वार्ता के दौरान पाकिस्तान ने आतंकवाद के खिला़फ संयुक्त मोर्चे पर फिर से बातचीत शुरू करने की पेशकश की, जिसे मुंबई हमले के बाद बंद कर दिया गया था. भारत का मानना है कि वह सब कुछ करने को तैयार है, लेकिन पहले पाकिस्तान की सरकार को हाफिज़ सईद के खिला़फ कार्रवाई करनी होगी.
यह अजीबोग़रीब स्थिति है कि एक आतंकी की वजह से न्यूक्लियर शक्ति से लैस दो देश आपस में अपने रिश्ते ख़राब करने पर आमादा हैं. यह किस तरह की डिप्लोमेसी है कि दोनों देश के महान राजनयिक उसी निर्णय पर पहुंच जाते हैं, जो दोनों देशों में आतंक फैलाने वाले आतंकी चाहते हैं. लश्कर-ए-तैय्यबा हो या फिर अलक़ायदा, दोनों ही संगठन यह चाहते हैं कि भारत पाकिस्तान आपस में लड़ते रहें. आतंक के खिला़फ कभी एक दूसरे से हाथ न मिला सकें. हाल में हुई भारत-पाकिस्तान वार्ता का असफल होना इस बात का सबूत है कि दोनों देशों की सरकारों की प्राथमिकता रिश्ते सुधारना नहीं है. अब सवाल यह है कि क्या हाफिज़ सईद इतना महत्वपूर्ण है, जिसकी वजह से परमाणु हथियारों से लैस दो देश संवादहीनता की स्थिति में आ जाएं. पाकिस्तान की मज़बूरियां जगज़ाहिर हैं. सरकार का दायरा सिमट चुका है. पाकिस्तान का ज़्यादातर इलाक़ा, वहां चल रहे आतंकी संगठन सरकार की पहुंच से बाहर हैं. इसके बावजूद अगर भारत अपनी जगह पर अड़ा रहता है तो इसका क्या मतलब है?
भारत के विदेश मंत्री एस एम कृष्णा जब पाकिस्तान के लिए रवाना हुए तो उनके सामने एक लक्ष्य था, भारत-पाकिस्तान के बीच परस्पर विश्वास को ब़ढाना, दोनों देशों के प्रधानमंत्रियों की बातचीत को आधार बनाकर रिश्तों में आए तनाव को कम करना. विदेश मंत्री के साथ विदेश मंत्रालय के कई वरिष्ठ अधिकारी भी थे. पाकिस्तान जाने से पहले विदेश मंत्री एस एम कृष्णा, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, गृहमंत्री पी चिदंबरम और रक्षा मंत्री ए के एंटनी के बीच बातचीत हुई. इस बैठक में यह तय हुआ कि अलग-अलग मुद्दों पर भारत का स्टैंड क्या होगा. इस बैठक का ज़्यादा फायदा नहीं हुआ, क्योंकि बातचीत असफल हो गई. दोनों देश अपना-अपना राग अलापते रहे और हालत यह हो गई कि प्रेस कांफ्रेंस में दोनों देशों के महान विदेश मंत्री दुनिया के सामने आपस में ही लड़ते नज़र आए.
भारत-पाकिस्तान के विदेश मंत्रियों की वार्ता का स़िर्फ एक ही नतीजा निकाला जा सकता है कि दोनों देशों की सरकारों ने यह फैसला कर लिया है कि रिश्ते सुधरें या न सुधरें, हम स़िर्फ बातचीत करने के लिए बातचीत करते रहेंगे. कभी इस्लामाबाद में तो कभी नई दिल्ली में. दोनों देशों के राजनयिकों के बीच सात घंटे तक बातचीत हुई. जब वे बाहर निकले तो अपने-अपने देशों के मीडिया को गोपनीय जानकारियां देने में जुट गए. देश की जनता के सामने इस बातचीत की पूरी सच्चाई सामने आ गई. दोनों देशों के राजनयिक वार्ता के असफल होने की ज़िम्मेदारी एक दूसरे पर मढ़ने लगे. क़ैदियों, खासकर मछुआरों का मामला हो या फिर पीपुल-टू-पीपुल कांटैक्ट, वीजा, कश्मीर के दोनों हिस्सों के बीच व्यापार, बस और रेल सेवाएं आदि मुद्दों को इस बातचीत के दौरान भुला दिया गया. जो जनता से जुड़े मुद्दे थे, उन विषयों पर दोनों पक्षों के राजनयिकों ने चुप्पी साध ली. बातचीत के बाद दोनों विदेश मंत्रियों ने मिलकर प्रेस कांफ्रेंस की. उसे देखकर यह लगा कि ये कोई राजनयिक नहीं, बल्कि भारत-पाकिस्तान के क्रिकेट खिलाड़ी हैं, जो मैच के आ़िखरी ओवरों में उत्तेजित और व्याकुल नज़र आते हैं.
