राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के खून से सनी घास एवं मिट्टी, उनका चश्मा और चरखा सहित उनसे जुड़ी 29 चीज़ें ब्रिटेन में नीलाम हो गईं और इस देश का दुर्भाग्य देखिए, सरकार ने इस बारे में कुछ नहीं किया. इतना ही नहीं, इसके बारे में न तो सरकार ने किसी को बताया और न देश के मीडिया ने यह जानने की कोशिश की कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की धरोहर खरीदने वाला व्यक्ति कौन है, गांधी जी के हाथ की लिखी एवं हस्ताक्षरयुक्त चिट्ठियां, निजी प्रार्थना पुस्तिका, एक एलपी रिकॉर्ड और फोटोग्राफ को किसने खरीदा, क्यों खरीदा, क्या इसे फिर नीलाम किया जाएगा. लगता है कि देश की राजनीति ऐसे अंधकार की ओर अग्रसर हो गई है कि इन सब बातों के बारे में सोचना भी बेमानी है. नाथूराम गोडसे ने तो स़िर्फ गांधी के शरीर को खत्म किया था, लेकिन सरकार, अधिकारी एवं राजनीतिक दल गांधी की याद और विचारों को मारने का काम कर रहे हैं. वैसे यह देश सरकार और राजनीतिक दलों के सहारे नहीं चलता है. भारत के लोग ही भारत की असल ताक़त हैं. जहां सरकार विफल हो जाती है, वहां देश का कोई न कोई सपूत ज़रूर सामने आता है, जो देश की इज्ज़त और प्रतिष्ठा को बचाता है.
कमल एम मोरारका ऐसी ही शख्सियत हैं, जिन्होंने इस बार भारत की प्रतिष्ठा को नीलाम होने से बचाया है. लंदन में हुई नीलामी से गांधी जी से जुड़ी सारी वस्तुओं को वह भारत ले आए हैं. कमल मोरारका की तारी़फ इसलिए होनी चाहिए, क्योंकि उन्होंने इस बात को गुप्त रखा. नीलामी के बाद कई दिनों तक अ़खबारों और वेबसाइटों पर यह सवाल गूंजता रहा कि वह भारतीय कौन है, जिसने गांधी जी की चीज़ें खरीदी हैं. लेकिन उन्होंने इसे कोई मीडिया इवेंट नहीं बनाया. उन्होंने नीलामी के बारे में अ़खबारों में पढ़ा कि गांधी जी से जुड़ी कई चीज़ें बिक रही हैं. टीवी पर भी बहस हो रही थी और कई लोग यह कह रहे थे कि भारत सरकार को इसमें हस्तक्षेप करना चाहिए. गांधी राष्ट्रपिता होने के साथ-साथ स्वतंत्रता संग्राम के सबसे बड़े नेता थे, इसलिए इसमें हस्तक्षेप करना सरकार की नैतिक ज़िम्मेदारी थी. कमल मोरारका स्वयं एक मंत्री रहे हैं, राजनीति पर पैनी नज़र रखते हैं और देश की दिशा एवं दशा को जानते हैं. उन्हें यह समझते देर नहीं लगी कि वर्तमान सरकार तो कोई सरकार ही नहीं है. यह तो मृतप्राय सरकार है. यह तो मर गई है. यह अपना रोज़मर्रा का काम नहीं कर पा रही है, तो गांधी जी की यादें लाने की कहां इसे फुर्सत है. यह सरकार आर्मी चीफ की नियुक्ति से लेकर हर छोटी चीज़ तक में फंसी हुई नज़र आती है. जब हर मामले का फैसला कोर्ट ही करेगी तो देश में सरकार कहां है. वर्तमान सरकार तो नॉन एक्जिस्टिंग सरकार है.
