देश के सरकारी तंत्र में फैला भ्रष्टाचार अपने अंतर्विरोध की वजह से एक्सपोज हो रहा है. आज उद्योगपति के ख़िला़फ उद्योगपति, नेता के ख़िला़फ नेता, अधिकारी के ख़िला़फ अधिकारी, मीडिया के ख़िला़फ मीडिया, कोर्ट के ख़िला़फ कोर्ट, सब लड़ रहे हैं. जो अब तक देश को लूट रहे थे, अब आपस में लड़ रहे हैं. सवाल यह है कि देश चलाने वालों को जब भ्रष्टाचार के इस राक्षस के बारे में सब कुछ पता था तो वे अब तक चुप क्यों थे. सरकार को यह जवाब देना चाहिए कि भ्रष्टाचार की वजह से देश में जो ग़रीबी, अशिक्षा, बेरोज़गारी और पिछड़ापन है, उसे ख़त्म करने की कार्रवाई क्यों नहीं हुई. या फिर यह मान लिया जाए कि सरकारी कुर्सी पर बैठे सभी लोगों ने देश को स़िर्फ लूटने का काम किया है. हमारा सरकारी तंत्र भ्रष्टाचार की वजह से सड़ चुका है.
आम बड़ा स्वादिष्ट फल है. यह जब कच्चा होता है तो हम इसे नमक के साथ बड़े चाव से खाते हैं और जब पक जाता है तो यह मीठा हो जाता है, तो और भी खाने लायक हो जाता है. कहने का मतलब यह है कि आम प्राकृतिक तरीक़े से बढ़ता है. अब यह हम पर निर्भर करता है कि हम इसे कच्चा खाएं, अचार बनाएं या फिर पकने का इंतज़ार करें. आम हर हाल में स्वादिष्ट होता है. अगर इसी आम को हम छोड़ दें तो यह सड़ने लग जाएगा. इसका स्वाद ख़त्म हो जाएगा. बीमारी फैलाने वाला फल बन जाएगा. कोई भी तंत्र इसी थ्योरी पर चलता है. किसी तंत्र के सड़ने का मतलब है आंतरिक विरोधाभास पैदा होना. देश में फैले भ्रष्टाचार के साम्राज्य में अंतर्विरोध पैदा होने लगा है. अब यह पूरा तंत्र सड़ने लगा है, इसलिए यह टूटने और बिखरने लगा है. जो लोग पहले मिल-जुलकर देश को लूट रहे थे, आज आपस में लड़ रहे हैं. यही वजह है कि एक अदालत दूसरी अदालत को भ्रष्ट बता रही है, एक राजनीतिक दल दूसरे को घोटालेबाज़ बता रहा है, उद्योगपति एक-दूसरे को जालसाज बता रहे हैं, एक अधिकारी दूसरे अधिकारी के बारे में ख़ुलासा कर रहा है. मीडिया भी इस सड़न से बदबूदार हो रहा है. राजनीतिक दल, सरकारें, अदालतें, ब्यूरोक्रेसी, मीडिया, उद्योगजगत या फिर फिल्मी सितारे सब सड़ चुके हैं. आम का रसास्वादन करने वाले, सरकारी तंत्र से नाजायज फायदा उठाने वाले अब एक-दूसरे पर वार कर रहे हैं. हर तरफ चाकू निकल रहे हैं. यही वजह है कि पिछले पांच महीने में एक के बाद एक घोटाले सामने आ रहे हैं.