वार्ता के दौरान पाकिस्तान ने आतंकवाद के खिला़फ संयुक्त मोर्चे पर फिर से बातचीत शुरू करने की पेशकश की, जिसे मुंबई हमले के बाद बंद कर दिया गया था. भारत का मानना है कि वह सब कुछ करने को तैयार है, लेकिन पहले पाकिस्तान की सरकार को हाफिज़ सईद के खिला़फ कार्रवाई करनी होगी.
भारत का मानना है कि मुंबई हमले के मास्टरमाइंड और लश्कर-ए-तैय्यबा के संस्थापक हाफिज़ सईद को सज़ा दिए बग़ैर रिश्ते नहीं सुधर सकते. भारत कई बार कह चुका है कि हाफिज़ सईद पाकिस्तान में बैठकर भारत के खिला़फ ज़हर उगलता है, लेकिन सरकार उसके खिला़फ कोई कार्रवाई नहीं करती. इस वार्ता के दौरान भी हाफिज़ सईद का मुद्दा उठा, लेकिन पाकिस्तान का जो जवाब आया, वह चौंकाने वाला था. पाकिस्तान के विदेश मंत्री ने भारत के गृह सचिव जी के पिल्लई की तुलना हाफिज़ सईद से कर दी. उन्होंने कहा कि जिस तरह हाफिज़ सईद बयान देते हैं, वैसा ही बयान जी के पिल्लई ने भी दिया कि भारत में आतंकवादी हमलों में पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई का हाथ है. हैरानी की बात यह है कि यह सब दुनिया भर के मीडिया के सामने हुआ. इस प्रेस कांफ्रेंस को टीवी पर लाइव दिखाया जा रहा था. दोनों राजनयिकों ने इसकी भी परवाह नहीं की और दुनिया के सामने आपस में सवाल-जवाब करने लग गए. दोनों के हाव-भाव बदल गए. एक ही झटके में भारत-पाकिस्तान के बीच अमन की आशा का गला घोंट दिया गया.
बातचीत विफल इसलिए भी हुई, क्योंकि पाकिस्तान ने फिर से कश्मीर के मुद्दे को उठाया. पाकिस्तान का मानना है कि कश्मीर में जिस तरह सेना कार्रवाई कर रही है और जिस तरह मानवाधिकारों का उल्लंघन हो रहा है, उससे वह चिंतित है. जबकि भारत का कहना है कि यह भारत का आंतरिक मामला है, इस पर पाकिस्तान को चिंता करने की ज़रूरत नहीं है. भारत-पाकिस्तान वार्ता का तीसरा विवादित मुद्दा मुंबई में हुआ आतंकवादी हमला रहा. भारत हमले में शामिल रहे पाकिस्तानी आरोपियों के खिला़फ कार्रवाई के लिए समय निर्धारित करना चाहता है, लेकिन पाकिस्तान का कहना है कि उनकी न्यायिक प्रक्रिया स्वतंत्र है, इसलिए कोई समय तय नहीं किया जा सकता है. पाकिस्तान की अदालत अपने हिसाब से अपने नियम-क़ानून के तहत यह काम करेगी. चौथा विवादित मुद्दा बलूचिस्तान के रूप में उभरा. पाकिस्तान इस बात को साबित करने की चेष्टा कर रहा है कि बलूचिस्तान में भारत आंदोलनकारियों को सहायता कर रहा है. इस पर भारत के विदेश मंत्री ने दो टूक कहा कि पाकिस्तान अब तक कोई सबूत पेश नहीं कर सका है. बातचीत विफल होने की पांचवी और आखिरी वजह यह थी कि दोनों देशों ने एक दूसरे पर अ़िडयल और ज़िद्दी होने का आरोप लगाया.