गांधी जी की चीज़ों को खरीदने का फैसला इमोशनल फैसला था. गांधी जी जैसा व्यक्तित्व दुनिया में कहीं पैदा नहीं हुआ है. यह हमारा सौभाग्य है कि गांधी हमारे फादर ऑफ द नेशन हैं. वह पूरी बीसवीं सदी के सबसे बड़े आदमी थे. वह एक संपूर्ण व्यक्ति थे, एक कंप्लीट मैन, जैसे कृष्ण का विवरण भगवद गीता और राम का विवरण रामायण में आता है. वह ज़िंदगी के हर पहलू से जुड़े हुए थे, हमारे सामने के वैसे व्यक्ति गांधी जी थे.
-कमल मोरारका
फिलहाल भारत राजनीतिक और वैचारिक दृष्टि से पतनकाल के दौर में है, इसलिए गांधी को लेकर आज की सरकार को न तो प्रेम है, न आस्था है और न फुर्सत. कमल मोरारका को लगा कि अगर सरकार इसमें रुचि नहीं लेती है तो कम से कम कोई भारतवासी रुचि लें और ये चीज़ें भारत वापस ले आए. कमल मोरारका को लगा कि गांधी जी की यादें कम से कम आ तो जाएंगी, लेकिन उन्हें यह मालूम नहीं था कि कौन बेच रहा है, नीलामी में कैसे शामिल होना है. मुंबई का एक आक्सन हाउस है ओसियांस, जो लंदन में होने वाली इस नीलामी में हिस्सा लेने जा रहा था. कमल मोरारका ने रुचि दिखाई और दोनों में संपर्क हुआ. कमल मोरारका ने ओसियांस से कहा कि वह उनकी तऱफ से बोली लगाए और किसी भी क़ीमत पर बापू जी से जुड़ी सारी चीज़ें खरीद कर लाए.
इधर देश में इस नीलामी को लेकर हंगामा मचा हुआ था. देश में गांधीवादी कहे जाने वाले लोग भी लाचार नज़र आए. अन्ना हजारे ने भी विरोध किया. टीवी पर बहस हुई. हर किसी ने नीलामी के खिला़फ आवाज़ उठाई. यहां तक कि हिंदी के जाने-माने लेखक गिरिराज किशोर ने पद्मश्री अवॉर्ड वापस करने की धमकी दी, लेकिन सरकार ने इन आवाज़ों को अनसुना कर दिया. कांग्रेस के नेता जनार्दन द्विवेदी ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को चिट्ठी भी लिखी कि महात्मा गांधी से जुड़ी यादों की नीलामी पर सरकार को चुप नहीं बैठना चाहिए. इस पत्र में नीलामी को शर्मनाक भी बताया गया. यही नहीं, कैबिनेट मंत्री ग़ुलाम नबी आज़ाद ने भी पत्र लिखकर इसे दुर्भाग्यपूर्ण बताया था. लगता है कि प्रधानमंत्री कार्यालय में काम करने वाले अधिकारियों ने कांग्रेस के नेताओं की चिट्ठियां पढ़ना बंद कर दिया है और अगर पढ़ने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हुई तो इसका मतलब यही है कि सरकार ने गांधी की यादों को द़फनाने का फैसला कर लिया है. राजनीतिक दलों के प्रवक्ताओं को सुनकर कभी-कभी हंसी आती है. कांग्रेस के प्रवक्ता हैं राशिद अल्वी. पत्रकारों ने जब उनसे पूछा कि नीलामी पर आपकी पार्टी की राय क्या है? देखिए, उनका जवाब क्या था. उन्होंने कहा कि गांधी जी से जुड़ी चीज़ों की नीलामी तो बर्दाश्त की जा सकती है, लेकिन उनके खून से सनी मिट्टी की बिक्री बर्दाश्त नहीं की जा सकती है. लगे हाथ उन्होंने यह भी कहा कि वह इस मामले में ब्रिटेन की सरकार को चिट्ठी लिखेंगे.