हमारा सरकारी तंत्र कैसे चल रहा है, दिल्ली के सत्ता केंद्र में राजकाज कैसे चलता है, यह किसी कैबिनेट सचिव से बेहतर कौन बता सकता है. कैबिनेट सचिव को सरकार की हर गतिविधियों और सरकार के हर फैसले की जानकारी होती है. केंद्र सरकार के ऐसे ही एक कैबिनेट सचिव टी एस आर सुब्रमण्यम रहे हैं. उनका कहना है कि 1970 से ही हमारे सरकारी तंत्र पर उद्योगपतियों का क़ब्ज़ा हो गया था. पूर्व कैबिनेट सचिव कहते हैं कि उन्होंने उद्योग मंत्रालय, वाणिज्य मंत्रालय, पेट्रोलियम मंत्रालय, स्टील मंत्रालय और दूरसंचार मंत्रालय को काफी नज़दीक से देखा है. इन मंत्रालयों में पैसे का बड़ा खेल होता है, इसलिए उद्योगपति मधुमक्खी की तरह पैसे कमाने वाले मंत्रालयों में घूमते नज़र आते हैं. सुब्रमण्यम कहते हैं कि जो लोग राज सत्ता से जुड़े हैं, उनके लिए यह बात छुपी नहीं है कि उद्योगपतियों की कमाई न कारखानों, न रिसर्च लेबोरेटरी और न ही बाज़ार से होती है. उद्योगपति दिल्ली के मंत्रालय में अपना पैसा बनाते हैं और यह कोई आज की बात नहीं है, पिछले पांच साल की बात नहीं है, बल्कि यह पिछले तीस से ज़्यादा सालों से चल रहा है. सुब्रमण्यम आगे कहते हैं कि जब भी घोटाला होता है तो राजनेता और नौकरशाह का नाम उजागर होता है, लेकिन ताली बजाने के लिए दूसरे हाथ की ज़रूरत होती है. यह दूसरा हाथ हमेशा बड़े-बड़े उद्योगपतियों का होता है. यह हमेशा अदृश्य रहता है. सुब्रमण्यम कहते हैं कि ज़्यादातर सांसदों का रिश्ता देश के बड़े-बड़े उद्योगपतियों से है, जो उनके फायदे के लिए नियम-कानून में फेरबदल करते हैं या फिर उनके लिए लॉबिंग करते हैं. यह कौन नहीं जानता है कि मंत्रालयों में सचिवों की नियुक्ति उद्योगपतियों द्वारा तय की जाती है. यह बात हर इनसाइडर को पता होती है कि जब भी कोई नया पेट्रोलियम सेक्रेटरी आता है तो उसे कौन बनवाता है. किसके कहने पर टेक्सटाइल सेक्रेटरी बनाया जाता है. सब लोग मिल-जुलकर पूरे देश को लूट रहे हैं.
2-जी स्पेक्ट्रम घोटाला एक संकेत मात्र है. इस घोटाले ने पहली बार सरकार एवं उद्योगपतियों के गठजोड़ के बीच के अंतर्विरोध को लोगों के सामने रखा है. देश को 1 लाख 76 हज़ार करोड़ रुपये का घाटा तो हुआ, लेकिन इस घोटाले से देश को यह फायदा हुआ है कि हमारा सरकारी तंत्र कितना सड़ चुका है, यह सामने आ गया. दो उद्योगपति आपस में भिड़ गए. एक टाटा ग्रुप के रतन टाटा और दूसरे राजीव चंद्रशेखर जो एक उद्योगपति हैं, साथ ही राज्यसभा के सदस्य भी हैं. दोनों की लड़ाई से यह बात सामने आई कि किस तरह उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने के लिए सरकार की नीतियां बनती और बिगड़ती हैं. चंद्रशेखर ने यह आरोप लगाया कि ए राजा के घोटाले से रतन टाटा को फायदा हुआ तो रतन टाटा ने कहा कि एनडीए शासन के दौरान सबसे ज़्यादा गड़बड़ियां हुईं. दोनों ने एक-दूसरे पर सरकारी नीतियों को बदलने या उससे फायदा उठाने का आरोप लगाया. देश की जनता के सामने सच्चाई आ गई कि न तो रतन टाटा संत हैं और न ही चंद्रशेखर. हर उद्योगपति जिसे जहां मौक़ा मिलता है, नेता और अधिकारियों के साथ मिलकर नियमों में फेरबदल करता है और मुना़फा कमाता है. चौथी दुनिया में हमने चार महीने पहले ही यह छापा था कि रतन टाटा, अंबानी, ए राजा, नीरा राडिया और देश के बड़े-बड़े पत्रकारों के बीच क्या रिश्ता है. मंत्रालयों में चल रहे भ्रष्टाचार का मायाजाल अपने विरोधाभास में जब फंस जाता है तो बात सामने आ जाती है. भ्रष्टाचार का यह ऐसा स्वरूप है, जिसमें उद्योगपति मुना़फा कमाने के लिए ग्राहकों के पास नहीं, बल्कि मंत्रालय में बैठे मंत्रियों और अधिकारियों के पास जाते हैं. नियम व क़ानून को बदलते हैं और बैठे-बैठाए करोड़ों कमा लेते हैं. यह एक ऐसी लूट है, जहां घर में डाका भी पड़ जाता है और घरवाले को पता भी नहीं चलता. भ्रष्टाचार का यह सुनियोजित तंत्र कई सालों से हमारे देश को खोखला कर रहा है. 2-जी घोटाला या अन्य घोटालों के सामने आने से जनता को इस सवाल का जवाब मिल गया है कि क्यों सरकारी नीतियों का फायदा स़िर्फ गिने-चुने एक फीसदी लोगों को ही होता है और बाकी के 99 फीसदी लोग इन नीतियों की परिधि से बाहर रहते हैं.