पाकिस्तान का मानना है कि उससे जुड़े मामलों पर भारत ज़रा भी नरमी बरतने को तैयार नहीं है. जबकि भारत का मानना है कि पाकिस्तान आपसी मसलों को सुलझाने का इच्छुक ही नहीं है, क्योंकि वह हर बार अपने गोलपोस्ट का ही स्थान बदल देता है. इतना सब कुछ होने के बावजूद एक अच्छी बात यह हुई कि दोनों देशों ने बातचीत को जारी रखने का फैसला किया है. लेकिन सवाल तो यह है कि दोनों देशों के बीच इस बार जिस तरह से बातचीत हुई है, उस तरह की वार्ताओं से कोई हल नहीं निकलने वाला है. पाकिस्तान में फिलहाल प्रजातंत्र है, जनता की चुनी हुई सरकार है, लेकिन ऐसा लग रहा है कि वहां फिर से सेना दस्तक दे रही है. भारतवासियों की तरह ही आम पाकिस्तानी भी अमन और शांति चाहता है, लेकिन सरकार की अपनी मजबूरी है.
पाकिस्तान की सरकार एक कमज़ोर सरकार है. सेना और आईएसआई उसकी पकड़ से बाहर हैं. यह ऐसी ख़तरनाक स्थिति है, जिससे निपटने में ही सरकार उलझ गई है. सरकार को इस बात का डर है कि आतंकियों के ख़िला़फ कोई क़दम उठाए जाने से पाकिस्तान के अंदर गृहयुद्ध जैसा माहौल बन सकता है. अगर भारत पाकिस्तान के साथ रिश्ते बेहतर करना चाहता है तो पाकिस्तान की हक़ीक़त को नजरअंदाज़ करके शांति स्थापना की उम्मीद कैसे की जा सकती है. इसी तरह भारत भी आतंकियों के निशाने पर है. इन आतंकी संगठनों का संचालन पाकिस्तान से हो रहा है. भारत की जनता आतंक से निजात चाहती है. पाकिस्तान को भी यह समझना पड़ेगा कि जब तक हिंदुस्तान में बम धमाके होते रहेंगे, तब तक रिश्ते नहीं सुधर सकते. जब तक कश्मीर के आतंकी संगठनों को पाकिस्तान मदद करता रहेगा, तब तक किसी बातचीत से कोई भी हल नहीं निकल सकता है. बातचीत का मुद्दा दोनों के बीच विश्वास बढ़ाने का होना चाहिए. अगर दोनों ही देश एक दूसरे की दिक्कतों, मजबूरियों और परेशानियों को नज़रअंदाज़ करेंगे तो हर बातचीत का नतीजा वही निकलेगा, जो इस बार निकला है.
आज़ादी के बाद से ही भारत और पाकिस्तान की जनता दोनों सरकारों को सुन रही है. दिल्ली से कहा जाता है कि पाकिस्तान आतंकियों को भारत विरोधी गतिविधियों में मदद कर रहा है. उधर इस्लामाबाद से यह कहा जाता है कि भारत में लोग आज़ादी की लड़ाई लड़ रहे हैं. दोनों देशों में इस तरह के लोग हैं, जो शांति नहीं चाहते, क्योंकि इसमें उनका नुकसान है. हालांकि ऐसे लोग बहुत कम हैं. दोनों देशों के बीच रिश्ता कैसा हो, यह मामला दोनों देशों की सरकारों के पास है. दोनों देशों की जनता अमन चाहती है, दोस्ती चाहती है, लेकिन सरकार तो सरकार होती है, जनता की पसंद और नापसंद से भला उसे क्या मतलब. पाकिस्तान के विदेश मंत्री कुरैशी ने कहा कि हम लोग राजनीतिज्ञ हैं और राजनीतिज्ञ बातचीत में विश्वास रखते हैं. चारों ओर निराशा के माहौल के बीच भी आशा की किरण ढूंढ़ लेते हैं. कुरैशी साहब ने यह तो सही ही कहा. दोनों देशों की जनता भी यह समझ रही है कि आप लोग राजनीतिज्ञ हैं और राजनीतिज्ञ स़िर्फ बातचीत में ही विश्वास रखते हैं.