बाबा रामदेव पर लगे आरोपों की सच्चाई जानने के लिए समन्वय संपादक डॉ. मनीष कुमार ने सुमेर पीठ के जगतगुरु शंकराचार्य नरेंद्रानंद सरस्वती से बातचीत की. प्रस्तुत हैं मुख्य अंश:
बाबा रामदेव से संत समाज क्यों नाराज़ है?
संतों को दवाइयां नहीं बेचनी चाहिए और अगर दवाएं बेचनी ही हैं तो संत के वेश को त्याग देना चाहिए, व्यवसाइयों की वेशभूषा और परिवेश अपना लेना चाहिए. वह जो कर रहे हैं, वह बिल्कुल भी उचित नहीं है. वैसे राजनीति में राजनीतिज्ञों को दिशा-निर्देश तो देना चाहिए. यह तो इतिहास रहा है. चाणक्य थे, विश्वामित्र थे, वशिष्ठ थे, लेकिन उन्होंने गद्दी नहीं संभाली, बस दिशा दिखाते रहे. यह उनकी अज्ञानता है, जो वह बिज़नेस कर रहे हैं. संतों का धर्म बिजनेस करना नहीं है.
क्या आपको भी लगता है कि गुरु शंकर देव की हत्या में बाबा रामदेव शक़ के घेरे में हैं, क्या इसकी जांच होनी चाहिए?
अवश्य होनी चाहिए, अगर बाबा रामदेव ने उनकी हत्या नहीं कराई है तो समाज के सामने उनको लाना चाहिए. उनकी संपत्ति हड़पने के लिए, उनकी जायदाद लेने के लिए उनकी हत्या तो की गई है, इसकी जांच होनी चाहिए और अपराधी को दंड भी मिलना चाहिए.
बाबा रामदेव को आप कब से जानते हैं?
रामदेव को तो मीडिया के माध्यम से ही जानता हूं. एकाध बार मुलाक़ात हुई है. जिस वक़्त उन्होंने शंकराचार्य के सिद्धांत को चैलेंज किया था, उस वक़्त व्यक्तिगत मुलाक़ात हुई थी हमारी-उनकी. उन्होंने कहा कि हमने यह कहा ही नहीं, मीडिया ने झूठ बताया है, तो हमने कहा कि आपने इसका खंडन क्यों नहीं किया. दूसरे ही दिन उनका खंडन छपा और उन्होंने हमारे यहां मा़फीनामे का एक फैक्स भिजवाया. हरिद्वार में जगतगुरु के आश्रम में गए, वहां भी उन्होंने माला पहनाई और कहा कि हमने ऐसा बयान नहीं दिया है. मीडिया ने मेरी कही बातों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया है. उन्होंने सारा दोष मीडिया पर ही म़ढ दिया. हमने कहा था कि आप शंकराचार्य के सिद्धांत को चुनौती दे रहे हैं तो दीजिए, हम लोग उनके अनुयायी हैं, परंपरा के लिहाज़ से मैं चुनौती लेने को तैयार हूं, लेकिन शर्त यही है कि जो हारेगा, उसको जीवित समाधि लेनी होगी.
तो बाबा रामदेव माला वगैरह लेकर पहुंच गए?
उन्होंने हस्तलिखित मा़फीनामा दिया. जूना अखाड़े के महामंत्री हरि गिरीश जी महाराज से बात कराई कि माफ कर दीजिए, शांत हो जाइए.
बाबा रामदेव ने इतना पैसा, इतनी ख्याति प्राप्त कर ली है, इसलिए दूसरे संतों को उनसे ईर्ष्या हो गई है. इसलिए वे उनके खिला़फ बोल रहे हैं?
अगर रामदेव काले धन पर खुलासा करने की बात करते हैं तो पहले खुद की विदेश में और दूसरी जगहों पर खरीदी हुई संपत्ति को लाएं. अगर उन्हें संपत्ति लेनी भी है तो भारत में लें. विदेशों में लेने का क्या मतलब है. भारत के पैसे से खरीद रहे हैं, उन्हें भारत में संपत्ति खरीदनी चाहिए. अब वह यह कहेंगे कि हमें विदेश से मिली. उनसे जलन किसी को नहीं है, लेकिन उन्हें संतों की मर्यादा के दायरे में रहकर काम करना चाहिए. क्यों जलेंगे दूसरे संत उनसे, क्या उनसे किसी की दुश्मनी है? लेकिन उल्टा-सीधा अनर्गल बोलेंगे तो वह ग़लत है.
आप लोग क्या चाहते हैं?
हम जैसे संत चाहते हैं कि अगर उन्हें बिज़नेस करना है तो बिज़नेस करें और संत के वेश का परित्याग करें. संतत्व है तो संतत्व की मर्यादा में रहकर काम करें.