात दिलाई जाए, उस पर विचार होना चाहिए था. जिन राज्यों में भाजपा अब तक कुछ नहीं कर सकी है, उन राज्यों में पार्टी को मज़बूत करने के लिए मंथन होना चाहिए था. भारतीय जनता पार्टी के नए अध्यक्ष से यह अपेक्षा थी कि वह एक सर्जन की तरह पार्टी का ऑपरेशन करके बीमारी दूर करते, लेकिन पूरे भाषण में वह एक मरीज की तरह पार्टी की बीमारियों को ही बताते नज़र आए.
आज भाजपा कार्यकर्ता जब यह देखता है कि पार्टी के नेता अपने-अपने स्वार्थ के लिए काम कर रहे हैं तो यह सोचता है कि वह पार्टी के लिए क्यों काम करे. राष्ट्रीय कार्यकारिणी के दौरान कार्यकर्ताओं के मन में उठे इस सवाल का जवाब पार्टी को ढूंढना चाहिए. लेकिन इस दौरान उन्होंने उन बातों को दोहराया, जो पहले से ही भाजपा कार्यकर्ताओं को मालूम हैं कि पार्टी की दुर्दशा दिल्ली में बैठे वरिष्ठ नेताओं की वजह से है. अच्छा होता कि गडकरी वरिष्ठ नेताओं की ग़लतियां गिनने के बजाय उन ग़लतियों को सुधारने का कोई फॉर्मूला बताते.