चिट्ठी तो नहीं पहुंची और लंदन में नीलामी भी हो गई और कमल मोरारका ने नीलाम होने वाली सभी वस्तुओं को खरीद लिया. ये सामान भारत आने वाला है. यहां सरकार की एक और परीक्षा है. देखना यह है कि क्या सरकार इन सामानों पर टैक्स लेती है और कितना लेती है तथा यह साबित करती है कि गांधी जयंती या पुण्य तिथि पर देश चलाने वालों का राजघाट जाना, उनकी समाधि पर फूल डालना महज़ एक दिखावा है, गांधी जी के साथ धोखा है. अब सवाल उठता है कि कमल मोरारका इन सामानों का क्या करेंगे. उन्होंने बताया कि वह चाहते हैं कि महात्मा गांधी से जुड़ी ये चीज़ें सरकार नेशनल म्यूजियम में रखे, क्योंकि गांधी जी तो देश की धरोहर हैं. ये सारी चीज़ें देश की जनता की हैं और उसे इन्हें देखने का मौक़ा मिलना चाहिए. मुंबई में कमल मोरारका इन सामानों की प्रदर्शनी लगाने वाले हैं, साथ ही वह अपने स्तर पर देश के अलग-अलग शहरों में प्रदर्शनी लगाने की कोशिश करेंगे. इस प्रदर्शनी का मक़सद स़िर्फ लोगों को गांधी से जोड़ना होगा.
यहां एक और नीलामी का ज़िक्र करना ज़रूरी है. कुछ समय पहले किंगफिशर के मालिक विजय माल्या ने टीपू सुल्तान की तलवार खरीदी थी. मीडिया में बड़ा हंगामा मच गया था. टीवी चैनल वालों ने इसे एक मीडिया इवेंट और किंगफिशर एवं विजय माल्या के प्रचार-प्रसार का एक आयोजन बना दिया. जब तलवार को खरीद लिया तो उन्होंने कहा कि वह फिर से नीलामी कर सकते हैं. उन्होंने टीपू सुल्तान की तलवार से व्यवसाय करने की कोशिश की, जिसका उन्हें अधिकार है, लेकिन कमल मोरारका के लिए गांधी जी एक प्रेरणास्रोत हैं. इसलिए उन्होंने सा़फ-सा़फ कहा कि वह किसी भी क़ीमत पर इन सामानों की फिर से नीलामी नहीं करेंगे. गांधी को लेकर कमल मोरारका इतने संवेदनशील हैं कि उन्होंने यह भी कहा कि सरकार अगर इन सामानों को उचित स्थान पर रखने के लिए तैयार है तो वह इन्हें सरकार को भेंट भी कर सकते हैं. लेकिन नीलामी के इतने दिनों के बाद भी सरकार की तऱफ से किसी ने संपर्क करने की कोशिश नहीं की. हैरानी की बात तो यह है कि मीडिया के वे लोग, जो कल तक गांधी की धरोहर की नीलामी पर अपना कलेजा पीट रहे थे, टीवी स्टूडियो में घड़ियाली आंसू बहा रहे थे, वे नीलामी के बाद इस मुद्दे को ही भूल गए. किसी टीवी चैनल और अ़खबार ने गांधी की धरोहर की सुध लेने की ज़रूरत नहीं समझी. इससे यही निष्कर्ष निकलता है सही मायने में देश का मीडिया भी पथभ्रष्ट हो गया है.
