भ्रष्टाचार के मामले में मंत्री जेल जा सकता है, नेता गिरफ्तार हो सकते हैं, कभी-कभी तो अधिकारियों को भी कुर्सी छोड़नी पड़ती है. 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाले में कुछ कंपनियों के मालिकों पर केस चला, लेकिन जो बड़े खिलाड़ी हैं, उनके कर्मचारियों को जेल भेजा गया. अंबानी हों या फिर टाटा, इन बड़े-बड़े उद्योगपतियों में ऐसी क्या खास बात है कि सीबीआई इनके खिला़फ मुक़दमा दर्ज करने की हिम्मत नहीं कर सकी?
आज के ज़माने में अमर सिंह जैसा दोस्त मिलना मुश्किल है. जिनके पास अमर सिंह जैसे दोस्त हों, उनका बाल भी बांका नहीं हो सकता है. कहां मिलते हैं ऐसे लोग, जो दोस्त के लिए पूरी दुनिया से लड़ जाएं. अमर सिंह ने यही किया, सीना ठोंक कर किया. यह स़िर्फ अमर सिंह ही कर सकते हैं. जन लोकपाल बिल के नाम पर पूरा देश अन्ना हजारे का साथ दे रहा था. सरकार डरी हुई थी. राजनीतिक दल खामोश थे. नेता मीडिया से दूर भाग रहे थे. ऐसे में धारा के विरुद्ध अमर सिंह की ज़बरदस्त इंट्री होती है. उन्होंने एक ही झटके में पूरे आंदोलन की हवा निकाल दी. अमर सिंह के आरोपों से किसी का भी मतभेद हो सकता है, लेकिन उनकी हिम्मत की दाद तो देनी ही पड़ेगी. अमर सिंह ने दोस्ती निभाई है. अमर सिंह का मक़सद प्रशांत भूषण और शांति भूषण को लोकपाल बिल तैयार करने वाली कमेटी से बाहर करना नहीं था. उनका एजेंडा यह था कि वह अदालत पर ऐसा दबाव डालें, ताकि 2-जी घोटाले में उनके दोस्त अनिल अंबानी पर कोई कार्रवाई नहीं हो, उनकी गिरफ्तारी नहीं हो. अमर सिंह की वजह से अनिल अंबानी का नाम सीबीआई की चार्जशीट में नहीं है. अमर सिंह का अपने दोस्त अनिल अंबानी पर यह ऐसा एहसान है, जिसे वह कभी भी चुका नहीं सकते.
मज़ेदार बात यह है कि जब उन्होंने शांति भूषण और प्रशांत भूषण पर हमला किया तो लोगों को लगा कि वह कांग्रेस में शामिल होने के लिए कोई चाल चल रहे हैं. किसी को अमर सिंह की चाल की असलियत की भनक तक नहीं लगी. उनकी निगाहें कहीं और थीं और निशाना कहीं और था. अमर सिंह ने एक आडियो सीडी का हवाला दिया और जन लोकपाल बिल बनाने वाले दो क़ानूनविदों को बेनक़ाब करने की कोशिश की. अमर सिंह का प्रशांत भूषण पर मुख्य आरोप यह था कि शांति भूषण इस टेप में यह कहते हुए पाए गए कि उनके रिश्ते जस्टिस जी एस सिंघवी से अच्छे हैं, अच्छा मैनेज करते हैं. ऐसे लोग भ्रष्टाचार से कैसे लड़ेंगे? इन्हें लोकपाल बिल बनाने वाली कमेटी से बाहर रखना चाहिए. अमर सिंह के बयानों से ऐसा लगा कि वह भ्रष्टाचार के खिला़फ आंदोलन करने वाले नेताओं को आईना दिखा रहे हैं. अमर सिंह की चाल को मीडिया भी नहीं समझ सकी. सीडी असली है या नकली, बात यहीं पर आकर टिक गई. प्रशांत भूषण दुनिया को समझाने में लग गए कि किस तरह यह सीडी नकली है. उनके वाक्यों को अलग-अलग करके जोड़ा गया है. कांग्रेस पार्टी की भी समझ में नहीं आया कि अमर सिंह क्या करना चाहते हैं. अमर सिंह के बयानों से यह धारणा बन गई कि वह कांग्रेस पार्टी में शामिल होना चाहते हैं. इसलिए वह कांग्रेस के बचाव में अन्ना हजारे और लोकपाल बिल के लिए आंदोलन कर रहे उनके सहयोगियों पर आरोप लगा रहे हैं. यदि अमर सिंह इतने ही साधारण व्यक्ति होते तो शायद इस बुलंदी पर नहीं पहुंच पाते.