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा- यह समय प्रतिक्रिया जाहिर करने का नहीं है, बल्कि अपने अंदर झांकने का भी है.
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा- आम लोगों के बारे में यह सब मत बताइए. वे बहुत समझदार हैं. भारत के लोगों को बेवकू़फ मत समझिए.
- जस्टिस काटजू ने कहा- आप यह सब मत बताइए. मैं और मेरा परिवार पिछले कई सालों से इलाहाबाद हाईकोर्ट से जुड़ा हुआ है. लोग जानते हैं कि कौन भ्रष्ट है.
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले महीने यह कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट में गंदगी आ गई है, कुछ सड़ चुका है. यह टिप्पणी बीते 26 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के बहराइच ज़िले में व़क्फ की एक ज़मीन के मामले में सुनवाई के दौरान की. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इलाहाबाद हाईकोर्ट में कुछ गड़बड़ है और वहां अंकल जज की समस्या और गंभीर हुई है, जिसे रोका जाना ज़रूरी है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, कुछ जजों के परिवार के सदस्य और नजदीकी रिश्तेदार वहीं पर वकालत कर रहे हैं और वकालत शुरू करने के कुछ ही सालों में जजों के बेटे और रिश्तेदार वकील करोड़पति बन जाते हैं. उनके पास बड़ा बैंक बैलेंस, लग्जरी कार, बंगला आ जाता है. वे विलासितापूर्ण जीवन जीने लगते हैं. हमें खेद के साथ कहना पड़ रहा है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के कुछ जजों की निष्ठा पर सवाल खड़े हो रहे हैं और हमें उसकी शिकायतें मिल रही हैं.
सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी पर इलाहाबाद हाईकोर्ट में दो तरह की प्रतिक्रियाएं सामने आईं. बार एसोसिएशन ने इसका स्वागत किया और सुप्रीम कोर्ट से इसे रोकने के लिए आगे आने को कहा. वहीं हाईकोर्ट के जजों ने इस मसले पर रजिस्ट्रार के जरिए उस टिप्पणी को हटाने की सुप्रीम कोर्ट से अपील की. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की प्रतिक्रिया और भी तीखी नज़र आई. सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की पैरवी कर रहे वकील से कहा कि यह समय प्रतिक्रिया जाहिर करने का नहीं है, बल्कि अपने अंदर झांकने का भी है. जस्टिस काटजू ने कहा, आप यह सब मत बताइए. मैं और मेरा परिवार पिछले कई सालों से इलाहाबाद हाईकोर्ट से जुड़ा हुआ है. लोग जानते हैं कि कौन भ्रष्ट है और कौन ईमानदार, इसलिए आप यह सब मत बताइए. जस्टिस काटजू इतने पर ही नहीं रुके. उन्होंने कहा, कल अगर मार्कंडेय काटजू घूस लेना शुरू कर दें तो सारा देश यह जान जाएगा, इसलिए आप मुझे मत बताइए कि कौन ईमानदार है और कौन भ्रष्ट. सुप्रीम कोर्ट ने जो सबसे महत्वपूर्ण बयान दिया, वह यह था, आम लोगों के बारे में यह सब मत बताइए. वे बहुत समझदार हैं. भारत के लोगों को बेवकू़फ मत समझिए. यहां भी व्यवस्था में फैले अंतर्विरोध सामने आने लगे हैं. आम सड़ने लगा है. यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट एक हाईकोर्ट के ख़िला़फ ऐसी टिप्पणी कर रहा है. अगर यह नहीं रुका तो सुप्रीम कोर्ट के जज भी एक-दूसरे के ख़िलाफ बोलने लगेंगे. नोट करने वाली बात यही है कि सुप्रीम कोर्ट ने एक तरह से यह साफ-साफ कह दिया कि जो लोग सरकारी कुर्सी पर बैठकर भ्रष्टाचार फैलाते हैं, वे देश की जनता को मूर्ख समझते हैं.