अ़खबार में यह खबर छपी कि सोनिया जी मनमोहन सिंह जी से इस बात से बहुत नाराज़ हैं कि इन चीज़ों की नीलामी रोकने के लिए या अपने देश में वापस लाने के लिए उन्होंने कोई क़दम नहीं उठाया. समझने वाली बात यह भी है कि अगर सोनिया जी का यह मंतव्य होता और वह निर्देश दे देतीं तो मनमोहन सिंह ज़रूर रुचि दिखाते. कांग्रेस की सरकार ने तो ग़लती की ही, लेकिन इस मामले में विपक्ष भी उतना ही ज़िम्मेदार है, क्योंकि भारतीय जनता पार्टी के रु़ख और कांग्रेस की सोच में कोई खास अंतर बचा नहीं है, चाहे मामला गांधी का ही क्यों न हो. अगर विपक्षी पार्टियां इस मामले को जमकर उठातीं तो शायद सरकार को इसमें हस्तक्षेप करना पड़ता. लेकिन इस देश का दुर्भाग्य है कि सरकार के साथ-साथ विपक्ष भी ऐसे मामलों में संवेदनहीन हो गया है. आज एक तऱफ कांग्रेस ने अपने मूल्य छोड़ दिए हैं, समाजवाद और सामाजिक विकास को ता़ख पर रख दिया है तो दूसरी तऱफ भाजपा ने अपनी विचारधारा को द़फन कर दिया है. दोनों ही पार्टियां एक जैसी हो गई हैं. चाहे भ्रष्टाचार हो, चाहे अमेरिका के सामने घुटने टेकने हों, दोनों का रवैया एक है. यही देश के सामने सबसे बड़ी चुनौती है. दोनों पार्टियों ने देश की राजनीतिक संस्कृति को बर्बाद कर दिया है. गांधी के विचार हों या स्वतंत्रता संग्राम की विरासत, ये राजनीतिक दलों का दायित्व है कि वे लोगों को इसके प्रति जागरूक करें. राजनीतिक पार्टियों ने अपने इस अहम दायित्व को निभाने कीबजाय राजनीति को पैसा कमाने की मशीन बना दिया है. इन दोनों पार्टियों ने एक ऐसी राजनीतिक संस्कृति पैदा कर दी है, जहां ईमानदार होना ही आपकी सबसे बड़ी कमज़ोरी बन गया है. राजनीति में सच बोलना ही सबसे बड़ा जुर्म हो गया है. इसी वजह से राजनीतिक पार्टियों और राजनीतिक कार्यकर्ताओं ने गांधी को भुला दिया है. यही संवेदनहीनता मीडिया में भी सर्वत्र व्याप्त है. यही देश का दुर्भाग्य भी है.
ऐसे माहौल में कमल मोरारका जैसे व्यक्तित्व का होना हर भारतीय के लिए गर्व की बात है. देश के बड़े पैसे वालों को कमल मोरारका से यह सीखना चाहिए कि देश के प्रति पागलपन की हद तक लगाव और देश की आन-बान-शान को कैसे जिया जाता है. नीलामी में गांधी की सभी चीज़ों को किसी एक भारतीय ने खरीदा है, जिसने भी यह खबर सुनी, उसका सीना चौड़ा हो गया, सिर गर्व से ऊंचा हो गया. कमल मोरारका देश के जाने-माने पूंजीपति हैं, लेकिन पूंजीपति से ज़्यादा वह एक देशभक्त और अच्छे इंसान हैं. मोरारका फाउंडेशन के ज़रिए वह राजस्थान और दूसरे राज्यों में कृषि पर्यावरण से लेकर ग़रीबों के बीच सोशल वर्क करते हैं. वह पूंजीवाद के इंसानी चेहरे का प्रतिनिधित्व करते हैं.
आ़खिर में गोपाल दास नीरज की एक कविता याद आती है:-
नेताओं ने गांधी की क़सम तक बेची
कवियों ने निराला की क़लम तक बेची
मत पूछ कि इस दौर में क्या-क्या न बिका
इंसानों ने आंखों की शर्म तक बेची कवि नीरज ने जो सालों पहले लिखा, वह आज एक बार फिर सच साबित हुआ है. लंदन में बापू की धरोहरों की एक बार फिर बोली लगी, लेकिन सरकार और नेता मूकदर्शक बने रहे. देश के सपूत ने अपना फर्ज़ निभाया. गांधी को चाहने वालों और उन्हें मानने वालों को कमल मोरारका को धन्यवाद कहना चाहिए.