नोट करने वाली बात यह थी कि अमर सिंह अपनी प्रेस कांफ्रेंस में लगातार जस्टिस सिंघवी का नाम ले रहे थे. वह जस्टिस सिंघवी का नाम क्यों लगातार ले रहे थे? अमर सिंह और जस्टिस सिंघवी का रिश्ता क्या है? समझने वाली बात यह है कि जस्टिस सिंघवी सुप्रीम कोर्ट में चल रहे 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाला मामले के जज हैं. इस मामले में देश की बड़ी-बड़ी टेलीकाम कंपनियां फंसी हुई हैं, कई लोगों की गिरफ्तारियां हो चुकी हैं, मंत्री ए राजा का इस्ती़फा हो चुका है. इस मामले से अनिल अंबानी का नाम भी जुड़ा हुआ है. मामला जस्टिस सिंघवी की अदालत में था, इसलिए अमर सिंह ने यह आडियो टेप जारी करके उन पर दबाव बनाने की कोशिश की. वह एक तीर से दो निशाने लगा रहे थे. इसके अलावा जस्टिस सिंघवी से उनका पुराना हिसाब-किताब भी था.
नौ फरवरी को सुप्रीम कोर्ट में एक घटना घटी. वहां अमर सिंह की जमकर खिंचाई हुई. अमर सिंह 2006 के फोन टैपिंग मामले में सोनिया गांधी पर लगाए गए आरोप वापस लेना चाहते थे. सोनिया गांधी पर आरोप लगाते हुए अमर सिंह ने कोर्ट में कहा था कि सत्ताधारी दल अपनी शक्ति का दुरुपयोग कर रहा है, लेकिन अब वह इस आरोप को वापस ले रहे हैं. कोर्ट में उनके वकील कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी थे. इनके सामने दो जज थे, जस्टिस जी एस सिंघवी और जस्टिस ए के गांगुली. अमर सिंह के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने यह दलील दी कि उन्होंने अपनी निजी जानकारी और समझ पर यह आरोप लगाए थे, पर अब पता चल रहा है कि सब कुछ फर्ज़ी है. इस पर जस्टिस सिंघवी ने कहा कि जब आप व्यक्तिगत जानकारी कहते हैं तो इसका मतलब ऐसी जानकारी से होता है, जो आपको व्यक्तिगत तौर पर मालूम हो और यह समय के साथ बदल नहीं सकती. न्यायालय ने कहा कि अगर वह आपकी व्यक्तिगत जानकारी थी तो उसे आप खुद झुठला नहीं सकते. अदालत ने यहां तक कह दिया कि आपकी व्यक्तिगत जानकारी संदेहास्पद है और आपके हल़फनामे ने अदालत का समय बर्बाद किया है. जस्टिस सिंघवी ने कहा कि अदालत ने आपके मामले की सुनवाई शुरू की. कई साल बीत चुके हैं और आपके कथनों के आधार पर आपके मामले के लिए कई घंटे समर्पित किए गए. हम केवल उन्हीं पर भरोसा करते हैं. जजों ने अभिषेक मनु सिंघवी को कई बार याचिका का वह हिस्सा पढ़ने को कहा, जिसमें अमर सिंह ने कांग्रेस पार्टी और उसकी अध्यक्ष के खिला़फ आरोप लगाए थे. इस दौरान अभिषेक मनु सिंघवी कुछ परेशान से दिखे. अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि अदालत को ऐसे व्यक्ति से जुड़ी याचिका पर सुनवाई क्यों करनी चाहिए, जो साफ इरादे से नहीं आया है. जस्टिस सिंघवी की अदालत में जिस तरह अमर सिंह को जलील किया गया, शायद वह उसे भूल नहीं पाए. अमर सिंह के सामने जब अवसर आया तो उन्होंने हिसाब बराबर करने और अपने प्रिय दोस्त अनिल अंबानी को बचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी.