हाल के घोटालों से यह भी साबित हुआ है कि भारतीय संसद भ्रष्टाचारियों और घोटालेबाजों की पनाहगार बन चुकी है. हर घोटाले में मंत्री और सांसद का नाम आ जाता है. पहले आदर्श घोटाला, फिर 2-जी स्पेक्ट्रम मामले में भारतीय जनता पार्टी ने जेपीसी की मांग की, लेकिन ख़ुद ही विरोधाभास में फंस गई, जब कर्नाटक के मुख्यमंत्री येदुरप्पा का नाम ज़मीन घोटाले में सामने आया. 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाले पर सरकार की स्थिति नाजुक होने लगी तो 2001 से जांच का ऐलान कर दिया गया. भाजपा बैकफुट पर आ गई. संसद में जो हो रहा है, राजनीतिक दलों के नुमाइंदे जो कुछ कर रहे हैं, वह राजनीति है. देश की जनता तो यह चाहती है कि आज़ादी के बाद जितने भी घोटाले हुए हैं, उन सबकी जांच हो. सभी गुनहगारों को जेल भेजा जाए. लेकिन राजनीति और भ्रष्टाचार के इस अनोखे गठजोड़ में जनता की चाहत की किसे परवाह है. अच्छी बात यह है कि सभी राजनीतिक दल एक-दूसरे को घोटालेबाज साबित करने में लगे हैं. यह संस्थागत भ्रष्टाचार में उभरे अंतर्विरोध का नतीजा है. सब बेनकाब हो रहे हैं.
मनमोहन सिंह की नीतियों ने उदारीकरण का मंत्र दिया था. सरकार के कामकाज को कम करने के साथ-साथ निजी कंपनियों को सामाजिक विकास का दायित्व दिया था. इसे हम पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप कहते हैं. हाल के दिनों में हुए घोटाले चाहे वह आईपीएल हो, कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाला हो या फिर 2-जी स्पेक्ट्रम, सरकारी अधिकारियों के साथ मिल कर निजी कंपनियों ने इन्हें अंजाम दिया. उदारीकरण के वे समर्थक कहां हैं, जो यह कहते थे कि सरकार के कामों में निजी कंपनियों के आने से देश से भ्रष्टाचार कम हो जाएगा. उदारीकरण के सारे मसीहा इन घोटालों पर चुप हैं. अब देश की जनता के सामने एक ही सवाल है कि भरोसा करने लायक कौन बचा है. ऐसे माहौल में सरकार के सभी अंगों का पहला दायित्व यह है कि वे सबसे पहले जनता का भरोसा जीतें. हर राजनीतिक दल को यह याद रखना चाहिए कि भ्रष्टाचार के ख़िला़फ देश के लोगों में गुस्सा है. यह गुस्सा अगर सड़क पर प्रदर्शित होने लगा तो यह देश किसी के संभाले नहीं संभलेगा. देश की जनता ने बोफोर्स घोटाले की वजह से कांग्रेस की सरकार को सज़ा दी थी. आज जिस स्तर पर घोटाले हो रहे हैं, उसके सामने बोफोर्स घोटाला बहुत ही छोटा है.
जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह वक्त आत्ममंथन करने का है. हाल में तीन बड़े घोटाले हुए हैं-कॉमनवेल्थ गेम्स, आदर्श सोसाइटी और 2-जी स्पेक्ट्रम. देश की सरकार, संसद, सुप्रीम कोर्ट के सामने चुनौती है. इन तीनों घोटालों में जो भी अधिकारी, नेता, उद्योगपति या मंत्री शामिल हैं, उनके ख़िला़फ कार्रवाई हो. हमारे देश में ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जो दूध का दूध पानी का पानी कर सकें. ऐसे ईमानदार लोगों को सारी फाइलें, सारे अधिकार दिए जाएं. इन मामलों पर सुप्रीम कोर्ट दिन-रात सुनवाई करे, ताकि तीन महीने के भीतर देश की जनता को यह पता चल सके कि इन घोटालों के पीछे कौन-कौन लोग थे. गुनहगारों को कड़ी से कड़ी सज़ा दी जाए, उन्हें जेल भेजा जाए, तभी यह सरकारी तंत्र देश की जनता का भरोसा हासिल कर पाएगा और भ्रष्टाचार के ख़िला़फ लड़ाई शुरू हो सकेगी.