लंदन के विख्यात ऑक्शन हाउस मुलॉक्स (जो कि स्मृति चिन्हों की नीलामी के लिए मशहूर है) ने बीते 17 अप्रैल को महात्मा गांधी से जुड़ी 29 वस्तुओं की नीलामी की. इन चीज़ों में मुख्य रूप से गांधी जी के खून से सनी घास एवं मिट्टी, ब्रिटेन में वकालत की पढ़ाई करते समय इस्तेमाल किया जाने वाला चश्मा, गांधी जी का चरखा, उनके लिखे कुछ पत्र और उनसे जुड़ी खबरों के प्रकाशन वाले अ़खबारों की वास्तविक प्रतियां शामिल हैं. इन सभी चीज़ों को कमल मोरारका फाउंडेशन ऑफ आट्र्स ने खरीद कर देश की धरोहर देश में लाने और गांधी की यादों को बचाने का काम किया है.
इनकी हुई नीलामी
- महात्मा गांधी (बापू) द्वारा 7 जून, 1931 को लिखित और हस्ताक्षरित पत्र, जिसमें मेरे प्रिय राघनन संबोधित किया गया है.
- गांधी जी द्वारा 4 मार्च, 1929 को टाइप किया गया पत्र, जिसमें उन्होंने अपनी मातृभाषा गुजराती में हस्ताक्षर किए हैं.
- गांधी जी द्वारा गुजराती में हस्ताक्षरित निजी प्रार्थना पुस्तक, जो उनकी मातृभाषा गुजराती में है.
- गांधी जी का चश्मा (जैसा गांधी जी हमेशा पहनते थे).
- कोलंबिया कंपनी की (10 इंच और 78 आरपीएम की) एक ग्रामोफोन डिस्क, जिसमें गांधी जी द्वारा दिए गए धार्मिक संदेश रिकॉर्ड हैं.
- गांधी जी द्वारा इस्तेमाल किया गया लकड़ी का बना चरखा, जिसके अंदर की मशीनें अभी भी हैं.
- गांधी जी के खून से सनी मिट्टी और घास (लकड़ी के डिब्बे में बंद), जो उनकी हत्या की जगह से उसी दिन एकत्र की गई थी.
- गोरा (गोपाराजु रामचंद्र राव)-अपने सहकर्मी और भारतीय राष्ट्रवादी/ नास्तिक को संबोधित गांधी जी द्वारा हस्ताक्षरित और हस्तलिखित पत्र.
- शगांधी और भारत, जर्मनी के विभिन्न लेखकों द्वारा संकलित भारत पर अंग्रेजी भाषा में लिखी बुकलेट.
- 1932 में गांधी जी के आंदोलन का दमन किए जाने संबंधी ख़बर वाले भारतीय अ़खबार की वास्तविक प्रति.
- गांधी जी की मृत्यु और अंतिम संस्कार की खबर वाले अ़खबार की वास्तविक प्रति.
- अंग्रेजों ने गांधी को छोड़ा, मुख्य खबर वाले अख़बार की वास्तविक प्रति.
- 1932 में गांधी जी को बंबई में गिरफ्तार किए जाने संबंधी खबर वाले अ़खबार की वास्तविक प्रति.
- 1930 में गांधी जी ने भारतीय क़ानून को खारिज़ किया, नमक बनाया, ख़बर वाले अख़बार की वास्तविक प्रति.
- गांधी जी की हत्या, पुत्र ने मुखाग्नि दी, खबर वाले अखबार (1948) की वास्तविक प्रति.
- गांधी मारे गए, पुत्र देवदास ने मुखाग्नि दी, खबर वाले अ़खबार (1948) की वास्तविक प्रति.