जब अमर सिंह ने प्रेस कांफ्रेंस की, तब सीबीआई 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाला मामले की दूसरी चार्जशीट तैयार कर रही थी. ऐसी उम्मीद लगाई जा रही थी कि सीबीआई की दूसरी चार्जशीट में कई बड़े-बड़े नामों का खुलासा होगा. अनिल अंबानी, कनिमोझी और टाटा पर भी गाज गिर सकती है. इन लोगों को भी ए राजा की तरह जेल की हवा खानी पड़ सकती है. सीबीआई ने दो अप्रैल को दाखिल 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाला मामले की पहली चार्जशीट में आरोप लगाया था कि पूर्व दूरसंचार मंत्री ए राजा, पूर्व दूरसंचार सचिव सिद्धार्थ बेहुरा, राजा के निजी सचिव आर के चंदोलिया, शाहिद उस्मान बलवा और संजय चंद्रा आदि की साठगांठ के चलते स्वान टेलीकॉम और यूनीटेक ग्रुप को फायदा पहुंचाने के लिए स्पेक्ट्रम आवंटन प्रक्रिया में अनियमितताएं बरती गईं. इस चार्जशीट में इनके अलावा डीबी रियालिटी के डायरेक्टर विनोद गोयनका और रिलायंस टेलीकॉम कंपनी के गौतम दोषी, हरि नायर एवं सुरेंद्र पिपरा का भी नाम है. 24 अप्रैल तक सीबीआई को दूसरी चार्जशीट जमा करनी थी. भ्रष्टाचार के खिला़फ देश में जो माहौल बना है और जस्टिस कापड़िया के बर्ताव से यह उम्मीद जगी है कि भ्रष्टाचारी कोई भी हो, अब उसे छोड़ा नहीं जाएगा. चाहे वह कितना बड़ा भी नेता हो या फिर उद्योगपति, सबको सज़ा मिलेगी. यही वजह है कि सबकी नज़र जस्टिस सिंघवी, जस्टिस गांगुली और सीबीआई के डायरेक्टर एपीसी सिंह पर थी.
ऐसा क्यों है कि अनिल अंबानी जेल के बाहर हैं, जबकि 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाले में फंसी छोटी कंपनियों के प्रमुख जेल के अंदर हैं. रतन टाटा के खिला़फ भी कार्रवाई नहीं हुई. रतन टाटा का नाम नीरा राडिया टेप कांड से विवाद में आया था. अब जबकि इस मामले की कलई खुल गई है तो यही समझा जा सकता है कि 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाला एक साजिश के तहत अंजाम दिया गया. टेलीकॉम कंपनियां, नीरा राडिया और उनके सहयोगी ए राजा को ही टेलीकॉम मिनिस्टर क्यों बनाना चाहते थे. मतलब सा़फ है, इन कंपनियों के मालिकों को यह पहले से ही पता था कि सरकार बनने के बाद इस मंत्रालय में क्या होने वाला है. डीएमके के पूर्व टेलीकॉम मिनिस्टर दयानिधि मारन पहले ही इस महा घोटाले की नींव रख चुके थे. टेलीकॉम कंपनियां यह चाह रही थीं कि कोई ऐसा व्यक्ति टेलीकॉम मिनिस्टर हो, जो उनके रास्ते का रोड़ा न बने. ए राजा को टेलीकॉम मिनिस्टर बनाने के पीछे यही राज़ है. अब सवाल यह उठता है कि क्या यूपीए के दूसरे घटक दल इतने मासूम हैं कि उन्हें इस साजिश की भनक तक नहीं लगी?
अनिल अंबानी से जुड़ा विवाद और भी गहरा है. बताया यह जाता है कि दोनों के खिला़फ कार्रवाई इसलिए नहीं हो सकती, क्योंकि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और योजना आयोग के डिप्टी चेयरमैन मोंटेक सिंह अहलुवालिया का रतन टाटा के प्रति सॉफ्ट कार्नर है, वहीं अंबानी परिवार का सीधा रिश्ता सोनिया गांधी और प्रणव मुखर्जी से है. इस बीच खबर यह भी है कि अनिल अंबानी के बड़े भाई मुकेश अंबानी भी अब अपने भाई के बचाव में मैदान में उतर आए हैं. इन सबके बावजूद यह कोई सुनिश्चित नहीं कर सकता कि अनिल अंबानी बच जाएंगे. इसकी वजह यह है कि सुप्रीम कोर्ट और चीफ जस्टिस कापड़िया का भ्रष्टाचार के खिला़फ जो रवैया है, उससे सारा सरकारी महकमा डरा हुआ है. कोर्ट का इस मामले में कैसा रवैया है, उसका एक उदाहरण यह है कि कोर्ट ने केंद्र सरकार की आपत्ति को दरकिनार करते हुए 2-जी स्पेक्ट्रम मामले में वरिष्ठ वकील उदय यू ललित को विशेष सरकारी वकील बनाने का आदेश जारी कर दिया. केंद्र सरकार और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) विशेष सरकारी वकील के रूप में ललित की नियुक्ति को लेकर टेक्निकल ग्राउंड पर सवाल उठाते रह गए, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया. कोर्ट को लगता है कि देश के सबसे बड़े घोटाले की सुनवाई में ललित अहम भूमिका निभा सकते हैं. यह काम भी जस्टिस जी एस सिंघवी और जस्टिस ए के गांगुली की खंडपीठ द्वारा किया गया. 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाले में जो कुछ हो रहा है, कोर्ट के आदेश से हो रहा है. सरकार की साख भी दांव पर है. ऐसे में अनिल अंबानी पर कार्रवाई को रोकने का तरीक़ा बस एक ही बचा था और वह यह कि किसी तरह कोर्ट पर दबाव डाला जाए. अमर सिंह ने यही काम किया. शांति भूषण और प्रशांत भूषण की आड़ में उन्होंने जस्टिस सिंघवी पर दबाव बनाने की कोशिश की. अमर सिंह अपनी योजना में कामयाब हो गए. यह संयोग नहीं हो सकता कि सीबीआई की दूसरी चार्जशीट में न तो अनिल अंबानी का नाम आया और न टाटा का.
इसमें कोई शक़ नहीं है कि 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाले की जांच में सीबीआई और ईडी का रवैया संदेहास्पद है. सीबीआई ने 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाले में बड़ी मछलियों को छोड़ दिया है. सीबीआई के आरोपपत्र में रिलायंस टेलीकॉम के अनिल अंबानी, एस्सार के मुख्य कार्यकारी अधिकारी प्रशांत रुईया और टाटा का नाम शामिल नहीं है, जबकि इस घोटाले से सबसे ज़्यादा फायदा इन्हीं लोगों को हुआ है. शाहिद उस्मान बलवा की स्वान टेलीकॉम और लूप टेलीकॉम वास्तव में रिलायंस कम्युनिकेशंस और एस्सार समूह की मुखौटा (फ्रंट) कंपनियां हैं. आर कॉम 2-जी लाइसेंस पाने की पात्र नहीं थी. उसने स्वान टेलीकॉम का वित्तपोषण किया. अनिल अंबानी की इस कंपनी में 50 प्रतिशत की हिस्सेदारी थी. इस मामले में सीबीआई ने उन्हें नहीं छुआ, जबकि वास्तव में उनको लाभ मिला था. वहीं टाटा को इसलिए फायदा पहुंचाया गया, क्योंकि उन्होंने तमिलनाडु के उस एनजीओ को आर्थिक मदद दी, जिसकी निदेशक द्रमुक सांसद कनिमोझी हैं. कनिमोझी का नाम चार्जशीट में आ गया, लेकिन टाटा का नाम आना बाकी है.
चार्जशीट में अंबानी और टाटा का नाम न होने का मामला अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. कोर्ट को बताया गया है कि इस घोटाले से सबसे बड़ा फायदा अनिल अंबानी को पहुंचा है. जिस कंपनी में उनकी हिस्सेदारी है, वह उस समूह की कंपनियों के चेयरमैन हैं. याचिका में यह भी आरोप लगाया गया है कि सीबीआई ने उन्हें बचाने का प्रयास किया और केवल उनके कर्मचारियों का नाम आरोपपत्र में शामिल किया. मज़ेदार बात है कि यह याचिका एक एनजीओ की तऱफ से डाली गई है और इसके वकील हैं प्रशांत भूषण और इस मामले की सुनवाई करने वाले जज हैं जस्टिस ए के गांगुली और जस्टिस जी एस सिंघवी. इस बीच आईसीआईसीआई बैंक के एक अधिकारी के बयान से सनसनी फैल गई कि एडीएजी के चेयरमैंन अनिल अंबानी और उनकी पत्नी टीना अंबानी ही 10 करोड़ रुपये से ज़्यादा के चैक साइन कर सकते हैं. 2006-2007 में अनिल धीरूभाई अंबानी ग्रुप ने स्वान टेलीकॉम को 107 करोड़ रुपये ट्रांसफर किए थे. इसमें 104 करोड़ रुपये एक ही चैक से ट्रांसफर हुए. सीबीआई के मुताबिक़, आईसीआईसीआई के अफसर अमित खोट ने अपने बयान में बताया है कि इतनी बड़ी रकम स़िर्फ अनिल या फिर टीना अंबानी के हस्ताक्षर से ही ट्रांसफर हो सकती है. इस याचिका पर फैसला होना बाकी है. कोर्ट के फैसले पर ही यह निर्भर करेगा कि अनिल अंबानी और टाटा पर कार्रवाई होगी या नहीं, वे जेल जाएंगे या नहीं. 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाले का खेल अभी खत्म नहीं हुआ है.